नई दिल्ली: मणिपुर में 3 मई 2023 को पहली बार हिंसा भड़कने के बाद से राज्य जातीय संघर्ष की चपेट में बना हुआ है, लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसी हफ्ते कहा है कि केंद्र सरकार के ‘समय पर हस्तक्षेप’ और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के ‘प्रयासों’ से राज्य की स्थिति में ‘उल्लेखनीय सुधार’ हुआ है.
उन्होंने सोमवार (8 अप्रैल) को असम ट्रिब्यून को दिए एक साक्षात्कार में यह दावा किया.
उन्होंने कहा, ‘हमारा मानना है कि स्थिति से संवेदनशीलता से निपटना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है. इस बारे में मैं पहले ही संसद में बोल चुका हूं. हमने संघर्ष को सुलझाने के लिए अपने सर्वोत्तम संसाधन और प्रशासनिक मशीनरी समर्पित कर दी है.‘
उन्होंने साथ ही कहा, ‘जब संघर्ष अपने चरम पर था तब गृहमंत्री अमित शाह मणिपुर में रहे और संघर्ष को सुलझाने में मदद के लिए विभिन्न हितधारकों के साथ 15 से अधिक बैठकें कीं. राज्य सरकार की आवश्यकता के अनुसार केंद्र सरकार लगातार अपना समर्थन दे रही है. राहत एवं पुनर्वास की प्रक्रिया जारी है. किए गए निवारक उपायों में राज्य के आश्रय शिविरों में रहने वाले लोगों के राहत और पुनर्वास के लिए एक वित्तीय पैकेज शामिल है.’
पूर्वोत्तर राज्य में हिंसा शुरू होने के 79 दिन बाद अपनी चुप्पी तोड़ने से लेकर, अपनी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के कारण संसद में बोलने के लिए मजबूर होने तक और हिंसाग्रस्त राज्य का दौरा करने में अपनी विफलता तथा पिछले 11 महीनों में राज्य में कानून-व्यवस्था के पतन से पता चलता है कि मोदी का ‘समय पर हस्तक्षेप’ का दावा खोखला है.
हिंसा की मार
28 फरवरी को मणिपुर की राज्यपाल अनुसुइया उइके द्वारा दिए गए आंकड़ों के अनुसार, 3 मई 2023 से तब तक कुल 219 लोग मारे गए थे.
राज्यपाल के आंकड़ों में यह भी दर्ज था कि 1,87,143 लोगों को एहतियात के तौर पर हिरासत में रखा गया था और बाद में रिहा कर दिया गया. हिंसा के संबंध में कम से कम 10,000 एफआईआर दर्ज की गई हैं.
उइके द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़े ही हिंसा की जांच करने में मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली भाजपा शासित राज्य सरकार की विफलता की ओर इशारा कर देते हैं, क्योंकि हथियार संबंधी हिंसा से जुड़े 38 मामले केंद्रीय एजेंसियों – केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) और राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) – को सौंपे गए हैं.
इसके अलावा, इंसाफ सुनिश्चित करने में राज्य सरकार की भूमिका पर सवाल खड़ा करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने पिछले साल 25 अगस्त को सीबीआई द्वारा जांच किए जा रहे मणिपुर हिंसा के कई मामलों की ट्रायल को असम स्थानांतरित करने का आदेश दिया था, जिनमें एक वायरल वीडियो में निर्वस्त्र कर घुमाई जा रही दो महिलाओं के यौन उत्पीड़न का मामला भी शामिल था. सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने राज्य सरकार सीबीआई, एनआईए से स्टेटस रिपोर्ट मांगी थी.
हिंसा को शुरू हुए ग्यारह महीने हो गए है और अब भी आंतरिक रूप से विस्थापित कुल 50,000 लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं.
हथियार लूटे गए, हिंसा जारी रही
जहां मोदी ने दावा किया है कि संकट को हल करने के लिए ‘सर्वोत्तम संसाधन और प्रशासनिक मशीनरी’ समर्पित की गई है, वहीं हिंसा में योगदान देने वाले हथियारों और गोला-बारूद की लूट के साथ-साथ ग्यारह महीने से हिंसा जारी है.
भीड़ द्वारा हथियार लूटे जाने की खबरें सबसे पहले घाटी के जिलों से आईं, जिसके बाद एन. बीरेन सिंह सरकार ने लोगों से उन्हें वापस करने का आग्रह किया.
लूटे गए हथियारों की वापसी की सुविधा के लिए इंफाल में विभिन्न स्थानों पर प्रावधान किए गए थे. हालांकि, राज्य पुलिस ने अब तक इसका केवल एक हिस्सा ही बरामद किया है.
अरामबाई तेंगगोल की समानांतर सरकार
इस बारे में भी सवाल उठाए गए हैं कि क्या कट्टरपंथी मेईतेई संगठन अरामबाई तेंगगोल को मुख्यमंत्री का समर्थन प्राप्त है. 27 फरवरी को इंफाल पश्चिम जिले के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक मोइरांगथेम अमित सिंह का कथित तौर पर अरामबाई तेंगगोल के बैनर तले 200 लोगों ने अपहरण कर लिया था.
इसके बाद पांच जिलों में मणिपुर पुलिस के जवानों ने अपहरण के खिलाफ हड़ताल पर उतर आए थे. जनवरी में, संगठन ने सभी 37 मेईतेई विधायकों और दो सांसदों को मणिपुर की क्षेत्रीय अखंडता को बनाए रखने की शपथ लेने के लिए इंफाल के कांगला किले में पहुंचने का आदेश दिया था. उनके नेताओं ने दो विधायकों के साथ मारपीट भी की. यह किला 1891 तक मणिपुर के राजाओं का निवास स्थान था. गौरतलब है कि संगठन का प्रमुख उस दिन पुलिस वाहन में किले में पहुंचा था.
दो सांसदों में मोदी सरकार के विदेश राज्य मंत्री राजकुमार रंजन सिंह और एल. सनजौबा (जो नाममात्र के लिए मणिपुर के राजा हैं और कांगला किला परिसर में रहते हैं) शामिल थे. सनजौबा को 2020 में भाजपा के समर्थन से राज्यसभा भेजा गया था और वह अरामबाई तेंगगोल के संस्थापक नेता हैं.
मोदी की लगातार चुप्पी
मोदी ने दावा किया है कि वह पहले ही इस मुद्दे पर संसद में बोल चुके हैं, लेकिन यह याद रखना चाहिए कि उन्हें सदन में बोलने के लिए अविश्वास प्रस्ताव की जरूरत पड़ी.
10 अगस्त को संसद में उनकी सरकार के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव के जवाब में – जो लगभग 2 घंटे 20 मिनट तक चला – मोदी ने मणिपुर के बारे में बमुश्किल दस मिनट तक बात की.
इससे पहले, मोदी ने इस मुद्दे पर चुप्पी बनाए रखी थी और 20 जुलाई 2023 को – हिंसा शुरू होने के 79 दिन बाद – उन्होंने संसद के बाहर बयान दिया था. गौरतलब है कि यह तब हुआ जब एक दिन पहले सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल हुआ था, जिसमें 4 मई को कांगपोकपी में दो कुकी महिलाओं को निर्वस्त्र कर घुमाते हुए दिखाया गया था.
मणिपुर का कोई दौरा नहीं
हिंसा शुरू होने के ग्यारह महीने बाद भी प्रधानमंत्री ने अभी तक संघर्षग्रस्त राज्य का दौरा नहीं किया है, जबकि विभिन्न एक्टिविस्ट्स और विपक्षी प्रतिनिधिमंडल राज्य का दौरा कर चुके हैं.
पिछले दो महीनों में मोदी ने कम से कम दो बार पड़ोसी असम का दौरा किया है, जिसमें काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान और टाइगर रिजर्व में एक हाथी और जीप सफारी शामिल है, लेकिन वे मणिपुर नहीं पहुंचे.
प्रधानमंत्री जो चुनावों के दौरान पूरे देश में बड़े पैमाने पर प्रचार करने के लिए जाने जाते हैं, उन्होंने बीते दिसंबर में मिजोरम विधानसभा चुनाव के दौरान प्रचार करने से भी परहेज किया, क्योंकि अक्टूबर माह में एनडीए गठबंधन का हिस्सा मिजो नेशनल फ्रंट के राज्य के तत्कालीन मुख्यमंत्री जोरामथांगा ने मणिपुर में चर्चों पर हमलों का हवाला देते हुए कहा था कि अगर मोदी चुनाव प्रचार के लिए आते हैं तो वह उनके साथ मंच साझा नहीं करेंगे.
मोदी का मणिपुर के भाजपा विधायकों से मिलने से इनकार
मणिपुर के विधायकों के कई बार राजधानी आने और मणिपुर भाजपा इकाई की ओर से राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिखकर प्रधानमंत्री को विधायकों के प्रतिनिधिमंडल से मिलने के लिए मनाए जाने का कहने के बावजूद मोदी ने विधायकों से मुलाकात नहीं की.
अमित शाह का दौरा
मोदी ने कहा है कि जब हिंसा अपने चरम पर थी तब गृहमंत्री शाह ने राज्य का दौरा किया था, लेकिन उन्होंने केवल हिंसा के पहले महीने में राज्य का दौरा किया था, तब से सैकड़ों लोग मारे गए हैं, हजारों विस्थापित हुए हैं और हिंसा जारी है.
शाह 29 मई से 2 जून 2023 तक मणिपुर में थे और उसके बाद से उन्होंने कोई दौरा नहीं किया है.
मुख्यमंत्री बीरेन सिंह को हटाने से इनकार
राज्य में जारी हिंसा और भाजपा के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह से असंतोष के बावजूद पार्टी ने उन्हें हटाने से इनकार कर दिया है और शाह ने तो संसद के अंदर उनका बचाव भी किया था.
संसद में अविश्वास प्रस्ताव पर बोलते हुए शाह ने कहा था कि सिंह को ‘बदलने की कोई ज़रूरत नहीं है’ क्योंकि उनका रवैया ‘सहयोगात्मक‘ रहा है.
इस रिपोर्ट को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.