सेंसेक्स की 30 कंपनियों में से केवल आठ ने राजनीतिक चंदे का खुलासा किया: रिपोर्ट

सेंसेक्स की सूचीबद्ध कंपनियों ने सामूहिक तौर से पिछले पांच वर्षों में राजनीतिक पार्टियों को चंदे के तौर पर 628 करोड़ रुपये दिए हैं. भारती एयरटेल ने सबसे ज़्यादा 241 करोड़ रुपये का चंदा दिया है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Unsplash)

सेंसेक्स की सूचीबद्ध कंपनियों ने सामूहिक तौर से पिछले पांच वर्षों में राजनीतिक पार्टियों को चंदे के तौर पर 628 करोड़ रुपये दिए हैं. भारती एयरटेल ने सबसे ज़्यादा 241 करोड़ रुपये का चंदा दिया है.

नई दिल्ली: मुंबई शेयर बाजार के संवेदी सूचकांक (सेंसेक्स) की 30 कंपनियों में से केवल आठ ने पिछले पांच वित्तीय वर्षों में कम से कम एक बार अपनी वार्षिक रिपोर्ट में राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड खरीद या अन्य वित्तीय योगदान का खुलासा किया है.

बिजनेस स्टैंडर्ड ने इन कंपनियों की वार्षिक रिपोर्ट का हवाला देते हुए बताया है कि सेंसेक्स की इन सूचीबद्ध कंपनियों ने सामूहिक तौर से पिछले पांच वर्षों में राजनीतिक पार्टियों को चंदे के तौर पर 628 करोड़ रुपये दिए हैं.

राजनीतिक योगदान के मामले में दूरसंचार कंपनी भारती एयरटेल ने सबसे अधिक 241 करोड़ रुपये का चंदा दिया है. इसके बाद टाटा स्टील (175 करोड़ रुपये) और लार्सन एंड टुब्रो (85 करोड़ रुपये) दूसरे और तीसरे पायदान पर हैं. भारती एयरटेल सेंसेक्स में लिस्टेड एकमात्र ऐसी कंपनी है, जिसने पिछले पांच वित्तीय वर्षों में हर साल लगातार राजनीतिक दलों को चंदा दिया है.

कंपनी की सलाना रिपोर्ट के मुताबिक, भारती एयरटेल और उसकी सहायक कंपनियों ने एयरटेल और उसकी सहायक कंपनियों ने वित्त वर्ष 2019 से 2023 के बीच राजनीतिक दलों को चुनावी बॉन्ड या चुनावी ट्रस्टों के जरिये 241 करोड़ रुपये का चंदा दिया है.

रिपोर्ट के अनुसार, भारती एयरटेल ने 2022-23 की अपनी सलाना रिपोर्ट में कहा है कि वित्त वर्ष 2022 तथा 2023 में कानून की धारा 182 के तहत राजनीतिक चंदे के साथ ही अन्य व्यय मद में क्रमश: 102.5 करोड़ रुपये और 30 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है. भारती एयरटेल ने वित्त वर्ष 2022 में राजनीतिक दलों को सबसे ज्यादा 102.5 करोड़ रुपये का चंदा दिया था.

इस कंपनी के उलट बिजनेस स्टैंडर्ड की सूची में शामिल सूचकांक की अन्य कंपनियों ने अपनी सालाना रिपोर्ट में कभी-कभार ही चुनावी बॉन्डों या राजनीतिक दलों को चंदा देने का खुलासा किया है.

रिपोर्ट में आगे उदाहरण देते हुए बताया गया है कि लार्सन एंड टुब्रो (एल एंड टी) तथा टेक महिंद्रा ने पिछले पांच साल में दो बार अपनी सालाना रिपोर्ट्स में राजनीतिक दलों को चंदा देने की बात कही है. एल एंड टी ने वित्त वर्ष 2019 में 35 करोड़ रुपये और वित्त वर्ष 2020 में 50 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड खरीदे थे.

इसी तरह महिंद्रा एंड महिंद्रा ने वित्त वर्ष 2019 में न्यू डेमेाक्रेटिक इलेक्ट्रोरल ट्रस्ट में 1.02 करोड़ रुपये और वित्त वर्ष 2020 में 23 करोड़ रुपये का योगदान दिया था. बाद के वर्षों में इन दोनों कंपनियों द्वारा चुनावी बॉन्ड खरीदने या अन्य तरीकों से राजनीतिक दलों को चंदा देने का उल्लेख नहीं किया गया है.

वित्त वर्ष 2020 की अपनी सालाना रिपोर्ट में  एल एंड टी ने जिक्र किया था, ‘कंपनी ने 50 करोड़ रुपये का चुनावी बॉन्ड खरीदा है और उसे राजनीतिक दलों को दिया था.’

दिलचस्प बात यह है कि चुनाव आयोग के पिछले 5 साल के डेटाबेस में चुनावी बॉन्ड के कॉरपोरेट खरीदारों में एल एंड टी का नाम नहीं है.

अख़बार ने बताया है कि टाटा स्टील ने वित्त वर्ष 2018-2019 की सालाना रिपोर्ट में उल्लेख किया था कि उसने चुनावी ट्रस्ट को 175 करोड़ रुपये का चंदा दिया है. बाद के वर्षों में कंपनी द्वारा राजनीतिक दलों को चंदा देने का कोई उल्लेख नहीं है. हालांकि, चुनाव आयोग के डेटाबेस में चुनावी बॉन्ड के खरीदारों में टाटा स्टील का भी नाम नहीं है.

इसके अलावा सूचकांक की अन्य कंपनियों ने बीते 5 वित्त वर्ष में केवल एक बार राजनीति दलों को चंदा देने का खुलासा किया है. अल्ट्राटेक सीमेंट ने वित्त वर्ष 2019 में 23 करोड़ रुपये, बजाज फाइनैंस ने वित्त वर्ष 2020 में 20 करोड़ रुपये, मारुति सुजुकी ने वित्त वर्ष 2023 में 20 करोड़ रुपये और टेक महिंद्रा ने वित्त वर्ष 2020 में 15 करोड़ रुपये देने की घोषणा अपनी सालाना रिपोर्ट में की है.

गौरतलब है कि चुनाव आयोग के आंकड़ों के अनुसार सन फार्मास्युटिकल्स ने वित्त वर्ष 2019 में 31.5 करोड़ रुपये के चुनावी बॉन्ड की खरीद की थी लेकिन बीते 5 साल की कंपनी की सालाना रिपोर्ट में इसका या अन्य तरीके से चंदा देने का कोई उल्लेख नहीं है. इसे केवल खर्च के तौर पर बताया गया है.

दूसरी तरफ एनटीपीसी, एशियन पेंट्स और टेक महिंद्रा ने अपनी सालाना रिपोर्ट में इसका स्पष्ट उल्लेख किया है कि वे किसी राजनीतिक दल को कोई चंदा नहीं देते हैं.