नई दिल्ली: बीते 11 महीनों से जातीय संघर्ष से प्रभावित मणिपुर में कुकी नेशनल असेंबली (केएनए) ने शनिवार (13 अप्रैल) को कांगपोकपी जिले में कथित तौर पर घाटी के एक सशस्त्र समूह द्वारा दो ग्रामीण वालंटियर्स की हत्या की निंदा की और कुकी-ज़ो जनजातियों से अपील की कि वे जनजातियों के खिलाफ अत्याचार के विरोध में लोकसभा चुनाव में मतदान न करें.
खबरों के मुताबिक, बीते 13 अप्रैल को इंफाल पूर्वी जिले में दो सशस्त्र समूहों के बीच हुई गोलीबारी में दो लोगों की मौत हो गई थी, वहीं शुक्रवार (12 अप्रैल) को तेंगनौपाल जिले में सशस्त्र ग्रामीण वालंटियर्स और अज्ञात लोगों के बीच हुई गोलीबारी में तीन लोग घायल हो गए थे.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, एक बयान में केएनए ने आरोप लगाया कि सुरक्षा बलों द्वारा समर्थित अरामबाई तेंग्गोल ने कांगपोकपी के फेलेंगमोल क्षेत्र पर हमला किया और दो ग्रामीण वालंटियर्स को मार डाला.
केएनए ने अपने प्रवक्ता मंगबोई हाओकिप द्वारा हस्ताक्षरित एक बयान में कहा, ‘अगर भारत में पीड़ा सहना हमारा अधिकार माना जाता है, तो हम भारतीय संसद चुनावों में भाग नहीं लेने का विकल्प चुनते हैं.’
दोनों पक्षों के सशस्त्र समूह खुद को ‘ग्राम रक्षा वालंटियर्स’ (village defence volunteers) कहते हैं. हालांकि, मणिपुर में वालंटियर शब्द की यह परिभाषा सबसे विवादास्पद बन गई है क्योंकि ऐसी कोई व्यवस्था नहीं है जहां इन वालंटियर्स को ‘आत्मरक्षा’ के तहत और किसी भी निगरानी या जवाबदेही के अभाव में हत्या करने से रोका जा सके.
हाओकिप ने कहा, ‘यह निराशाजनक है कि चीन और पाकिस्तान से खतरों को रोकने और मुकाबला करने में सक्षम भारतीय सेनाएं निर्दोष नागरिकों की रक्षा करने में विफल रही हैं… इससे भारतीय संविधान और दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने के दावे पर से विश्वास उठ गया है.’
उन्होंने कहा, ‘मणिपुर में अल्पसंख्यक कुकी जातीय लोगों के प्रति दिखाई गई उदासीनता के मद्देनजर हम भारतीय नेतृत्व के प्रति अपनी पीड़ा व्यक्त करने के लिए 2024 के लोकसभा चुनावों में मतदान से दूर रहने के लिए मजबूर महसूस करते हैं.’
केएनए ने दावा किया है कि पहाड़ी पर हमला करने और दो ग्रामीण वालंटियर्स को मारने से पहले सेना ने अरामबाई तेंग्गोल को कवरिंग फायर दिया. हाओकिप ने आरोप लगाया कि शवों को क्षत-विक्षत किया गया और सड़क पर घसीटा गया. कथित तौर पर इस घटना के कथित वीडियो सोशल मीडिया पर सामने आए हैं.
हाओकिप ने कहा, ‘हम प्रत्येक कुकी-ज़ो जातीय व्यक्ति से कुकी इनपी मणिपुर और अन्य बौद्धिक समूहों द्वारा पारित चुनाव बहिष्कार प्रस्ताव का समर्थन करने का आग्रह करते हैं. यह बहिष्कार हमारे दुख और पीड़ा को भारत और दुनिया तक पहुंचाने का एक साधन है.’
केएनए उन कुकी-ज़ो समूहों की लंबी सूची में शामिल हो गया है, जिन्होंने लोकसभा चुनावों का बहिष्कार करने का आह्वान किया है. इससे पहले वैश्विक कुकी-ज़ोमी-हमार महिला समुदाय, कुकी-ज़ो महिलाओं का एक समूह, जिसमें पत्रकार, सामाजिक कार्यकर्ता, बाहरी मणिपुर के पूर्व सांसद किम गंगटे और दिल्ली में कुकी-ज़ोमी-हमार महिला मंचों के नेता शामिल हैं, ने मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार को पत्र लिखकर चुनाव का बहिष्कार करने के अपने फैसले के बारे में बताया था.
मणिपुर में दो लोकसभा सीटें हैं. इनर मणिपुर निर्वाचन क्षेत्र में मेईतेई बहुल इंफाल घाटी में 32 विधानसभा सीटें हैं, जबकि अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित बाहरी मणिपुर निर्वाचन क्षेत्र में 28 विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं.
शनिवार को जारी एक बयान में कुकी-ज़ो समूह इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) ने कहा, ‘केंद्रीय सुरक्षा बलों को शांति बनाए रखने और तटस्थ रहने के लिए तैनात किया गया है, लेकिन आज उनकी कार्रवाई ने लोकसभा चुनाव से पहले कई सवाल खड़े कर दिए हैं.’
बीते मार्च महीने में जातीय संघर्ष से प्रभावित मणिपुर में कुकी-ज़ो समुदायों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों ने बाहरी मणिपुर लोकसभा क्षेत्र में अपने उम्मीदवार नहीं उतारने का फैसला किया था.
वैली सिविल सोसाइटी समूहों के आरोप
घाटी के नागरिक समाज संगठनों ने जवाबी आरोप लगाए हैं कि जो किसान ईंधन के लिए लकड़ी इकट्ठा करने के लिए पहाड़ियों पर गए थे, उन्हें बंकरों में छिपे सशस्त्र समूहों द्वारा प्रताड़ित किया गया, मार डाला गया और क्षत-विक्षत कर दिया गया.
जनवरी में हुई हत्या का एक कथित वीडियो दिखाता है कि उनमें से एक जमीन की ओर मुंह करके लेटा हुआ था, उसकी गर्दन पर कुदाल से वार किया गया था, इससे पहले कि उसे असॉल्ट राइफल से पॉइंट-ब्लैंक रेंज से कई बार गोली मारी गई थी.
नागरिक समाज संगठनों का आरोप है कि घाटी से खेती के लिए तलहटी के पास जाने वाले किसी भी व्यक्ति को बिना किसी चेतावनी के गोली मार दी जाती है.
मालूम हो कि पिछले साल 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 200 से अधिक लोगों की जान चली गई है. यह हिंसा तब भड़की थी, जब बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किया गया था.
मणिपुर की आबादी में मेईतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी समुदाय शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.