‘निर्मल के अंदर कई सारे निर्मल रहते थे, उनकी जटिलता को उनके समय में रखकर ही देख सकते हैं’

निर्मल वर्मा की 96वीं जयंती पर उनकी असंकलित कहानियों के संग्रह ‘थिगलियाँ’ के लोकार्पण में उनकी जीवनसाथी गगन गिल ने कहा कि अच्छे लेखक की परतें उसके गुज़र जाने के कई वर्ष बीत जाने के बाद खुलती हैं.

(फोटो साभार: राजकमल प्रकाशन)

नई दिल्ली: ‘निर्मल वर्मा को कई बार लोग उनके किसी एक बयान के आधार पर इतनी आसानी से किसी एक धड़े से जुड़ा हुआ करार देते हैं. लेकिन वास्तविकता यह है कि किसी भी राजनीतिक सत्ता के साथ उनका रिश्ता कभी सहज नहीं रहा. निर्मल के अंदर कई सारे निर्मल रहते थे. उनकी जटिलता को हम उनके समय में रखकर ही देख सकते हैं. ‘

यह कहना था सुपरिचित कवि गगन गिल का, जो निर्मल वर्मा की जीवनसाथी रहीं, और मौका था निर्मल वर्मा की 96वीं जयंती पर बीते बुधवार (3 अप्रैल) को इंडिया हैबिटेट सेंटर में आयोजित ‘कृती निर्मल’ कार्यक्रम में उनकी असंकलित कहानियों के संग्रह ‘थिगलियाँ’ के लोकार्पण का.

इस अवसर पर गिल के साथ ही प्रख्यात इतिहासकार सुधीर चन्द्र, आलोचना त्रैमासिक के संपादक संजीव कुमार और कथाकर वन्दना राग समेत अनेक साहित्यप्रेमी मौजूद रहे. राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित इस संग्रह का संपादन गगन गिल ने किया है.

इस मौके पर लोकार्पणकर्ता सुधीर चन्द्र ने कहा, ‘निर्मल उन भारतीय लेखकों में से हैं जिनको मैंने सबसे ज्यादा पढ़ा है. उनके लेखन का मैं भक्त हूं. निर्मल वर्मा-गगन गिल पटपड़गंज के जिस अपार्टमेंट में रहते थे, उनके ऊपर के फ्लोर पर मैं और गीतांजलि रहते थे. उस समय शायद ही ऐसी कोई शाम होती थी जब हम चारों साथ न बैठे हों. आज मुझे उनकी किताब के लोकार्पण का अवसर मिला. मैं स्वयं को परम-सौभाग्यशाली समझता हूं.’

इसके बाद संजीव कुमार और वन्दना राग ने ‘थिगलियाँ’ संग्रह से कुछ कहानियों के अंशपाठ किए और निर्मल से जुड़े कुछ संस्मरण साझा किए.

संग्रह पर बातचीत के दौरान निर्मल वर्मा के साथ शुरुआती जुड़ाव के दिनों को याद करते हुए गगन गिल ने कहा, ‘निर्मल अपनी कहानियों में बच्चों की जो दुनिया रचते थे कि बच्चे बड़े लोगों को किस तरह से देखते हैं और उनके बारे में कैसे और क्या सोचते हैं, उसने मुझे बहुत परेशान भी किया और आकर्षित भी किया.’

आगे उन्होंने कहा, ‘निर्मल को कई बार लोग उनके किसी एक बयान के आधार पर इतनी आसानी से किसी एक धड़े से जुड़ा हुआ करार देते हैं. लेकिन वास्तविकता यह है कि किसी भी राजनीतिक सत्ता के साथ उनका रिश्ता कभी सहज नहीं रहा. निर्मल के अंदर कई सारे निर्मल रहते थे. उनकी जटिलता को हम उनके समय में रखकर ही देख सकते हैं. अच्छे लेखक की परतें उसके गुज़र जाने के कई वर्ष बीत जाने के बाद खुलती हैं. चले जाने के बाद कम वर्षों के भीतर लोग आलोचना अधिक करते है, तरह-तरह के टैग में उन्हें बांधे जाने का प्रयास किया जाता है. गंभीर लेखक की सही समझ और परख समय की मांग करती है. मुझे तो वो लेखक ही संदिग्ध लगता है जिसको उसके जीवन काल में ही समझ लिया गया हो.’

‘थिगलियाँ’ कहानी संग्रह के बारे में बोलते हुए राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक महेश्वरी कहा, ‘गगन जी ने इस संग्रह की भूमिका और कहानियों पर टिप्पणियों ने इस संग्रह की रचनाओं की एक पृष्ठभूमि पाठकों के सामने रख दीं हैं. किसी भी लेखक और उसकी रचनाओं के बारे में इतना आत्मीय मंथन वही कर सकता है, जिसने खुद इन्हें जिया हो. मैं आशा करता हूं कि हिंदी का निर्मल प्रेमी पाठक समाज इस पुस्तक का पुरजोर स्वागत करेगा.’

गौरतलब है कि निर्मल वर्मा के नए कहानी संग्रह ‘थिगलियाँ’ में उनकी अभी तक असंकलित और कुछ अप्रकाशित कहानियां पहली बार एक साथ प्रकाशित होकर पुस्तकाकार उपलब्ध हुईं हैं. इनमें 1954 में प्रकाशित उनकी कहानियों ‘रिश्ते’ और ‘बैगाटेल’ से लेकर 2005 प्रकाशित अन्तिम कहानी ‘अब कुछ नहीं’ भी शामिल हैं. साथ ही, उनके दो अपूर्ण उपन्यास भी इस संग्रह में संकलित हैं.