आईआईटी दिल्ली, कानपुर और बॉम्बे की प्लेसमेंट में इस साल भारी गिरावट देखी गई: रिपोर्ट

एक आरटीआई अर्ज़ी के जवाब में मिले आईआईटी प्लेसमेंट के आंकड़ों से यह भी पता चला है कि आईआईटी बॉम्बे में इस साल 36 प्रतिशत छात्र प्लेसमेंट पाने में असफल रहे हैं.

आईआईटी कानपुर, दिल्ली और बॉम्बे. (फोटो साभार: फेसबुक)

नई दिल्ली: भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) के फाइनल प्लेसमेंट में इस साल भारी गिरावट देखने को मिली है. देश के प्रमुख दिल्ली, बॉम्बे और कानपुर के आईआईटी में पिछले साल के मुकाबले इस साल कम छात्रों को अब तक नौकरियां मिल पाई हैं.

द टेलीग्राफ की एक रिपोर्ट के मुताबिक, शिक्षा विशेषज्ञों ने इस गिरावट के लिए छोटी कंपनियों और असंगठित क्षेत्र की कीमत पर मुट्ठी भर बड़ी कंपनियों के बीच नौकरियों के केंद्रित होने को जिम्मेदार बताया है.

हालांकि, किसी भी आईआईटी के प्रमुख ने इस संबंध में टेलीग्राफ के सवाल का जवाब नहीं दिया.

आईआईटी कानपुर के पूर्व छात्र और ग्लोबल आईआईटी एलुमनी सपोर्ट ग्रुप के संस्थापक धीरज सिंह ने पिछले तीन वर्षों के राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क डेटा को इस साल के अनुमाित प्लेसमेंट डेटा के साथ साझा किया है. इसमें छात्रों से बातचीत और आईआईटी दिल्ली से सूचना के अधिकार के तहत मिले जवाब को शामिल किया गया है.

प्राप्त जानकारी के मुताबिक, आईआईटी दिल्ली में इस साल 28 फरवरी तक 1,036 स्नातक छात्रों को प्लेसमेंट प्रदान किया गया, इसमें पंजीकृत छात्रों की कुल संख्या का कोई उल्लेख नहीं है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि सिंह ने पिछले साल के पंजीकृत छात्रों के डेटा को एक अनुमानित आधार आंकड़े के रूप में इस्तेमाल किया है. इसके अनुसार यदि 2023 की तरह प्लेसमेंट पंजीकरण छात्रों की संख्या इस साल भी 1,987 थी, तो इस बार 48 प्रतिशत छात्रों को नौकरियां नहीं मिल पाई हैं.

इस महीने की शुरुआत में करिअर 360 पोर्टल ने बताया था कि आईआईटी दिल्ली ने एक आरटीआई के जवाब में बताया है कि आईआईटी दिल्ली प्लेसमेंट ड्राइव 2024 के दौरान लगभग 1,000 छात्रों को लगभग 1,050 नौकरी के प्रस्ताव मिले हैं. हालांकि, संस्थान ने उन छात्रों के विवरण का खुलासा नहीं किया, जिन्हें यह प्रस्ताव प्राप्त हुए हैं, जो आरटीआई अनुरोध में मांगे गए थे.

अपनी जानकारी के आधार पर धीरज सिंह ने यह निष्कर्ष निकाला है कि आईआईटी दिल्ली ने साल 2023 और 2022 में क्रमशः 60 प्रतिशत और 66 प्रतिशत प्लेसमेंट दर्ज किए थे.

इसी तरह, आईआईटी कानपुर में इस साल अनुमानित प्लेसमेंट 69 प्रतिशत रहा, जबकि 2023 और 2022 में यह क्रमशः 91 प्रतिशत और 90 प्रतिशत था.

पिछले साल के आखिर में इंडियन एक्सप्रेस ने बताया था कि आईआईटी कानपुर के छात्रों को 2023-24 प्लेसमेंट सत्र के पहले चरण में 22 अंतरराष्ट्रीय प्रस्तावों सहित कुल 989 प्रस्ताव मिले थे.

रिपोर्ट में कहा गया था कि 989 ऑफर में से 913 प्री-प्लेसमेंट ऑफर हासिल करने वाले छात्र थे.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, धीरज सिंह द्वारा साझा किए गए आईआईटी प्लेसमेंट के आंकड़ों से यह भी पता चला है कि आईआईटी बॉम्बे में इस साल 36 प्रतिशत छात्र प्लेसमेंट पाने में असफल रहे.

इस साल 2024 में आईआईटी-बॉम्बे के पास प्लेसमेंट के लिए पंजीकृत लगभग 2,000 छात्रों में से 712 छात्रों को अभी तक नौकरी नहीं मिल पाई है. प्लेसमेंट सीज़न आधिकारिक तौर पर मई तक समाप्त हो जाएगा.

आईआईटी-बॉम्बे के प्लेसमेंट सेल के एक अधिकारी ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि वैश्विक आर्थिक मंदी के कारण पिछले साल की तुलना में इस साल कंपनियों को कैंपस में आमंत्रित करना संघर्ष था. अधिकांश कंपनियां संस्थान द्वारा पूर्व-निर्धारित वेतन पैकेज स्वीकार करने में असमर्थ थीं. उनके आने पर सहमत होने से पहले कई दौर की बातचीत हुई. कैंपस में प्लेसमंट के लिए आईं 380 कंपनियों में से एक बड़ा हिस्सा देसी कंपनियों का था. जबकि परंपरागत रूप से यहां अंतरराष्ट्रीय कंपनियां ज्यादा आती हैं.

उल्लेखनीय है कि वैश्विक आर्थिक चुनौतियों के कारण कम कैंपस भर्ती को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं. सिंह ने आईआईटी में जाति के आधार पर भेदभाव और योग्यता के सवाल के खिलाफ भी अभियान चलाया है.

श्रम अर्थशास्त्री संतोष मेहरोत्रा ​​ने टेलीग्राफ को बताया कि प्लेसमेंट में गिरावट का कारण असमान विकास हो सकता है, जहां बड़ी कंपनियां छोटी कंपनियों की कीमत पर समृद्ध हो रही हैं.

द वायर के लिए एक विश्लेषण में मेहरोत्रा ​​ने कहा था कि देश में शिक्षित बेरोजगारी तेजी से बढ़ी है. स्नातकों के लिए बेरोजगारी दर 19.2 प्रतिशत से बढ़कर 35.8 प्रतिशत हो गई है. वहीं पोस्ट ग्रेजुएट के लिए 21.3प्रतिशत से 36.2 प्रतिशत देखी गई है.

भारत पर अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की एक हालिया रिपोर्ट में कहा गया है कि देश का लगभग 82 प्रतिशत कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में संलग्न है और लगभग 90 प्रतिशत अनौपचारिक रूप से कार्यरत है. इसके अलावा औपचारिक क्षेत्र में नियमित श्रमिकों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अनौपचारिक है. यह प्रवृत्ति साल 2019 से 2022 के बीच बढ़ी थी.

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