नई दिल्ली: बुधवार शाम (17 अप्रैल) को अनंतनाग जिले में एक नागरिक की गोली मारकर हत्या कर दी गई, जिससे दक्षिण कश्मीर के कुछ हिस्सों में आक्रोश और दहशत फैल गई, जहां 7 मई को लोकसभा चुनाव होने हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, जम्मू-कश्मीर पुलिस के एक प्रवक्ता ने कहा कि पीड़ित की पहचान बिहार निवासी शंकर शाह के बेटे राजू शाह के रूप में हुई है, जो जीविकोपार्जन के लिए अनंतनाग के बिजबेहरा इलाके के जबलीपोरा गांव में बिलाल कॉलोनी में रह रहा था, जिन्हें बुधवार शाम को अज्ञात आतंकवादियों ने कई बार गोली मारी थी.
सूत्रों ने बताया कि पीड़ित को इलाज के लिए बिजबेहारा शहर के सरकारी अस्पताल ले जाया गया जहां उन्होंने दम तोड़ दिया. एक अधिकारी ने कहा कि पीड़ित को गर्दन और पेट में गोलियां लगी थीं जिससे तुरंत मौत हो गई.
एक सप्ताह में दक्षिण कश्मीर में नागरिकों पर यह दूसरा लक्षित हमला है और इस साल घाटी में ऐसी तीसरी घटना है, हालांकि केंद्र सरकार लगातार यह कहती रही है कि अनुच्छेद-370 हटाए जाने के बाद जम्मू-कश्मीर में सामान्य स्थिति लौट आई है.
हिंसा में वृद्धि निकट आने वाले लोकसभा चुनाव के साथ मेल खाती है, जो 5 अगस्त, 2019 को राज्य के विशेष दर्जा को हटाने और दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद जम्मू और कश्मीर में पहली बड़ी चुनावी प्रक्रिया होगी.
अनंतनाग जिला, जहां बुधवार को हमला हुआ, सीमांकित पीर पंजाल निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा है, जहां 7 मई को लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में मतदान होगा. यह हमला उस दिन हुआ जब दक्षिण कश्मीर के हिस्सों में चुनाव प्रचार तेज़ हो गया था.
चुनावी राजनीति
इससे एक दिन पहले जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्रियों – उमर अब्दुल्ला और महबूबा मुफ्ती ने अनंतनाग जिले के लारनू और कुलगाम जिले के देवसर में अलग-अलग सार्वजनिक रैलियां कीं, जो पीर पंजाल निर्वाचन क्षेत्र का भी हिस्सा है. महबूबा गुरुवार 18 अप्रैल को निर्वाचन क्षेत्र से अपना नामांकन पत्र दाखिल कर रही हैं.
नए निर्वाचन क्षेत्र में राजौरी और पुंछ जिले शामिल हैं जो 2022 के परिसीमन की कवायद से पहले जम्मू लोकसभा क्षेत्र का हिस्सा थे और श्रीनगर लोकसभा क्षेत्र के दो विधानसभा क्षेत्रों – बडगाम और बीरवाह- में शामिल थे.
महबूबा का मुकाबला नेशनल कॉन्फ्रेंस के आदिवासी नेता मियां अल्ताफ लारवी से है, जिन्हें पीर पंजाल पहाड़ों की तलहटी में फैले पुंछ और राजौरी जिलों में रहने वाले आदिवासी गुज्जरों और बक्करवालों का महत्वपूर्ण समर्थन प्राप्त है.
व्यवसायी से नेता बने और पूर्व पीडीपी नेता अल्ताफ बुखारी की अध्यक्षता वाली नवगठित अपनी पार्टी ने पूर्व जम्मू-कश्मीर पार्षद जफर मन्हास, एक अन्य पूर्व पीडीपी नेता, को निर्वाचन क्षेत्र से मैदान में उतारा है.
इसी दौरान एक चौंकाने वाले कदम में पूर्व कांग्रेस नेता और हाल ही में बनी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी (डीपीएपी) के अध्यक्ष गुलाम नबी आज़ाद ने बुधवार को कहा कि वह अपनी पार्टी द्वारा नामांकित किए जाने के एक दिन बाद प्रतियोगिता से बाहर हो रहे हैं.
बिना किसी स्पष्टीकरण के पार्टी ने कहा कि वकील सलीम पारे निर्वाचन क्षेत्र से डीपीएपी उम्मीदवार होंगे.
भाजपा ने भी आधिकारिक तौर पर घोषणा की है कि वह पीर पंजाल निर्वाचन क्षेत्र के लिए कोई उम्मीदवार नहीं उतारेगी, जिसे राजनीतिक पर्यवेक्षक बुखारी के उम्मीदवार को लाभ पहुंचाने के लिए एक रणनीतिक कदम के रूप में देखते हैं, जो जम्मू-कश्मीर में भाजपा के साथ अनौपचारिक गठबंधन में हैं.
हिंसा में वृद्धि
पीर पंजाल क्षेत्र में पिछले दो वर्षों में लक्षित हमलों की बढ़ोतरी देखी गई है, जिसमें सुरक्षा बलों को बड़ी संख्या में नुकसान हुआ है. 12 सितंबर को अनंतनाग के कोकेरनाग में एक हमले में सेना के एक कर्नल और मेजर और एक सब-इंस्पेक्टर की मौत हो गई थी.
हमले में लश्कर-ए-तैयबा का एक स्थानीय कमांडर शामिल था, जो बाद में एक विदेशी के साथ मुठभेड़ में मारा गया.
इससे पहले बुधवार को जम्मू-कश्मीर पुलिस ने अनंतनाग जिले के निकटवर्ती नैना इलाके में दो संदिग्ध आतंकवादी सहयोगियों को गिरफ्तार करने का दावा किया था. सेना के एक प्रवक्ता ने कहा कि उनके कब्जे से एक बंदूक, एक हैंड ग्रेनेड और ‘युद्ध जैसे आयुध’ बरामद किए थे.
पिछले हफ्ते एक जर्मन जोड़े के साथ जा रहे दिल्ली के ड्राइवर दिलरंजीत सिंह को 8 अप्रैल को शोपियां जिले के एक रिसॉर्ट में अज्ञात आतंकवादियों ने गोली मारकर घायल कर दिया था.
फरवरी में पंजाब के अमृतसर के एक प्रवासी श्रमिक अमृतपाल सिंह की श्रीनगर के हब्बा कदल क्षेत्र के शल्ला कदल इलाके में गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. एक अन्य प्रवासी श्रमिक रोहित माशी, जो अमृतसर का रहने वाला था, हमले में घायल हो गया और बाद में उनकी मौत हो गई.
हिंसा में बढ़ोतरी 2022 में कश्मीर में लक्षित हत्याओं की लहर की याद दिलाती है जिसमें दस प्रवासी श्रमिकों और चार कश्मीरी पंडितों की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी, जिससे अल्पसंख्यक समुदाय को घाटी से भागने के लिए मजबूर होना पड़ा था.
पुलिस ने हमलों के लिए लश्कर-ए-तैयबा की एक संदिग्ध शाखा द रेज़िस्टेंस फ्रंट को दोषी ठहराया था और दावा किया था कि यह 2019 की घटनाओं के बाद कश्मीर में ‘शांति भंग करने’ की पाकिस्तान समर्थित साजिश है.
साल 2022 में नागरिकों पर 31 लक्षित हमले हुए थे, पिछले साल जम्मू-कश्मीर में 14 ऐसी घटनाओं के साथ हिंसा कम हो गई. हालांकि, इन हमलों में कम से कम चार पुलिसकर्मी मारे गए, जबकि सुरक्षा बलों के हताहत होने की संख्या भी 2022 की तुलना में 2023 में बढ़ गई.