लोकसभा चुनाव: मध्य प्रदेश में तीसरे चरण में किसका पलड़ा भारी है?

लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में मंगलवार मध्य प्रदेश की नौ सीटों पर वोट डाले जाएंगे, जहां राज्य के दो पूर्व मुख्यमंत्रियों और एक केंद्रीय मंत्री की क़िस्मत दांव पर लगी है.

भाजपा नेता ज्योतिरादित्य सिंधिया, शिवराज सिंह चौहान, कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह. (सभी फोटो साभार: फेसबुक)

ग्वालियर: बीते साल मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में जीत दर्ज करने के बाद से भाजपा प्रदेश में अपनी ताकत को लेकर आश्वस्त है, लेकिन लोकसभा चुनावों के रण में वह कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती.

लोकसभा चुनाव के दो चरणों में मध्य प्रदेश की 12 लोकसभा सीटों पर मतदान हो चुका है. तीसरे चरण का मतदान मंगलवार (7 मई) को है, जिसमें राज्य की 9 सीटों पर वोट डाले जाएंगे. इनमें ग्वालियर-चंबल क्षेत्र की 4 (ग्वालियर, गुना, मुरैना, भिंड), मध्य क्षेत्र की 4 (भोपाल, विदिशा, राजगढ़, बैतूल) और बुंदेलखंड की एक (सागर) सीट शामिल हैं.

इस चरण में राज्य के दो पूर्व मुख्यमंत्री और एक केंद्रीय मंत्री की किस्मत दांव पर लगी है.

भारतीय जनता पार्टी के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान अपनी परंपरागत सीट विदिशा से चुनावी मैदान में हैं, तो वहीं पूर्व कांग्रेसी मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह भी राजगढ़ से चुनाव लड़ रहे हैं. राजगढ़ दिग्विजय का गृह क्षेत्र माना जाता है. वहीं, गुना से केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा उम्मीदवार हैं. उन्होंने पिछला चुनाव यहीं से कांग्रेस के टिकट पर लड़ा था और हार गए थे.

वर्तमान में इन सभी नौ सीटों पर भाजपा काबिज है. इसके बावजूद भी पार्टी ने 6 सीटों (ग्वालियर, गुना, मुरैना, भोपाल, विदिशा और सागर) पर मौजूदा सांसदों के टिकट काटे हैं.

हालांकि, ज़मीन पर भाजपा भले ही मजबूत नज़र आ रही है लेकिन कांग्रेस ने भी कुछ सीटों पर कड़ी चुनौती पेश करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. ग्वालियर, गुना, मुरैना, भिंड और राजगढ़ में कांग्रेस उम्मीदवारों की भी खासी चर्चा है, जो भाजपा के इन सभी नौ सीटों पर फिर से काबिज़ होने के सपने को तोड़ सकते हैं.

भोपाल भाजपा के लिए एक महत्वपूर्ण सीट है और साल 1989 से इस पर भाजपा का ही कब्जा है. पिछला चुनाव भाजपा प्रत्याशी प्रज्ञा सिंह ठाकुर ने दिग्विजय सिंह को 3,64,822 मतों से हराकर जीता था. इस बार उन्हें एक ही कार्यकाल के बाद हटाते हुए पार्टी ने अप्रत्याशित कदम उठाया. यह बदलाव इसलिए भी महत्वपूर्ण है कि पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने हिंदुत्व के इस लोकप्रिय चेहरे को बड़े जोर-शोर से उतारा था. 2008 के मालेगांव विस्फोट मामले के आरोपियों में से एक प्रज्ञा सिंह ठाकुर आरएसएस के युवा संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) और विश्व हिंदू परिषद (विहिप) की महिला इकाई दुर्गा वाहिनी से जुड़ी रही हैं.

2019 के चुनाव प्रचार के दौरान ही प्रज्ञा ठाकुर विवादों के केंद्र में आ गई थीं, जब उन्होंने महात्मा गांधी के हत्यारे नाथूराम गोडसे को लेकर कहा था कि वो देशभक्त थे, देशभक्त हैं और रहेंगे. बयान की व्यापक आलोचना के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस बारे में अफ़सोस जताते हुए कहा था कि कि ‘वह (प्रज्ञा) भले ही माफी मांग लें लेकिन मैं उन्हें मन से कभी माफ नहीं कर पाऊंगा.’

इस बार भाजपा ने पार्टी के उग्र हिंदुत्व की पहचान प्रज्ञा ठाकुर का टिकट काटते हुए भोपाल के पूर्व महापौर आलोक शर्मा को चुनावी मैदान में उतारा है. उधर, कांग्रेस ने एडवोकेट अरुण श्रीवास्तव को टिकट दिया है. दोनों का ही यह पहला लोकसभा चुनाव है.

मुरैना का क्षेत्र राज्य में 2018 के विधानसभा चुनावों के समय से ही भाजपा के लिए चुनौतीपूर्ण बना हुआ है. अगर 2019 का लोकसभा चुनाव छोड़ दें, तो 2018 के विधानसभा चुनाव, 2020 के विधानसभा उपचुनाव और 2023 के विधानसभा चुनाव में फिर से भाजपा को यहां लगातार हार मिली है. 2019 के लोकसभा चुनाव में भी इन 9 सीटों में भाजपा की जीत का सबसे कम अंतर (1,13,341) मुरैना में ही रहा था, वो भी तब जब ग्वालियर-चंबल अंचल के कद्दावर नेता और शीर्ष केंद्रीय मंत्रियों में शुमार नरेंद्र सिंह तोमर पार्टी उम्मीदवार थे.

तोमर अब राज्य विधानसभा अध्यक्ष हैं. मैदान में उनके खासमखास शिवमंगल सिंह तोमर हैं. शिवमंगल 2008 से 2018 के बीच दिमनी सीट से तीन बार विधानसभा चुनाव लड़ चुके हैं. उन्हें केवल 2008 में मात्र 256 मतों से जीत मिली थी, अगले दोनों चुनाव वह हारे. उनकी व्यक्तिगत दावेदारी भले ही कमजोर है, लेकिन उनके पक्ष में जो बात जाती है वो यह है कि 1996 से लगातार भाजपा इस सीट पर जीतती आई है.

कांग्रेस ने यहां सत्यपाल सिंह उर्फ नीटू सिकरवार पर दांव खेला है. सिकरवार 2013 में मुरैना जिले के सुमावली विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर विधायक रहे थे. 2018 में उन्होंने चुनाव नहीं लड़ा, क्योंकि भाजपा की ‘एक परिवार एक टिकट’ नीति के तहत उनके भाई सतीश सिकरवार को ग्वालियर पूर्व विधानसभा क्षेत्र से टिकट दिया गया था. 2020 में हुए उपचुनाव से पहले सतीश कांग्रेस में आ गए और ग्वालियर पूर्व से विधायक चुन लिए गए. सत्यपाल समेत सिकरवार परिवार भी भाजपा छोड़कर कांग्रेस में आ गया था. सत्यपाल के भाई सतीश ग्वालियर पूर्व से कांग्रेस विधायक हैं, तो वहीं उनकी भाभी शोभा सिकरवार ग्वालियर की महापौर हैं. उनके पिता भी विधायक रहे थे.

ठाकुर वर्चस्व वाली इस सीट पर दोनों ही पार्टी के उम्मीदवार ठाकुर हैं, हालांकि द वायर ने क्षेत्र के अपने दौरे में पाया कि जनता में नीटू की चर्चा अधिक है. वहीं, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की 25 अप्रैल की चुनावी सभा में देखी गईं खाली कुर्सियां भी भाजपा के लिए परेशानी का सबब हो सकती हैं.

इसलिए, भाजपा ने यहां भी जोड़-तोड़ का रुख अख्तियार किया है. इस सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस उम्मीदवार रहे और मौजूदा विजयपुर विधायक रामनिवास रावत को भाजपा की सदस्यता दिला दी है. रावत कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष भी थे और क्षेत्र में खासा प्रभाव रखते हैं.

हालांकि, बहुजन समाज पार्टी का भी यहां खासा वोट बैंक है. पिछले चुनाव में उसे करीब 1.30 लाख मत मिले थे. पार्टी ने जाने-पहचाने व्यवसायी रमेश चंद्र गर्ग को उम्मीदवार बनाया है, जो कांग्रेस छोड़कर कुछ दिनों पहले ही बसपा में आए थे और पहले भाजपा में भी रह चुके हैं. क्षेत्र में ब्राह्मण-वैश्य मतदाता की संख्या भी अच्छी-खासी है. ब्राह्मण-ठाकुर प्रतिद्वंद्विता के चलते कहा जा रहा है कि ब्राह्मणों के गर्ग की ओर लामबंद होने पर बसपा चुनावी नतीजों को प्रभावित कर सकती है.

ग्वालियर सीट की बात करें, तो भाजपा ने मौजूदा सांसद विवेक शेजवलकर का टिकट काटकर भारत सिंह कुशवाह पर दांव खेला है. वह दो बार के पूर्व विधायक हैं और शिवराज सरकार में मंत्री भी रहे थे. वहीं, कांग्रेस ने ग्वालियर दक्षिण विधानसभा के पूर्व विधायक प्रवीण पाठक को उम्मीदवार बनाया है. दिलचस्प यह है कि दोनों ही 2023 में अपनी-अपनी विधानसभा सीटों पर चुनाव हार गए थे.

लोकप्रियता के लिहाज से देखें तो पाठक की चर्चा अधिक नजर आती है. उनका चुनावी अभियान ‘शिक्षित बनाम अशिक्षित’ पर अधिक केंद्रित नजर आता है, जहां वह स्वयं को उच्च शिक्षित होने के चलते जनता की समस्याओं का समाधान करने में अधिक निपुण बताते हैं. लेकिन, लोकप्रियता से इतर देखें तो क्षेत्र में कुशवाह मतदाताओं की भारी संख्या, मोदी फैक्टर, राष्ट्रवाद और हिंदुत्व भारत सिंह कुशवाह और भाजपा के पक्ष में माहौल बनाते हैं.

बहरहाल, 2007 के लोकसभा उपचुनाव के बाद से इस सीट पर लगातार भाजपा जीतती आ रही है. पिछला चुनाव इसने 1,46,842 मतों से जीता था.

भिंड में मुकाबला इसलिए रोचक हो जाता है क्योंकि इस अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित सीट पर कांग्रेस ने भांडेर विधायक फूल सिंह बरैया को मैदान में उतारा है. प्रदेश में जब बसपा मजबूत स्थिति में थी तो बरैया राज्य में पार्टी का मुख्य चेहरा माने जाते थे. आज भी चंबल अंचल में अनुसूचित जाति के बड़े नेताओं में उनकी गिनती होती है. मायावती से मतभेद के चलते पार्टी से निष्कासित होने के बाद वह कांग्रेस में आ गए थे. वैसे 1989 से इस सीट पर भाजपा का कब्जा है. पार्टी ने मौजूदा सांसद संध्या राय को ही टिकट दिया है, जो पिछला चुनाव 1,99,885 मतों के बड़े अंतर से जीती थीं.

गुना सीट ग्वालियर के सिंधिया घराने का गढ़ मानी जाती रही है, लेकिन 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने इस गढ़ को ढहा दिया था. तब ज्योतिरादित्य सिंधिया कांग्रेस में थे. भाजपा ने उनके ही शागिर्द रहे केपी यादव को उम्मीदवार बनाया और 1,25,549 मतों से जीत दर्ज की. अब सिंधिया भाजपा में हैं. पार्टी ने मौजूदा सांसद केपी यादव का टिकट काटकर सिंधिया को ही उम्मीदवारी सौंपी है. कांग्रेस ने यहां से राव यादवेंद्र सिंह को मैदान में उतारा है.

यादवेंद्र पहले भाजपा में ही थे, जो 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले सिंधिया के भाजपा में आने का विरोध करते हुए कांग्रेस में शामिल हो गए थे. कांग्रेस ने उन्हें मुंगावली विधानसभा सीट पर चुनाव लड़ाया था, लेकिन वह जीत नहीं सके. उनके पिता देशराज सिंह भी भाजपा के वरिष्ठ नेता और विधायक रहे थे. पिता ने दो बार सिंधिया के खिलाफ लोकसभा चुनाव भी लड़ा था, लेकिन सफलता नहीं मिली.

यादवेंद्र ओबीसी समुदाय से आते हैं और यह सीट ओबीसी बहुल मानी जाती है. पिछली बार भी सिंधिया को हराने वाले केपी यादव ओबीसी ही थे.

रोचक यह है कि ‘कांग्रेसी सिंधिया’ के किले को पिछली बार उनके यानी कांग्रेस के ही एक बागी ने ढहाया था. इस बार भी ‘भाजपाई सिंधिया’ के किले को भाजपा का ही एक बागी चुनौती दे रहा है, जो ओबीसी भी है.

राजगढ़ सीट से कांग्रेस उम्मीदवार राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह हैं. 1984 और 1991 में वह यहां से पहले भी सांसद रह चुके हैं. हालांकि, 1989 में उन्हें इस सीट पर हार भी मिली थी. उनके भाई लक्ष्मण सिंह भी यहां से 5 बार सांसद रहे हैं. तीन दशक बाद इस सीट पर दिग्विजय की वापसी हुई है. उनका सामना भाजपा के रोडमल नागर से है, जो लगातार दो बार से सांसद चुनते आ रहे हैं. पिछला चुनाव नागर ने 4,31,019 मतों के विशाल अंतर से जीता था, जिसे पाटना दिग्विजय सिंह के लिए बड़ी चुनौती है. हालांकि, पिछले चुनाव में भी दिग्विजय सिंह के यहां से लड़ने के कयास लगाए जा रहे थे और कहा जा रहा था कि उनकी उम्मीदवारी कांग्रेस की एक सीट पक्की कर सकती है. लेकिन पार्टी की अंदरूनी राजनीति के चलते दिग्विजय भोपाल से साध्वी प्रज्ञा के सामने लड़े और हार गए.

इस बार दिग्विजय अपनी पसंदीदा सीट से मैदान में है और उनकी दावेदारी जनता से इस भावनात्मक अपील के इर्द-गिर्द घूम रही है कि 77 वर्ष की उम्र के इस पड़ाव में ‘राजा साहब’ यह आखिरी चुनाव लड़ रहे हैं.

विदिशा लोकसभा सीट तो शुरुआत से ही जनसंघ और भाजपा का गढ़ रही है. 1989 से यह भाजपा का ऐसा अभेद किला बना हुआ है, जहां से उसके कई दिग्गज नेता संसद पहुंचे हैं. जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के नाम शामिल हैं. इस बार चौहान ही भाजपा उम्मीदवार हैं, जो 1991 से 2004 तक लगातार यहां से पांच बार सांसद चुने गए थे. इन 9 सीटों में सबसे बड़े अंतर से पिछला चुनाव भाजपा ने विदिशा में ही जीता था. तब रमाकांत भार्गव 5,03,084 मतों से जीते थे. कांग्रेस ने यहां से प्रताप भानु वर्मा को उम्मीदवार बनाया है.

बैतूल अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित सीट है, जो 1996 से भाजपा के पास है. नागपुर से नज़दीकी के चलते इसे आरएसएस की प्रयोगशाला माना जाता है. पिछली बार भाजपा के दुर्गादास उइके ने कांग्रेस के रामू टेकाम को 3,60,241 मतों से हराया था. इस बार भी यह दोनों ही आमने-सामने हैं. बता दें कि बैतूल में दूसरे चरण में 26 अप्रैल को मतदान होना था, लेकिन बसपा उम्मीदवार के निधन के चलते मतदान की तारीख आगे बढ़ा दी गई.

सागर में भी भाजपा 1996 से काबिज है. पार्टी ने पिछला चुनाव 3,05,542 मतों से जीता था. हालांकि, लगातार पांचवीं बार ऐसा हो रहा है कि पार्टी ने इस सीट पर अपना चेहरा बदला है. इस बार भाजपा उम्मीदवार लता वानखेड़े हैं, जबकि पिछली बार राजबहादुर सिंह थे. हालांकि, इस सीट की चर्चा कांग्रेस उम्मीदवार को लेकर अधिक है. कांग्रेस ने गुड्डू राजा बुंदेला को टिकट दिया है, जो 2023 के विधानसभा चुनाव से पहले बसपा से कांग्रेस में आए थे. बुंदेला मूल रूप से उत्तर प्रदेश के ललितपुर से हैं, और यूपी से ही कांग्रेस सांसद रहे सुजान सिंह बुंदेला के बेटे हैं. वह चर्चा में इसलिए हैं क्योंकि जहां कांग्रेस पार्टी फंड के लिए जूझ रही है, वह अपने चुनावी प्रचार में जमकर पैसा बहा रहे हैं और हेलीकॉप्टर से प्रचार करते नजर आ रहे हैं.

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