लोकसभा चुनावों से पहले दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल के समर्थन में एकजुट होकर ‘इंडिया’ ब्लॉक के नेताओं ने निर्वाचन आयोग से संपर्क करते हुए आरोप लगाया कि उनकी गिरफ़्तारी सरकार द्वारा केंद्रीय एजेंसियों का घोर और दुस्साहसिक दुरुपयोग, जिसका चुनाव की निष्पक्षता एवं स्वतंत्रता पर प्रभाव पड़ता है.
नई दिल्ली: दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के समर्थन में एकजुट होकर इंडिया ब्लॉक के नेताओं ने शुक्रवार को चुनाव आयोग से संपर्क किया और आरोप लगाया कि उनकी गिरफ्तारी सरकार द्वारा केंद्रीय एजेंसियों का ‘घोर और दुस्साहसिक दुरुपयोग’ है और यह लोकसभा चुनाव में समान अवसर की स्थिति को खत्म करना है जिसका चुनाव की निष्पक्षता एवं स्वतंत्रता पर प्रभाव पड़ता है.
ज्ञात हो कि दिल्ली आबकारी नीति मामले में ईडी ने 21 मार्च की रात दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गिरफ़्तार किया गया है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, विपक्ष ने चुनाव आयोग से यह सुनिश्चित करने के लिए एक तंत्र बनाने के लिए कहा कि अभियान अवधि के दौरान छापेमारी, जांच और गिरफ्तारियों की पहले चुनाव आयोग या उसके तहत गठित समिति द्वारा जांच और अनुमोदन किया जाए.
यह बैठक उस दिन हुई जब कांग्रेस, जो दिल्ली की आबकारी नीति में भ्रष्टाचार को उजागर करने और कार्रवाई की मांग को लेकर अरविंद केजरीवाल सरकार की आलोचना कर रही थी, ने भी उनकी गिरफ्तारी और पार्टी के बैंक खातों को ‘फ्रीज’ करने के खिलाफ राष्ट्रीय राजधानी में सड़क पर विरोध प्रदर्शन किया. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केजरीवाल की पत्नी सुनीता केजरीवाल से फोन पर बात की.
पार्टियों द्वारा दी गई एक याचिका में कहा गया है, ‘पूरा देश विपक्षी दलों को निशाना बनाने, उनका गला घोंटने और डराने-धमकाने के लिए सत्ताधारी पार्टी द्वारा केंद्रीय एजेंसियों की निरंकुश, स्पष्ट और अवैध तैनाती का गवाह है. सत्ता में मौजूद किसी पार्टी द्वारा राज्य मशीनरी का इस तरह का बेहूदा दुरुपयोग, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों की पवित्रता के लिए सीधा खतरा है, क्योंकि वे हमारे लोकतंत्र के मूल, अर्थात स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनावों को पूरी तरह से नष्ट कर देते हैं.’
इनमें कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस, डीएमके, समाजवादी पार्टी, आप, सीपीएम और एनसीपी (शरद पवार) के नेता शामिल थे.
केजरीवाल और जनवरी में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन की गिरफ्तारी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्तियों की इन गिरफ़्तारियों का उद्देश्य स्पष्ट रूप से उनके संबंधित राज्यों के मामलों के साथ-साथ स्वयं पार्टियों के लोकतांत्रिक कामकाज पर दमनकारी और हानिकारक प्रभाव डालना है. यह एक ऐसा कदम है जो जानबूझकर इन दलों के सदस्यों और बड़े पैमाने पर विपक्ष को हतोत्साहित करने के लिए बनाया गया है… उनकी गिरफ्तारी का उद्देश्य सीधे मतदाता को एक संदेश भेजना है. सत्तारूढ़ शासन अपनी चुनावी महत्वाकांक्षाओं के लिए किसी भी वास्तविक विरोध को बर्दाश्त नहीं करेगा.’
पार्टियों ने आयोग से कहा कि केजरीवाल और सोरेन की गिरफ्तारी अकेली नहीं है. उन्होंने कांग्रेस के बैंक खातों को ‘फ्रीज’ करने की बात चुनाव आयोग के संज्ञान में लाई. राजद नेता लालू प्रसाद यादव के सहयोगी बीआरएस के नेताओं, तृणमूल कांग्रेस नेता शंकर आध्या और एनसीपी-एससीपी नेता रोहित पवार, पश्चिम बंगाल के मंत्री और टीएमसी नेता सुजीत बोस और तापस रॉय पर छापे और गिरफ्तारी, राज्यसभा सांसद और आप नेता एनडी गुप्ता के अलावा टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा के खिलाफ भी सीबीआई ने एफआईआर दर्ज की है.
पार्टियों ने कहा, ‘वहां एक स्पष्ट जानबूझकर किए जाने वाला भयावह पैटर्न उभर रहा है, जहां सत्तारूढ़ शासन अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर रहा है और लोकसभा चुनाव लड़ने वाले अन्य राजनीतिक दलों के लिए समान अवसर की किसी भी संभावना को पूरी तरह से नष्ट कर रहा है. ऐसी मनमानी पहले कभी नहीं देखी गई.’
पार्टियों ने तर्क देते हुए कहा कि ‘केंद्रीय जांच एजेंसियों का खुला दुरुपयोग पिछले चुनाव आयोग के निर्देशों, जन प्रतिनिधित्व अधिनियम और आईपीसी के प्रावधानों का सीधा उल्लंघन है.’
उन्होंने बताया कि चुनाव आयोग ने 2019 में एक परिपत्र में ऐसा कहा था, ‘चुनाव अवधि के दौरान प्रवर्तन कार्रवाई, भले ही उस ज़बरदस्त चुनावी कदाचार (मतदाताओं के व्यवहार को प्रभावित करने के लिए धन की शक्ति का उपयोग करने) को रोकने की दृष्टि से की गई हो, बिल्कुल तटस्थ, निष्पक्ष और गैर-भेदभावपूर्ण हो. इसके अलावा, चुनावी उद्देश्यों के लिए ऐसे अवैध धन के संदिग्ध उपयोग के मामले में आदर्श आचार संहिता लागू होने तक मुख्य निर्वाचन अधिकारी को उचित रूप से सूचित किया जाना चाहिए.’
उन्होंने कहा कि आदर्श आचार संहिता में भी कहा गया है कि सत्ता में रहने वाली पार्टी चाहे वह केंद्र में हो या संबंधित राज्यों में, यह सुनिश्चित करेगा कि किसी भी शिकायतकर्ता को यह कारण न बताया जाए कि उसने अपने चुनाव अभियान के प्रयोजनों के लिए अपनी आधिकारिक स्थिति का उपयोग किया है.
इसके अलावा, उन्होंने तर्क दिया कि ‘निराधार और दुर्भावनापूर्ण गिरफ्तारियां, छापे और जांच’ भी ‘अनुचित प्रभाव’ के बराबर है जैसा कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम और आईपीसी में प्रावधान है.
उन्होंने कहा, ‘राजनीतिक दलों की चुनावी संभावनाओं में हस्तक्षेप करने के सुनियोजित प्रयास के साथ केंद्रीय जांच एजेंसियों का दुरुपयोग करना स्पष्ट रूप से ‘अनुचित प्रभाव’ के कार्य के दायरे में आता है.’