नई दिल्ली: विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) ने राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) में एक अंकन प्रणाली लाने और पीएचडी कार्यक्रमों के लिए विश्वविद्यालयों द्वारा आयोजित अलग-अलग प्रवेश परीक्षाओं को समाप्त कर नेट को पीएचडी प्रवेश के लिए ‘एक राष्ट्रीय प्रवेश परीक्षा’ बनाने का निर्णय लिया है.
द हिंदू के अनुसार, यूजीसी के अध्यक्ष एम. जगदीश कुमार ने एक बयान में कहा कि शैक्षणिक सत्र 2024-2025 से देश भर के सभी विश्वविद्यालयों को पीएचडी प्रोग्राम्स में प्रवेश के लिए नेट स्कोर का उपयोग करने का अवसर मिलेगा, जो व्यक्तिगत विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों (एचईआई) द्वारा आयोजित अलग-अलग प्रवेश परीक्षाओं की आवश्यकता को खत्म करेगा.
उन्होंने दावा किया कि यह फैसला प्रवेश प्रक्रिया को सुव्यवस्थित करने और इच्छुक डॉक्टरेट उम्मीदवारों के लिए पहुंच बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है.
यूजीसी सचिव मनीष जोशी ने सभी विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षा संस्थानों को भेजे गए एक सार्वजनिक नोटिस में कहा है कि यूजीसी ने नेट के प्रावधानों की समीक्षा के लिए एक विशेषज्ञ समिति का गठन किया था और उसकी सिफारिशों के आधार पर यूजीसी ने 13 मार्च को निर्णय लिया कि नेट स्कोर का उपयोग पीएचडी प्रवेश के लिए किया जा सकता है.
उन्होंने कहा कि नेट उम्मीदवारों को तीन श्रेणियों में पात्र घोषित किया जाएगा- जेआरएफ के साथ पीएचडी में प्रवेश और सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति, जेआरएफ के बिना पीएचडी में प्रवेश और सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति और केवल पीएचडी कार्यक्रम में प्रवेश, जेआरएफ पुरस्कार या सहायक प्रोफेसर के रूप में नियुक्ति के लिए नहीं.
प्रोफेसर जोशी ने नोटिस में कहा है कि नेट का परिणाम पीएचडी में प्रवेश के लिए अंकों का उपयोग करने के लिए उम्मीदवार द्वारा प्राप्त अंकों के साथ प्रतिशत में घोषित किया जाएगा. नेट और पीएचडी पात्रता के लिए अर्हता प्राप्त करने वाले छात्रों को पीएचडी कार्यक्रमों में प्रवेश के लिए टेस्ट स्कोर में 70 प्रतिशत वेटेज और साक्षात्कार के लिए 30% वेटेज मिलेगा.
प्रो. कुमार ने कहा कि यह पहल छात्रों को कई तरह से लाभ पहुंचाएगी. उनका कहना है कि इसके बाद से छात्रों को विभिन्न विश्वविद्यालयों द्वारा आयोजित कई प्रवेश परीक्षाओं की तैयारी करने से राहत मिलेगी और इससे परीक्षा प्रबंधन और खर्चों का बोझ कम होगा.
विरोध में छात्र
हालांकि, छात्र संगठनों ने यूजीसी के इस फैसले की आलोचना की है. उनका कहना है कि यूजीसी का यह कदम विश्विद्यालय की स्वायत्ता कम करने और पीएचडी के इच्छुक शोधकर्ताओं को सिर्फ प्रवेश परीक्षा में पास होने की मशीन बनाने पर केंद्रित है.
स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) ने अपने एक बयान में कहा कि देश भर के सभी संस्थानों में पीएचडी के लिए नेट को अनिवार्य बनाना विश्वविद्यालय स्तर की प्रवेश परीक्षाओं को खत्म करने की मंशा रखता है. इससे संस्थानों की स्वायत्तता के साथ-साथ छात्रों के पात्रता प्राप्त करने के अवसर पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा.
एसएफआई ने आगे कहा, ‘नेट उत्तीर्ण करने के प्रमाणपत्र की वैधता पहले बताए गए दो वर्षों से घटाकर एक वर्ष कर दी गई है. इससे देश भर में कई आवेदकों को पीएचडी के लिए आवेदन करने का अवसर नहीं मिलेगा. साथ ही पीएचडी के इच्छुक शोधकर्ताओं को फिर से एक मशीन की तरह अपने शोध प्रस्ताव (जो उनके पीएचडी का मूल है) पर काम करने से समय कम करने और प्रवेश परीक्षा को फिर से क्रैक करने पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए मजबूर किया जाएगा.