नई दिल्ली: भारत की सामाजिक आर्थिक और जातिगत जनगणना (एसईसीसी) वेबसाइट (http://www.secc.gov.in) दो महीने से अधिक समय से बंद है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, इस पोर्टल के संचालन के लिए जिम्मेदार ग्रामीण विकास मंत्रालय ने इसके बंद होने के पीछे ‘तकनीकी’ कारणों का हवाला दिया. साथ ही यह दावा भी किया कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए ‘हरसंभव प्रयास’ कर रहा है कि वेबसाइट फिर से चालू हो जाए.
पीटीआई की रिपोर्ट बताती है कि साल 2011 में भारत ने सामाजिक आर्थिक और जातिगत जनगणना आयोजित की थी, जो 1931 के बाद पहली बार जाति-आधारित जनगणना थी. यह पहली कागज रहित जनगणना थी, जो 640 जिलों में सरकार द्वारा इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों की मदद से आयोजित की गई थी. इससे यह पता चला था कि गांवों में रहने वाले हर तीन परिवारों में से एक भूमिहीन है और अपनी आजीविका के लिए शारीरिक श्रम पर निर्भर है. इस जनगणना ने ग्रामीण भारत में शिक्षा की खराब स्थिति का भी खुलासा किया, जिसमें यह पाया गया कि लगभग एक-चौथाई परिवारों में 25 वर्ष से अधिक आयु का कोई भी साक्षर वयस्क नहीं है.
इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार, इस जनगणना का उद्देश्य सरकार के लिए विभिन्न सामाजिक कल्याण योजनाओं में सुधार करना था. इसमें आयुष्मान भारत, प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना और प्रधान मंत्री आवास योजना-ग्रामीण जैसी योजनाओं के लाभार्थियों की पहचान करना भी शामिल था. इस डेटा का इस्तेमाल अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और अन्य पिछड़ी जातियों के अंतर्गत आने वाले लोगों सहित पिछड़े समुदाय के लोगों को आर्थिक रूप से लाभ पहुंचाने के लिए किया गया.
इंडियन एक्सप्रेस की 22 मार्च की रिपोर्ट में कहा गया है कि अब यह महत्वपूर्ण डेटा सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध नहीं है. इस रिपोर्ट के अनुसार, पोर्टल कम से कम बीते 6 जनवरी 2024 से बंद है. यही वह समय है जब इंटरनेट आर्काइव- वेबैक मशीन ने इसके स्नैपशॉट आखिरी बार दर्ज किए थे. यह खबर लिखे जाने तक वेबसाइट बंद थी.
इंडियन एक्सप्रेस ने जब इस संबंध में इस पोर्टल के संचालन के लिए जिम्मेदार ग्रामीण विकास मंत्रालय से संपर्क किया तो मंत्रालय ने इसके बंद होने के पीछे ‘तकनीकी’ कारणों का हवाला दिया. साथ ही यह दावा भी किया कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए ‘हरसंभव प्रयास’ कर रहा है कि वेबसाइट फिर से चालू हो.
इंडियन एक्सप्रेस ने यह भी बताया कि अज्ञात सूत्रों ने उसे बताय कि इस साल जनवरी से कम से कम दो बार मंत्रालय की आंतरिक बैठकों के दौरान इस मुद्दे को उठाया गया था. अख़बार के मुताबिक, ’24 जनवरी को ऐसी ही एक बैठक के दौरान यह नोट किया गया कि एसईसीसी हार्डवेयर के लिए वार्षिक रखरखाव अनुबंध को ‘नवीनीकृत’ किया जाना था. 6 फरवरी को सूत्रों ने यह भी बताया कि एसईसीसी सर्वरों को ‘इस सप्ताह के अंत तक बहाल’ किया जाना था.’
खबर के अनुसार, जातिगत जनगणना कई राज्यों में एक महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा रही है, खासकर इससे निकलने वाले आंकड़ों के समीकरण से. बीते साल 2023 के अक्टूबर में बिहार ने अपनी पहली राज्य-आधारित जातिगत जनगणना करवाई थी. इस जनगणना में पाया गया कि प्रमुख जातियां राज्य की आबादी का केवल 15.5 प्रतिशत हैं, जबकि हाशिए पर रहने वाली जातियां 84 प्रतिशत हैं. इसमें यह भी पाया गया कि लगभग 94 लाख परिवार यानी बिहार के कुल 2.76 करोड़ परिवारों में से 34.13 प्रतिशत आर्थिक रूप से गरीब हैं और प्रति माह 6,000 रुपये से कम कमाते हैं. इसका मतलब है कि मूल रूप से हर तीसरा परिवार गरीब था.
इस डेटा के आधार पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गरीबों और हाशिए पर रहने वाले लोगों के लिए कई योजनाओं की घोषणा की थी.
नवंबर 2023 में उन्होंने 94 लाख परिवारों को 2 लाख रुपये का एकमुश्त लाभ देने की घोषणा की और अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी के लिए 65 प्रतिशत (50 प्रतिशत से ऊपर, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने तय किया था) तक आरक्षण बढ़ाने की भी घोषणा हुई.
जातिगत जनगणना की घोषणा करने वाला आंध्र प्रदेश, बिहार के बाद दूसरा राज्य बना. इसका सर्वे इसी साल 19 जनवरी को शुरू हुआ था. कांग्रेस सहित राजनीतिक दलों ने भी घोषणा की है कि अगर वे 2024 के लोकसभा चुनाव के बाद सत्ता में आते हैं तो वे देशव्यापी जातिगत जनगणना कराएंगे.
गौरतलब है कि कोरोना महामारी के चलते 2021 की जनगणना अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी गई थी. यह बीते 150 साल के इतिहास में पहली बार है दशकीय जनगणना में देरी हुई है.