नई दिल्ली: अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ (एआईएफएफ) के कार्यकारी समिति सदस्य दीपक शर्मा की गिरफ्तारी के बाद एक बार फिर खेलों में महिला खिलाड़ियों के शोषण का मुद्दा सुर्खियों में है. दीपक शर्मा पर एक क्लब की दो महिला फुटबॉल खिलाड़ियों के साथ कथित तौर पर मारपीट और दुर्व्यवहार के आरोप में लगे हैं.
हालांकि, इस मामले में शासन और प्रशासन दोनों की सक्रियता जरूर नज़र आ रही है, लेकिन ऐसे कई खेल संघों में शोषण-उत्पीड़न के मामले पहले भी सामने आ चुके हैं, जिसमें कोई खास कार्रवाई नहीं हुई है.
बीते साल तत्कालीन भारतीय कुश्ती महासंघ के अध्यक्ष और भाजपा सांसद बृजभूषण शरण सिंह पर उठते सवालों और पहलवानों के प्रदर्शन ने देश ही नहीं, विदेशों में काफी सुर्खियां बटोरीं थी. महीनों चला यह संघर्ष अब तक अपने अंजाम तक नहीं पहुंच सका है और महिला खिलाड़ी अब भी न्याय का इंतज़ार कर रही हैं.
फुटबॉल और कुश्ती के अलावा अन्य खेलों में भी यौन हिंसा के मामले सामने आ चुके हैं. 28 जुलाई 2022 को राज्यसभा में पूछे सवाल एक सवाल के जवाब में केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर ने बताया था कि जनवरी 2017 से जुलाई 2022 के बीच भारतीय खेल प्रतिष्ठानों में यौन उत्पीड़न की 30 शिकायतें मिली थीं, जिनमें दो अनाम थीं.
मंत्रालय ने स्पष्ट नहीं किया कि क्या कार्रवाई हुई, लेकिन उसने दावा किया कि सभी 30 मामलों में उचित कदम उठाए गए.
खेलों में उत्पीड़न की कुछ प्रमुख शिकायतें
बीते साल 2023 में पहलवानों के प्रदर्शन के ठीक पहले हरियाणा में एक जूनियर महिला कोच ने तत्कालीन खेल मंत्री और भाजपा विधायक संदीप सिंह के खिलाफ यौन उत्पीड़न की शिकायत दर्ज करवाई थी. इसके बाद संदीप ने खेल मंत्रालय से इस्तीफा दे दिया लेकिन आज भी उनका कैबिनेट मंत्री का दर्जा बरकरार है. मामला फिलहाल कोर्ट में है और महिला कोच न्याय का इंतजार कर रही हैं.
जिस समय राजधानी के जंतर-मंतर पर पहलवान धरने पर बैठे थे, ठीक उसी समय 18 मई 2023 को असम के सोल गांव में भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) के ट्रेनिंग सेंटर में एक तैराकी कोच के ख़िलाफ़ शिकायत दर्ज की गई. कोच मृणाल बसुमतारी पर एक महिला भारोत्तोलन कोच और कई महिला एथलीटों, जिसमें नाबालिग भी शामिल हैं, ने यौन शोषण का आरोप लगाया. साई ने कोच को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया और असम पुलिस के पास शिकायत दर्ज करवाई. इस मामले में जांच अभी चल रही है.
इससे पहले अप्रैल 2023 में मुंबई में एक 56 वर्षीय बैडमिंटन कोच पर दस वर्षीय लड़की का यौन शोषण करने का आरोप लगा. शिकायत के मुताबिक़ कोच ने लड़की के साथ ड्रेसिंग रूम में अनुचित व्यवहार किया था. पुलिस ने इस मामले में कोच को गिरफ़्तार किया, लेकिन उसे मुंबई की विशेष अदालत से जमानत मिल गई. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मिली सफलता आपके बचाव का कारण नहीं हो सकती.
मार्च 2023 में उत्तराखंड के क्रिकेट कोच नरेंद्र शाह पर देहरादून में नाबालिग महिला खिलाड़ियों से यौन शोषण और छेड़छाड़ का आरोप लगा. इसके बाद 65 वर्षीय नरेंद्र शाह ने आत्महत्या करने की कोशिश की थी, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था. उनकी गिरफ़्तारी हुई थी, लेकिन जल्द ही उन्हें ज़मानत भी मिल गई थी.
जून 2022 में एक महिला साइकिलिस्ट ने भारतीय साइकिलिंग टीम के मुख्य कोच आरके शर्मा पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. महिला खिलाड़ी का कहना था कि शर्मा ने उन्हें पहले अपने कमरे में रहने के लिए मजबूर किया और फिर शारीरिक संबंध बनाने को लेकर नेशनल सेंटर फॉर एक्सीलेंस से निकालने की धमकी दी. इस मामले में साई ने जांच समिति की प्रारंभिक रिपोर्ट के बाद आरके शर्मा के साथ अनुबंध रद्द कर दिया था.
जून 2022 में ही भारतीय फुटबॉल महिला अंडर-17 टीम के सहायक कोच एलेक्स एम्ब्रोस पर भीएक नाबालिग लड़की के साथ कथित तौर पर दुर्व्यवहार करने का मामला दर्ज किया गया था. इस मामले में एलेक्स को निलंबित कर दिया गया था. एलेक्स ने आरोपों से इनकार करते हुए अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ को क़ानूनी नोटिस तक भेज दिया. फिलहाल एम्ब्रोस जमानत बाहर हैं.
जुलाई 2021 में चेन्नई में प्रसिद्ध एथलेटिक्स कोच पी. नागराजन पर सात महिलाओं ने मानसिक शोषण सहित यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए थे. शिकायत करने वाली लड़कियों के आरोप थे कि कोच ने फिजियोथेरेपी और स्ट्रेचिंग के दौरान महिला एथलीटों को अनुचित तरीके से छुआ. इसके बाद नागराजन गिरफ़्तार हुए और उनके ख़िलाफ़ आईपीसी और पॉक्सो की धाराओं के तहत मामला दर्ज किया गया.
26 अप्रैल 2021 को केरल की बास्केटबॉल खिलाड़ी लिथारा की आत्महत्या के चलते मौत हुई थी. उनके कोच रवि सिंह पर लिथारा को लगातार परेशान करने का आरोप लगा था. कोच के द्वारा शारीरिक और मानसिक शोषण की बातें भी सामने आई थीं. लिथारा के परिजन के मुताबिक, लिथारा ने इसी दबाव के चलते अपनी जान दे दी थी.
जनवरी 2020 में दिल्ली के एक क्रिकेट कोच पर एक नाबालिग खिलाड़ी से छेड़छाड़ का आरोप लगा. पीड़ित लड़की ने सोशल मीडिया पर अपना दर्द बयां किया था. इस मामले में पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया था.
साल 2014 में राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर खेल चुकी आदिवासी खो-खो खिलाड़ियों ने छत्तीसगढ़ के खो-खो संघ के सचिव, कोषाध्यक्ष और बालक वर्ग के कोच के ख़िलाफ़ यौन प्रताड़ना की शिकायत दर्ज करवाई थी. खिलाड़ियों का आरोप था कि उन्हें अश्लील फिल्में दिखाकर उसी तरह के कृत्य करने को कहा जाता था. जिन महिलाओं ने इसका विरोध किया उन महिलाओं को आगे खेलने या खेल शिविरों से बाहर निकल दिया जाता था. खिलाड़ियों ने खो-खो संघ के अध्यक्ष रामू की अश्लील हरकतें करते हुए क्लिपिंग बनाई और इसे बतौर सबूत सभी 11 खिलाड़ियों ने पेश किया था.
2015 में केरल के भारतीय खेल प्राधिकरण (साई) सेंटर में महिलाओं के यौन शोषण की घटना ने सभी को हिलाकर रख दिया. यहां चार महिला खिलाड़ियों ने आत्महत्या की कोशिश की थी, जिसमें से एक की मौत हो गई थी. उनका आरोप था कि वहां उनका शारीरिक शोषण हो रहा है और बर्दाश्त से बाहर होने पर उन सभी ने जहर खाकर खुदकुशी की कोशिश की.
थोड़ा और पीछे चलें, तो रुचिका गिरहोत्रा केस को कौन भूल सकता है. 12 अगस्त 1990 को 14 साल की टेनिस खिलाड़ी रुचिका गिरहोत्रा ने हरियाणा के तत्कालीन आईपीएस अफसर और ‘हरियाणा लॉन टेनिस एसोसिएशन’ के प्रेसिडेंट एसपीएस राठौड़ पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगाए. राठौड़ के खिलाफ शिकायत दर्ज होने के बाद रुचिका के भाई और पिता को टॉर्चर किया गया. आखिरकार, राठौड़ की यातनाओं से तंग आकर रुचिका ने 29 दिसंबर 1993 को जहर खाकर अपनी जान दे दी. इसके बावजूद राठौड़ के प्रमोशन होते रहे. वह हरियाणा के डीजीपी भी बने. उन्हें दोषी करार देने में एक दशक से ज्यादा का समय लगा और सजा भी बस 18 महीने की ही हुई.
इंडियन एक्सप्रेस की एक खबर के मुताबिक, ‘2010 से 2020 के बीच भारतीय खेल प्राधिकरण के पास यौन शोषण के 45 मामले दर्ज किए गए थे. इनमें से 29 में खिलाड़ियों ने कोच के ख़िलाफ़ आरोप लगाए थे. कोच के अलावा खेल संघों के प्रशासकों और अधिकारियों पर भी यौन शोषण के आरोप लग चुके हैं. इनमें भारतीय हॉकी संघ के पूर्व अध्यक्ष केपीएस गिल, बीसीसीआई के सीईओ रहे राहुल जौहरी समेत कई बड़े नाम शामिल हैं.‘
खेल महासंघों की भयावह स्थिति
खेलों में एक ओर यौन उत्पीड़न की खबरों में इजाफा हो रहा है, दूसरी ओर ऐसे कई महासंघ हैं, जिसमें आंतरिक शिकायत समिति (आईसीसी) ही नहीं है.
इंडियन एक्सप्रेस की पिछले साल मई में प्रकशित एक रिपोर्ट बताती है कि भारतीय जिम्नास्टिक महासंघ (जीएफआई), भारतीय टेबल टेनिस महासंघ (टीटीएफआई), भारतीय हैंडबॉल महासंघ (एचएफआई), भारतीय कुश्ती महासंघ (डब्ल्यूएफआई) और भारतीय वॉलीबॉल महासंघ (वीएफआई) ऐसे खेल महासंघ हैं जहां आईसीसी है ही नहीं. यह रिपोर्ट ठीक उसी समय आई थी, जब कुश्ती महासंघ के पदाधिकारियों के खिलाफ पहवानों का जोरदार प्रदर्शन लगातार जारी था.
भारतीय जूडो महासंघ (जेएफआई), भारतीय स्क्वैश रैकेट्स महासंघ (एसआरएफआई) और भारतीय बिलियर्ड्स एवं स्नूकर महासंघ (बीएसएफआई) में आईसीसी तो है, लेकिन उसमें केवल तीन-तीन सदस्य हैं. भारतीय एमेच्योर कबड्डी महासंघ (एकेएफआई) में भी आईसीसी है और उसमें केवल दो सदस्य हैं.
भारतीय बैडमिंटन संघ (बीएआई), भारतीय तीरंदाजी संघ (एएआई), भारतीय बास्केटबॉल महासंघ (बीएफआई), भारतीय ट्रायथलॉन महासंघ (आईटीएफ), भारतीय यॉटिंग संघ (वाईएआई), भारतीय कयाकिंग एवं केनोइंग संघ (आईकेसीए) और भारतीय भारोत्तोलन महासंघ (डब्ल्यूएफआई) में कोई बाहरी सदस्य नहीं है. वहीं, भारतीय बॉलिंग महासंघ (बीएफआई) के पास आईसीसी या किसी भी समान तंत्र का कोई सार्वजनिक रूप से उपलब्ध रिकॉर्ड नहीं है. ऐसे में ये समझना कोई रॉकेट साइंस नहीं कि यहां महिला खिलाड़ियों की स्थिति क्या होगी.
खेलों में हमेशा से पुरुषों का वर्चस्व रहा है. महिलाओं का अपने परिवारों से बाहर निकलकर खेलों में जगह बनाना जितना मुश्किल है, उससे कहीं मुश्किल है शोषण के माहौल में अपने संघर्ष को जारी रखना.