नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में शादियों में ‘अनियंत्रित और अनुचित’ जश्न में की जाने वाली फायरिंग के अक्सर होने वाले विनाशकारी परिणामों पर प्रकाश डाला है, जिसमें कई बार निर्दोष लोगों की मौत या या चोट लगना भी शामिल होता है.
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, इतने वर्षों में यह दूसरी बार है जब अदालत ने बंदूक लहराने की संस्कृति के खिलाफ आवाज उठाई है.
फरवरी 2023 में अदालत ने उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में बंदूकों की आसान उपलब्धता और लोगों द्वारा इसे रखे जाने की निंदा की थी, जो ज्यादातर देसी या बिना लाइसेंस वाली बंदूकें रखते हैं.
हाल ही में शीर्ष अदालत में एक बार फिर ऐसे व्यक्ति की मौत का मामला सामने आया, जिसे 2016 में एक शादी में साथी मेहमान द्वारा चलाई गई गोली गर्दन में लगी थी.
जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की पीठ ने कहा, ‘विवाह समारोहों के दौरान जश्न में फायरिंग करना हमारे देश में एक दुर्भाग्यपूर्ण लेकिन प्रचलित प्रथा है. वर्तमान मामला इस तरह की अनियंत्रित और अनुचित जश्न फायरिंग के विनाशकारी परिणामों का प्रत्यक्ष उदाहरण है.’
आरोपी को हत्या के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उनकी अपील खारिज कर दी थी और उन्होंने राहत के लिए उच्चतम न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था.
फैसला लिखने वाले जस्टिस शर्मा ने उन्हें गैर-इरादतन हत्या का दोषी पाया, लेकिन हत्या का नहीं.
शीर्ष अदालत ने निष्कर्ष निकाला कि आरोपी और मरने वाले व्यक्ति के बीच पहले से कोई दुश्मनी नहीं थी. केवल एक ही गोली चलाई गई थी, जिसके चलते फ़ौरन पीड़ित की जान चली गई.
अदालत ने यह कहते हुए कि आरोपी अपनी सज़ा के आठ साल पहले ही काट चुका था, उन्हें तुरंत रिहा करने का आदेश दिया. जस्टिस शर्मा ने कहा कि ऐसी मौतें दुर्भाग्यपूर्ण हैं.
पिछले साल अदालत ने इसी तरह उत्तर प्रदेश में अवैध बंदूकों के कब्जे और इस्तेमाल से संबंधित बड़ी संख्या में मामलों पर दुख जाहिर करते हुए कहा था कि बंदूक रखने का अधिकार संविधान के तहत मौलिक अधिकार नहीं है.
जस्टिस केएम जोसेफ (अब सेवानिवृत्त) और जस्टिस बीवी नागरत्ना की पीठ का कहना था कि यह घटना परेशान करने वाली थी. पीठ हत्या के एक मामले में आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई कर रही थी.
शीर्ष अदालत ने कहा था, ‘भारतीय संविधान जीवन के संरक्षण को बहुत महत्व देता है. अवैध और बिना लाइसेंस वाले हथियारों का प्रसार रोकना होगा. यदि नहीं, तो यह कानून के शासन के लिए एक बड़ा झटका होगा.’