नई दिल्ली: जातीय संघर्ष से प्रभावित मणिपुर में कुकी-ज़ो समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों ने सोमवार को बाहरी मणिपुर लोकसभा क्षेत्र में अपने उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला किया है. इस क्षेत्र में कुकी और नगा निर्णायक भूमिका में हैं.
डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) ने कहा कि जनजातियों के संगठनों के साथ परामर्श के बाद यह निर्णय लिया गया कि चल रहे संघर्ष के कारण समुदायों की दुर्दशा को देखते हुए कुकी-ज़ो समुदायों के किसी भी सदस्य को लोकसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल नहीं करना चाहिए.
आईटीएलएफ के अध्यक्ष पागिन हाओकिप और सचिव मुआन टोम्बिंग द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है, ‘भारतीय नागरिक के रूप में हम अपने समुदाय के सदस्यों को सलाह देते हैं कि वे लोकसभा चुनाव में मतदान करके अपने मताधिकार का प्रयोग करें, लेकिन बाहरी मणिपुर सांसद सीट के लिए चुनाव लड़ने से बचें.’
यह निर्णय उस दिन लिया गया जब भाजपा और उसकी सहयोगी नेशनल पीपुल्स पार्टी (एनपीपी) ने नगा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) के उम्मीदवार कचुई टिमोथी जिमिक, जो नगा समुदाय से संबंधित भारतीय राजस्व सेवा के पूर्व अधिकारी हैं, का समर्थन करने का फैसला किया है. 2019 के लोकसभा चुनावों में एनपीएफ नेता लोरहो एस. फोज़ बाहरी मणिपुर सीट से लोकसभा के लिए चुने गए थे. उन्हें भाजपा का समर्थन प्राप्त था.
कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों ने पूर्व नगा विधायक अल्फ्रेड के आर्थर को बाहरी मणिपुर सीट के लिए अपना उम्मीदवार बनाया है, जहां संघर्ष के मद्देनजर 19 और 26 अप्रैल को दो चरणों में मतदान होगा. इनर मणिपुर सीट पर कांग्रेस ने नई दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के प्रोफेसर अंगोमचा बिमोल अकोइजाम को अपना उम्मीदवार बनाया है.
भाजपा उम्मीदवार राज कुमार रंजन सिंह 2019 में मेईतेई बहुल इनर मणिपुर सीट से चुने गए थे. लेकिन पार्टी ने इस बार इनर मणिपुर सीट के लिए अपने उम्मीदवार का नाम अभी तय नहीं किया है.
मणिपुर में दो लोकसभा सीटें हैं. इनर मणिपुर निर्वाचन क्षेत्र में मेईतेई बहुल इंफाल घाटी में 32 विधानसभा सीटें हैं, जबकि अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित बाहरी मणिपुर निर्वाचन क्षेत्र में 28 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं.
28 विधानसभा सीटों में से 20 पहाड़ियों में फैली हुई हैं, जो नगा और कुकी-ज़ो लोगों के बीच लगभग समान रूप से विभाजित हैं. शेष आठ इंफाल घाटी के तलहटी क्षेत्रों में स्थित हैं.
मालूम हो कि बीते 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 200 से अधिक लोगों की जान चली गई है. यह हिंसा तब भड़की थी, जब बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किया गया था.
मणिपुर की आबादी में मेईतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी समुदाय शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.