नई दिल्ली: राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) ने 12वीं कक्षा की राजनीति विज्ञान की किताब में कई बड़े बदलाव करते हुए बाबरी मस्जिद, हिंदुत्व की राजनीति, 2002 के गुजरात दंगों और अल्पसंख्यकों से जुड़े कई संदर्भ हटा दिए हैं.
इसके अलावा इतिहास की किताब में ‘हड़प्पा सभ्यता की उत्पत्ति और पतन’ और आर्य आप्रवासन से जुड़े तथ्यों को लेकर भी बदलाव किए गए हैं. इन बदलावों के बारे में एनसीईआरटी ने गुरुवार (4 मार्च) को अपनी वेबसाइट पर बताया है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, पाठ्यक्रम में किए गए ये बदलाव इस शैक्षणिक सत्र से लागू होगें. एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकें केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड के तहत स्कूलों में पढ़ाई जाती हैं, जिससे भारत में लगभग 30,000 स्कूल जुड़े हुए हैं. बीते कुछ सालों में एनसीईआरटी ने सिलेबस में कई ऐसे और बदलाव भी किए है.
खबर बताती है कि राजनीति विज्ञान की किताब के चैप्टर 8 में ‘भारतीय राजनीति में हालिया घटनाक्रम’ से ‘अयोध्या विध्वंस’ का संदर्भ हटा दिया गया है. इसमें ‘राजनीतिक मोबिलाइजेशन के लिए राम जन्मभूमि आंदोलन और अयोध्या विध्वंस (बाबरी मस्जिद विध्वंस) की लेगेसी क्या है?’ इसे बदलकर ‘राम जन्मभूमि आंदोलन की विरासत क्या है?’ कर दिया गया है.
बाबरी मस्जिद और हिंदुत्व की राजनीति का जिक्र हटा
इसी चैप्टर से बाबरी मस्जिद और हिंदुत्व की राजनीति का जिक्र भी हटा दिया गया है. पूर्व में इस पैराग्राफ में लिखा था, ‘कई घटनाओं के नतीजे के रूप में दिसंबर 1992 में अयोध्या में विवादित ढांचे (जिसे बाबरी मस्जिद के नाम से जाना जाता था) को गिराया गया. यह घटना देश की राजनीति में कई बदलावों की शुरुआत का प्रतीक बनी और भारतीय राष्ट्रवाद और धर्मनिरपेक्षता की प्रकृति को लेकर बहस तेज हो गई. इसी के साथ देश में भाजपा का उदय हुआ और ‘हिंदुत्व’ की राजनीति तेज़ हुई.’
अब ये पैराग्राफ बदलकर नया पैराग्राफ कुछ इस तरह से लिखा गया है, ‘अयोध्या में राम जन्मभूमि मंदिर पर सदियों पुराने कानूनी और राजनीतिक विवाद ने भारत की राजनीति को प्रभावित करना शुरू कर दिया जिसने कई राजनीतिक परिवर्तनों को जन्म दिया. राम जन्मभूमि मंदिर आंदोलन, केंद्रीय मुद्दा बन गया, जिसने धर्मनिरपेक्षता और लोकतंत्र पर चर्चा की दिशा बदल दी. सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ के फैसले (9 नवंबर, 2019 को घोषित) के बाद इन बदलावों का नतीजा ये हुआ कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण हुआ.’
एनसीईआरटी ने इस बदलाव के लिए तर्क दिया है कि चैप्टर में नए बदलावों के साथ समन्वय बिठाने के लिए प्रश्नों को बदला गया है. संस्था ने कहा है कि ये बदलाव ‘राजनीति में हुए हालिया बदलावों’ को ध्यान में रखकर किया गया है.
गुजरात दंगों का संदर्भ हटा
एनसीईआरटी ने चैप्टर 5 में भी इसी तरह के कुछ बदलाव किए हैं. चैप्टर 5 में ‘लोकतांत्रिक अधिकार’ (डेमोक्रेटिक राइट्स) से गुजरात दंगों का संदर्भ हटा दिया गया है. इस चैप्टर में एक ‘न्यूज़ कोलाज’ दिया गया था जिसमें गुजरात के दंगों ज़िक्र था. पहले इस पैराग्राफ में लिखा था, ‘क्या आपने इस पेज पर न्यूज़ कोलाज में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) का संदर्भ देखा? ये संदर्भ मानव अधिकारों के प्रति बढ़ती जागरूकता और मानवीय गरिमा के लिए संघर्ष को दर्शाते हैं. कई क्षेत्रों में मानवाधिकार उल्लंघन के कई मामले सामने आए हैं, उदाहरण के लिए- गुजरात दंगे को पब्लिक नोटिस में लाया गया.’
अब इस पैराग्राफ को बदल दिया गया है और इसमें लिखा गया है- ‘देशभर में मानवाधिकार उल्लंघन के कई मामलों को पब्लिक नोटिस में लाया गया.’
गुजरात के दंगों का संदर्भ हटाने के पीछे एनसीईआरटी ने तर्क दिया है कि ‘न्यूज़ कोलाज और इसका कंटेंट एक ऐसी घटना का जिक्र करता है जो 20 साल पुरानी है और न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से हल हो चुकी है.’
खबर के मुताबिक, सिलेबस में कुछ जगहों पर, जहां मुसलमान समुदाय का ज़िक्र है उसमें भी बदलाव कर दिया गया है. चैप्टर 5 में, ‘अंडरस्टैंडिंग मार्जिनलाइजेशन’ से मुसलमानों को विकास के लाभों से ‘वंचित’ करने से जुड़ा संदर्भ हटा दिया गया है.
इस पैराग्राफ में अब तक लिखा था कि 2011 की जनगणना के अनुसार, मुस्लिम भारत की आबादी का 14.2% हैं और आज भारत में अन्य समुदायों की तुलना में वो हाशिए पर रहने वाला समुदाय माना जाता है. ये लोग सालों से सामाजिक-आर्थिक विकास के लाभों से वंचित हैं.
अब इसे बदले हुए पैराग्राफ में लिखा गया है- ‘2011 की जनगणना के अनुसार, मुस्लिम भारत की आबादी का 14.2% हैं. वे सामाजिक-आर्थिक विकास में तुलनात्मक रूप से कमज़ोर हैं और इस लिए उन्हें हाशिए पर रहने वाला समुदाय माना जाता है.’
हड़प्पा सभ्यता की ‘5000 वर्षों तक अटूट निरंतरता’ पर ज़ोर
इसी संबंध में इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट बताती है कि कक्षा 12वीं के छात्रों के लिए एनसीईआरटी की इतिहास की किताब में भी कई बदलाव किए गए हैं, जो इस तथ्य पर संदेह पैदा करते हैं कि आर्य भारत में आए थे. यह बदलाव मुख्य रूप से हड़प्पा सभ्यता की ‘5000 वर्षों तक अटूट निरंतरता’ पर ज़ोर देते हैं.
अख़बार के अनुसार, आर्य आप्रवासन को खारिज करने के लिए राखीगढ़ी स्थल पर किए गए हालिया पुरातत्व अनुसंधान का हवाला दिया गया है और सुझाव दिया गया है कि हड़प्पावासियों ने किसी तरह की लोकतांत्रिक प्रणाली अपनाई थी.
हड़प्पा सभ्यता की निरंतरता पर जोर देने के लिए एनसीईआरटी ने किताब से एक अहम वाक्य को हटा दिया है जिसमें कहा गया है कि ‘ऐसा लगता है कि प्रारंभिक हड़प्पा और हड़प्पा सभ्यता के बीच एक गैप यानी अंतर था, जो कुछ स्थलों पर बड़े पैमाने पर आगजनी से साफ़ है और कुछ बस्तियां छोड़े जाने से भी.’
एनसीईआरटी ने राखीगढ़ी में हालिया डीएनए अध्ययन पर तीन नए पैराग्राफ जोड़े हैं जो मुख्य रूप से आर्य आप्रवासन को खारिज करते हैं और इस बात पर जोर देते हैं कि ‘हड़प्पावासी इस क्षेत्र के मूल निवासी थे.’
उल्लेखनीय है कि एनसीईआरटी ने सिर्फ़ 12वीं के इतिहास की किताब में ही बदलाव नहीं किये हैं, बल्कि कक्षा 6 लेकर 12वीं तक के इतिहास, राजनीति विज्ञान और समाज शास्त्र की किताबों में कई बदलाव किए गए हैं.