असम सरकार ने विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच ज़मीन बेचने के लिए एनओसी पर तीन महीने की रोक लगाई

असम सरकार ने एक अधिसूचना में विभिन्न धार्मिक समुदायों के लोगों की भूमि को 'कपटपूर्ण तरीकों से' ट्रांसफर करने के प्रयासों पर खुफ़िया एजेंसियों से मिली जानकारी का हवाला देते हुए कहा है कि लोकसभा चुनाव के दौरान निहित स्वार्थों को सांप्रदायिक संघर्ष पैदा करने से रोकने के लिए एनओसी देना ‘स्थगित’ रहेगा.

हिमंता बिस्वा शर्मा. (फोटो साभार: फेसबुक)

असम सरकार ने एक अधिसूचना में विभिन्न धार्मिक समुदायों के लोगों की भूमि को ‘कपटपूर्ण तरीकों से’ ट्रांसफर करने के प्रयासों पर खुफ़िया एजेंसियों से मिली जानकारी का हवाला देते हुए कहा है कि लोकसभा चुनाव के दौरान निहित स्वार्थों को सांप्रदायिक संघर्ष पैदा करने से रोकने के लिए एनओसी देना ‘स्थगित’ रहेगा.

 नई दिल्ली: असम सरकार ने विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच जमीन की बिक्री के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र (एनओसी) देने पर तीन महीने के लिए रोक लगा दी है.

द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, राज्य के राज्यपाल के माध्यम से राजस्व और आपदा प्रबंधन (पंजीकरण) विभाग द्वारा 7 मार्च को जारी एक अधिसूचना में विभिन्न धार्मिक समुदायों के लोगों की भूमि को ‘कपटपूर्ण तरीकों से’ हस्तांतरित करने के प्रयासों के मामलों पर खुफिया एजेंसियों से मिली जानकारी का हवाला देते हुए कहा गया है कि लोकसभा चुनाव के दौरान निहित स्वार्थों को सांप्रदायिक संघर्ष पैदा करने से रोकने के लिए एनओसी देना ‘स्थगित’ रखा गया है.

असम की 14 संसदीय सीटों पर तीन चरणों में चुनाव होंगे. पूर्वी असम की पांच सीटों, मध्य और दक्षिणी असम की पांच सीटों और मध्य और पश्चिमी असम की चार सीटों के लिए मतदान क्रमशः 19 अप्रैल, 26 अप्रैल और 7 मई को होंगे.

राजस्व विभाग के प्रमुख सचिव ज्ञानेंद्र देव त्रिपाठी द्वारा हस्ताक्षरित अधिसूचना में कहा गया है, ‘असम के राज्यपाल ने यह निर्देश दिया है कि पंजीकरण अधिनियम 1908 की धारा 21ए के तहत भूमि की बिक्री के लिए एनओसी देने के सभी मामले, जहां खरीदार और विक्रेता अलग-अलग धर्म के हैं, इस अधिसूचना के जारी होने की तारीख से उन्हें 3 महीने की अवधि के लिए स्थगित रखा जाएगा.’

मिशन बसुंधरा

अधिसूचना जोड़ा गया है, ‘हालांकि, यदि जिला आयुक्त का विचार है कि ऐसी एनओसी देना परिस्थितियों को ध्यान में रखते हुए बिल्कुल आवश्यक है और इससे कानून और व्यवस्था का कोई उल्लंघन नहीं होगा, तो इसे पंजीकरण महानिरीक्षक, असम की पूर्व सहमति से जारी किया जा सकता है.’

गौरतलब है कि असम सरकार द्वारा मिशन बसुंधरा के तीसरे चरण की शुरुआत के एक महीने से भी कम समय बाद अधिसूचना जारी की गई है. मिशन बसुंधरा सरकारी स्वामित्व वाली भूमि को ‘मियादी पट्टे’, जिस पर एक इंडिजिनस (मूलनिवासी) समुदाय से संबंधित आवेदक का स्वामित्व अधिकार हो सकता है, में बदलने की एक योजना है.

इसमें यह साबित करना शामिल है कि आवेदक स्वामित्व वाली भूमि के एक टुकड़े पर कम से कम तीन पीढ़ियों से असम का निवासी रहा है और आवेदन की तारीख से कम से कम तीन वर्षों से उसका भूमि पर लगातार कब्जा रहा है.

8 फरवरी को ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के विधायक अशरफुल हुसैन ने 126 सदस्यीय असम विधानसभा को बताया कि मिशन बसुंधरा के तहत मुसलमानों के आवेदन खारिज किए जा रहे हैं. इसके जवाब में मुख्यमंत्री हिमंता बिस्वा शर्मा ने कहा कि भूमिहीन बंगाली मूल के मुसलमान- जिन्हें अक्सर ‘मिया’ कहा जाता है- मिशन के तहत आवेदन नहीं कर सकते क्योंकि वे इंडिजिनस नहीं हैं.

उन्होंने कहा, ‘खिलौंजिया (मूलनिवासी) का अर्थ है आदिवासी. असम में मोरन, मटक और चुटिया जैसे आदिवासी लोग हैं. यह दुनिया भर में मान्यता प्राप्त परिभाषा है.’

2011 की जनगणना के अनुसार असम में 1.06 करोड़ मुस्लिम हैं, जो राज्य की आबादी का 34.22% है. उनमें से अधिकांश बंगाली मूल के मुसलमान हैं जो नदी क्षेत्रों में रहते हैं और अक्सर उन्हें अवैध अप्रवासी करार दिया जाता है.

मिशन बसुंधरा 8 मई, 2022 को लॉन्च किया गया था.