बाल यौन शोषण के मामलों को समझौते के आधार पर ख़ारिज नहीं किया जा सकता: हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह बात एक ऐसी याचिका पर सुनवाई करते हुए कही जिसमें नाबालिग के साथ बलात्कार करने के आरोपी ने दावा किया था कि उसका पीड़िता के साथ समझौता हो गया है, इसलिए उसके ख़िलाफ़ आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगाई जाए.

इलाहाबाद हाईकोर्ट. (फोटो साभार: विकिपीडिया/Vroomtrapit)

नई दिल्ली: इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने कहा है कि यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा या पॉक्सो जैसे ‘विशेष क़ानून’ के तहत अपराधों को केवल पीड़ित और अपराधी के बीच ‘समझौते’ के आधार पर खारिज नहीं किया जा सकता है.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस समित गोपाल की एकल न्यायाधीश पीठ ने 2 अप्रैल को एक फैसले में कहा, ‘एक बार जब नाबालिग अभियोजक की सहमति अपराध के पंजीकरण के लिए महत्वहीन हो जाती है, तो ऐसी सहमति समझौता सहित सभी चरणों में सभी व्यावहारिक उद्देश्यों के लिए महत्वहीन रहेगी. केवल इसलिए कि नाबालिग अभियोजक बाद में आवेदक के साथ समझौता करने के लिए सहमत हो गई है, यह कार्यवाही को रद्द करने के लिए पर्याप्त नहीं होगा.’

जज आरोपी के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग करने वाली एक याचिका पर सुनवाई कर रहे थे, जिसमें दावा किया गया था कि मामला दर्ज होने, जांच के निष्कर्ष और कथित अपराधों के लिए ट्रायल कोर्ट द्वारा आवेदक को तलब करने के बाद पक्षकारों के बीच समझौता हो गया, इसलिए लंबित मामले का फैसला इस मुताबिक किया जाए. पीड़िता के वकील ने भी आरोपी की याचिका का समर्थन किया.

आरोपी-आवेदक की याचिका का विरोध करते हुए सरकार के वकील ने कहा कि पीड़िता, जो अपराध के समय 15 वर्ष की थी, को तीन साल की अवधि तक यौन उत्पीड़न सहना पड़ा.

अदालत ने कहा, ‘यह स्पष्ट है कि जहां पीड़िता 18 वर्ष से कम उम्र की नाबालिग है, तो उसकी सहमति महत्वहीन होगी. जब आरोपी के खिलाफ इस तथ्य की परवाह किए बिना अपराध बनाया जाता है कि पीड़िता ने सहमति दी थी या नहीं, तो निश्चित रूप से अभियोजन को केवल इस आधार पर रद्द नहीं किया जा सकता कि बाद में अभियोजक ने समझौता कर लिया.’

टिप्पणी करते समय जज ने सुप्रीम कोर्ट के 2014 के फैसले का भी हवाला दिया जिसमें कहा गया था, ‘ऐसी शक्ति का प्रयोग उन अभियोजनों में नहीं किया जाना चाहिए जिनमें मानसिक विकृति के जघन्य और गंभीर अपराध या हत्या, बलात्कार, डकैती आदि जैसे अपराध शामिल होते हैं.  ऐसे अपराध निजी प्रकृति के नहीं होते और समाज पर गंभीर प्रभाव डालते हैं.’

न्यू इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, आरोपी याचिकाकर्ता ने समन और संज्ञान आदेशों को रद्द करने के साथ-साथ आरोपी के खिलाफ आज़मगढ़ में विशेष न्यायाधीश, पॉक्सो अदालत के समक्ष चल रही आपराधिक कार्यवाही पर रोक लगाने की मांग की थी. एफआईआर आज़मगढ़ जिले के बिलारीगंज पुलिस थाने में धारा 376 (बलात्कार), 313 (महिला की सहमति के बिना गर्भपात कराना) और आईपीसी की अन्य धाराओं और पॉक्सो अधिनियम की धारा 3/4 के तहत दर्ज की गई थी.