महाराष्ट्र: टिस में कथित तौर पर अकादमिक बहसों पर प्रतिबंध, छात्र संघ ने अधिकारों का उल्लंघन बताया

टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के छात्र संघ ने आरोप लगाया कि संस्थान ने छात्रों को अकादमिक बहस करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है और ऐसे आयोजन करने की कोशिश करने वाले छात्रों पर सवाल उठाया है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक/Tata Institute of Social Sciences)

टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के छात्र संघ ने आरोप लगाया कि संस्थान ने छात्रों को अकादमिक बहस करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है और ऐसे आयोजन करने की कोशिश करने वाले छात्रों पर सवाल उठाया है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: फेसबुक/Tata Institute of Social Sciences)

नई दिल्ली: मुंबई के टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) द्वारा कथित तौर पर अकादमिक बहस पर मनाही के आदेश को लेकर इसके छात्र संघ ने मोर्चा खोल दिया है.

द टेलीग्राफ की रिपोर्ट के मुताबिक, छात्र संघ ने एक बयान जारी कर आरोप लगाया है कि संस्थान ने छात्रों को अकादमिक बहस करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया है और ऐसे आयोजन करने की कोशिश करने वाले छात्रों पर सवाल उठाया है.

दो छात्रों ने कहा कि संस्थान ने हाल ही में परिसर में पूर्वोत्तर राज्यों के छात्रों द्वारा आयोजित एक सालाना उत्सव में उन्हें अकादमिक चर्चा करने की अनुमति नहीं दी. कुछ छात्रों ने पिछले महीने मैग्सेसे पुरस्कार विजेता बेजवाड़ा विल्सन को मैला ढोने की समस्या पर बोलने के लिए आमंत्रित किया था, लेकिन संस्थान ने इसे आयोजित करने की अनुमति नहीं दी.

छात्रों ने कहा कि संस्थान इस धारणा पर बहस को कुचलने की कोशिश कर रहा है कि ऐसी गतिविधियां केंद्र सरकार की नीतियों का आलोचनात्मक विश्लेषण हो सकती हैं.

एक छात्र ने कहा कि शैक्षणिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए मंजूरी लेने के प्रोटोकॉल पर संस्थान की ओर से कोई दिशानिर्देश नहीं थे. छात्र ने कहा कि संस्थान के अधिकारी नियमित रूप से छात्रों के समूह से मंजूरी लेने के लिए कह रहे हैं और मौखिक रूप से अनुमति देने से इनकार कर रहे हैं.

अपने बयान में संघ ने कहा कि छात्र गतिविधियों पर लगाए गए प्रतिबंध और ‘गैर-पेशेवर, असंवेदनशील कम्युनिकेशन’ ने गंभीर चिंताएं पैदा की हैं. स्पष्टीकरण के बिना छात्र गतिविधियों पर अनौपचारिक प्रतिबंधों, जिसमें कार्यक्रम की मंजूरी (यहां तक कि नियमित स्कूल कार्यक्रमों के लिए भी), जगह का उपयोग और सभाएं शामिल हैं, से एक बुनियादी सवाल उठाता है कि यह परिसर वास्तव में किसके लिए है? ऐसा लगता है कि यह प्रतिबंध छात्रों के लिए जीवंत माहौल को बढ़ावा देने के बजाय ‘कृत्रिम रूप से शांत माहौल’ बनाने पर केंद्रित हैं.

यूनियन ने कहा कि संस्थान ऐसे छात्रों को निशाना बना रहा है जो ऐसे आयोजन करते रहते हैं. इसमें कहा गया है कि संस्थान ने ईमेल या आदेश के माध्यम से जवाब देने के बजाय छात्रों से मौखिक रूप से संवाद करने को प्राथमिकता दी है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, छात्र संघ ने इसे छात्रों के अधिकारों का उल्लंघन करार दिया. हालांकि संस्थान प्रशासन ने दावों का खंडन किया है.

जनवरी में टिस प्रशासन ने एक नोटिस जारी किया था जिसमें कहा गया था कि वह परिसर में कार्यक्रम, सेमिनार, व्याख्यान आदि आयोजित करने के लिए मौजूदा दिशानिर्देशों को फिर से तैयार कर रहा है और तब तक निश्चित वार्षिक गतिविधियों को छोड़कर ऐसी सभी गतिविधियों को निलंबित कर दिया गया है.

छात्र सदस्यों में से एक ने कहा, ‘दिशानिर्देशों के पुनर्निर्धारण के कारण संस्थान प्रशासन ने अतिथि व्याख्यान से जुड़े सभी अतिरिक्त शैक्षणिक कार्यक्रमों को रोक दिया है, जिसमें सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों और वर्तमान शासन के बारे में आलोचनात्मक विचार शामिल हो सकते हैं. लेकिन रीफ्रेमिंग के काम आगे न बढ़ने से छात्रों में भ्रम और निराशा है. इसके अतिरिक्त, सोशल मीडिया पर आलोचनात्मक विचार व्यक्त करने के लिए छात्रों से व्यक्तिगत रूप से पूछताछ की जा रही है.’

प्रतिबंधों को मनमाना बताने के अलावा छात्र संघ ने बुधवार को जारी अपने आधिकारिक बयान में दावा किया, ‘टिस में वर्तमान माहौल विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) द्वारा सुझाए गए छात्र अधिकार का पूर्ण उल्लंघन है, जिसमें कहा गया है कि लोकतांत्रिक नागरिक के रूप में छात्र अपने संस्थान के भीतर और बाहर विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के हकदार हैं.’

यह मांग करते हुए कि नए दिशानिर्देशों को प्राथमिकता के आधार पर तैयार किया जाना चाहिए, बयान में प्रशासन से उन्हें छात्र-केंद्रित बनाने के लिए नए सिरे से तैयार करने में छात्र प्रतिनिधियों को भी शामिल करने का आग्रह किया गया है.

हालांकि, प्रशासन ने छात्रों के दावों का खंडन करते हुए कहा है कि उन्हें संघ से कोई बयान नहीं मिला है.

प्रशासन के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, ‘दिशानिर्देश तैयार किए जा रहे हैं. हालांकि, प्रतिबंध सभी कार्यक्रमों के लिए नहीं हैं, बल्कि केवल उन कार्यक्रमों के लिए हैं जो गैर-शैक्षणिक हैं. यदि संस्थान का कोई भी विभाग किसी प्रशंसित शिक्षाविद् को आमंत्रित करने के लिए आधिकारिक तौर पर अनुरोध करता है, तो उस पर हमेशा सकारात्मक तरीके से विचार किया जाता है.’

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