पीआईबी शाखा को फैक्ट-चेक यूनिट बनाने वाली केंद्र की अधिसूचना पर सुप्रीम कोर्ट की रोक

सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम-2023 में एक फैक्ट-चैकिंग इकाई का प्रावधान है जो केंद्र सरकार से संबंधित ऐसी सूचनाओं को चिह्नित करेगी, जिन्हें वह ग़लत, फ़र्ज़ी या भ्रामक मानती है. केंद्र ने प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) की फैक्ट-चेक शाखा को फैक्ट-चेकिंग इकाई (एफसीयू) के रूप में नामित किया था.

पीआईबी लोगो. (फोटो साभार: भारत सरकार, सार्वजनिक डोमेन)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (21 मार्च) को 2023 के संशोधित सूचना प्रौद्योगिकी नियमों के तहत प्रेस सूचना ब्यूरो (पीआईबी) की फैक्ट-चेक शाखा को फैक्ट-चेकिंग इकाई (एफसीयू) के रूप में नामित करने वाली केंद्र सरकार की अधिसूचना पर रोक लगाने का आदेश दिया.

लाइव लॉ के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, ‘केंद्र सरकार द्वारा दिए गए बयान के इतर नियम को दी गईं चुनौतियों में गंभीर संवैधानिक प्रश्न शामिल हैं. भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार पर नियम 3(1)(बी)(वी) के प्रभाव का विश्लेषण हाईकोर्ट द्वारा किया जाएगा.’

भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, ‘हालांकि, हमारा स्पष्ट मानना है कि अंतरिम राहत के लिए आवेदन की अस्वीकृति के बाद केंद्र सरकार द्वारा जारी 20 मार्च, 2024 की अधिसूचना पर रोक लगाने की आवश्यकता है.’

यह रोक बॉम्बे हाईकोर्ट के समक्ष फैक्ट-चेक यूनिट की वैधता को चुनौती देने वाली कार्यवाही के निपटारे तक वैध रहेगी. इस महीने की शुरुआत में बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था कि केंद्र सरकार द्वारा फैक्ट-चेकिंग यूनिट को अधिसूचित करने पर कोई अंतरिम रोक नहीं लगाई जाएगी. इससे पहले दो न्यायाधीशों वाली एक पीठ ने उक्त इकाई से संबंधित विशिष्ट नियम की वैधता पर खंडित फैसला सुनाया था.

बता दें कि सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यस्थ दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) संशोधन नियम-2023 में एक फैक्ट-चैकिंग इकाई का प्रावधान है जो केंद्र सरकार से संबंधित ऐसी सूचनाओं को चिह्नित करेगी, जिन्हें वह गलत, फर्जी या भ्रामक मानती है.

कई विश्लेषकों ने इसे प्रेस की स्वतंत्रता के लिए गंभीर खतरा बताया है.

केंद्र की अधिसूचना लोकसभा चुनाव से महीने भर पहले आई, जिसे इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन एक ऐसे कदम के रूप में देखता है जो ‘इंटरनेट पर मुक्त भाषण की प्रकृति को काफी हद तक प्रभावित कर सकता है क्योंकि इसका (गलत) उपयोग सेंसरशिप के लिए होने की संभावना है, महत्वपूर्ण रूप से असहमति को दबाने के संदर्भ में.’

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले हफ्ते पीआईबी की फैक्ट-चेक इकाई ने नागरिकता (संशोधन) अधिनियम-2019 को ‘मुस्लिम विरोधी’ बताने वाला अल जजीरा का लेख फर्जी बता दिया था.

कुणाल कामरा, एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और एसोसिएशन ऑफ इंडियन मैगजीन्स ने आईटी नियम 2023 के कार्यान्वयन पर रोक लगाने से बॉम्बे हाईकोर्ट के इनकार को चुनौती देते हुए याचिकाएं दायर की थीं.

द वायर ने पहले भी अपनी रिपोर्ट में बताया था कि पीआईबी की एक स्वतंत्र संस्था के रूप में कार्य करने की क्षमता को लेकर गंभीर चिंताएं हैं कि क्या वह निष्पक्ष फैक्ट-चेक करेगी.

इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन के शोधकर्ताओं ने पाया कि पीआईबी ने खुलासा किया है कि पिछले तीन वर्षों में, यानी अप्रैल 2020 से इंटरनेट पर तथ्य जांच जानकारी के लिए लगभग 1.2 लाख अनुरोध प्राप्त हुए हैं, जबकि उसने उनमें से केवल 1,223 पर कार्रवाई की है – कार्रवाई दर मामूली 1% है.