नई दिल्ली: मुंबई के टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़ (टिस) ने पीएचडी कर रहे एक दलित छात्र को कदाचार और राष्ट्र-विरोधी गतिविधियों के आरोप में दो साल के लिए निलंबित कर दिया है. इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, छात्र के निलंबन पर प्रोग्रेसिव स्टूडेंट्स फोरम (पीएसएफ) ने आरोप लगाया कि संस्थान का यह निर्णय केंद्र सरकार की कथित छात्र विरोधी नीतियों के खिलाफ जनवरी में दिल्ली में आयोजित एक विरोध मार्च में छात्र की भागीदारी से जुड़ा है.
हालांकि, संस्थान के प्रशासन का दावा है कि जिस छात्र को निलंबित किया गया है उसने ‘छात्रों के लिए बनाई गई अनुशासन संहिता का गंभीर उल्लंघन’ किया है.
खबर के मुताबिक, 18 अप्रैल को जारी निलंबन आदेश में छात्र रामदास प्रिनी शिवानंदन को टिस यानी टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस के सभी परिसरों से प्रतिबंधित कर दिया गया है. निलंबन आदेश में छात्र को भेजे गए 7 मार्च के कारण बताओ नोटिस का हवाला दिया गया है, जिसमें संस्थान के मुंबई परिसर में अन्य गतिविधियों की सूची के साथ ही दिल्ली में आयोजित प्रदर्शन में उनकी भागीदारी पर सवाल उठाया गया था.
संस्थान ने छात्र रामदास को संबोधित करते हुए कहा है कि आपको भेजे नोटिस के बाद गठित एक समिति ने 17 अप्रैल को अपनी सिफारिशें सौंपी थीं. आदेश में लिखा है कि समिति ने आपके दो साल के निलंबन की सिफारिश की है और टिस के सभी परिसरों में आपका प्रवेश वर्जित रहेगा.
रामदास को संबोधित इस निलंबन आदेश में कहा गया है कि सिफारिशों को सक्षम प्राधिकारी द्वारा स्वीकार कर लिया गया है.
इससे पहले, 7 मार्च को जारी नोटिस में कहा गया था कि छात्र रामदास ने पीएसएफ-टिस के बैनर तले विरोध प्रदर्शन में भाग लेकर संस्थान के नाम का दुरुपयोग किया है. नोटिस के अनुसार, चूंकि पीएसएफ संस्थान का मान्यता प्राप्त छात्र निकाय नहीं है, इसलिए रामदास ने नाम का उपयोग करके संस्थान के बारे में गलत धारणा बनाई है.
रिपोर्ट के अनुसार, जनवरी में ‘संसद मार्च’ का आयोजन राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी)-2020 के खिलाफ 16 छात्र संगठनों के संयुक्त मंच यूनाइटेड स्टूडेंट्स ऑफ इंडिया के बैनर तले ‘शिक्षा बचाओ, एनईपी को अस्वीकार करो, भारत बचाओ, भाजपा को अस्वीकार करो’ नारे के साथ किया गया था.
शुक्रवार को पीएसएफ द्वारा जारी एक बयान में कहा गया कि संसद मार्च राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 के रूप में सत्तारूढ़ भाजपा और उसकी छात्र विरोधी नीतियों के खिलाफ छात्रों की आवाज उठाने का एक प्रयास था. हालांकि, एक छात्र को दो साल के लिए निलंबित करके और उसकी पढ़ाई रोक कर टिस प्रशासन अप्रत्यक्ष रूप से भाजपा सरकार के खिलाफ सभी असंतोष को रोकने की कोशिश कर रहा है.
दलित समुदाय से आने वाले पीएचडी स्कॉलर रामदास पीएसएफ के पूर्व महासचिव और मौजूदा वक्त में स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) के केंद्रीय कार्यकारी समिति के सदस्य हैं. वे एसएफआई महाराष्ट्र राज्य समिति के संयुक्त सचिव भी हैं.
संस्थान ने 7 मार्च को जारी किए कारण बताओ नोटिस में रामदास द्वारा जनवरी से किए गए उनके सोशल मीडिया पोस्ट पर भी आपत्ति जताई थी, जिसमें उन्होंने छात्रों से 26 जनवरी को डॉक्यूमेंट्री ‘राम के नाम’ की स्क्रीनिंग में शामिल होने का आह्वान किया गया था. डॉक्यूमेंट्री स्क्रीनिंग को टिस ने अयोध्या में राम मंदिर उद्घाटन के खिलाफ अपमान और विरोध का प्रतीक माना था. ‘राम के नाम’ आनंद पटवर्धन की एक राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता डॉक्यूमेंट्री है.
पीएसएफ की ओर से शुक्रवार को जारी बयान में कहा गया कि टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस में इसकी आधिकारिक तौर पर कई बार स्क्रीनिंग की जा चुकी है. इसमें कहा गया है, ‘डॉक्यूमेंट्री जनता के देखने के लिए यूट्यूब पर भी उपलब्ध है और इसे दूरदर्शन पर भी प्रदर्शित किया जा चुका है.’ इसमें आगे कहा गया है कि वर्तमान टिस प्रशासन उन आवाज़ों को ऑनलाइन मंच पर भी सेंसर करना चाहता है जो छात्र उठाना चाहते हैं.
संस्थान के नोटिस के मुताबिक, रामदास का पीएसएफ-टिस के बैनर तले अनधिकृत कार्यक्रम और प्रदर्शन आयोजित करने का इतिहास है. उन पर 28 जनवरी 2023 को भारत में प्रतिबंधित बीबीसी डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग, भगत सिंह मेमोरियल लेक्चर में ‘विवादास्पद’ वक्ताओं को बुलाने और देर रात में निदेशक के बंगले के बाहर नारेबाज़ी और धरना प्रदर्शन करने का आरोप है.
हालांकि रामदास इन घटनाओं पर टिप्पणी नहीं करना चाहते, लेकिन उनके करीबी एक छात्र ने कहा कि उन्होंने संस्थान द्वारा जारी किए गए सभी नोटिसों का जवाब दिया है. छात्र ने कहा, ‘उन्होंने 7 मार्च के नोटिस का भी जवाब दिया है. हम संस्थान द्वारा की गई कार्रवाई से हैरान हैं.’
पीएसएफ ने आरोप लगाया कि प्रशासन की कार्रवाइयां हाशिए की पृष्ठभूमि से आने वाले छात्रों के भविष्य की कीमत पर सत्तारूढ़ भाजपा सरकार के सक्रिय समर्थन की प्रवृत्ति को उजागर करती हैं.
पीएसएफ द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है, ‘पहली पीढ़ी के शिक्षार्थी के रूप में, रामदास ने परिसर में छात्र अधिकारों का स्पष्ट रूप से बचाव किया है. एक कार्यकर्ता के रूप में अपने काम के अलावा, रामदास एक मेधावी छात्र भी हैं, जिन्होंने अपने उत्कृष्ट प्रदर्शन से भारत सरकार के सामाजिक न्याय मंत्रालय द्वारा यूजीसी-नेट परीक्षा में अनुसूचित जाति के लिए राष्ट्रीय फेलोशिप हासिल की है. टिस प्रशासन की निरंकुश कार्रवाइयां हाशिए पर रहने वाले छात्रों पर सीधा हमला है जो सरकारी वित्त पोषित संस्थानों में उच्च शिक्षा हासिल करने की उम्मीद करते हैं.
वहीं, संस्थान के एक अधिकारी ने बताया कि रामदास एक छात्र से अधिक एक राजनीतिक कार्यकर्ता की तरह हैं, वह छात्रों के लिए बनाई गई अनुशासन संहिता के कई उल्लंघनों में शामिल रहे हैं. इस तरह की गतिविधियां संस्थान का नाम खराब करती हैं और संस्थान में पढ़ने वाले अन्य छात्रों पर भी असर डालती हैं.