नई दिल्ली: मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस एन. आनंद वेंकटेश ने शुक्रवार (26 अप्रैल) को एक दीवानी मुकदमे में अपने ही दिए एक फैसले की आलोचना करते हुए कहा कि इस पर पुनर्विचार की आवश्यकता है.
द हिंदू की खबर के मुताबिक, उन्होंने कहा कि उन्नति तब होती है जब आप जानते हैं कि आपने गलती की है और आप उसे सुधारने की इच्छा रखते हैं.
मद्रास बार एसोसिएशन (एमबीए) अकादमी और राकेश लॉ फाउंडेशन द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित एक व्याख्यान में जस्टिस वेंकटेश ने कहा कि उन्हें अपनी गलतियां स्वीकार करने में कोई झिझक नहीं है.
जस्टिस आनंद वेंकटेश ने 4 जून, 2018 को मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस के रूप में अपना पदभार संभाला था. उन्होंने अपनी पदोन्नति के बाद जस्टिस एमएम सुंदरेश (अब सुप्रीम कोर्ट के जज) के साथ एक खंडपीठ साझा करने के अपने अनुभव को याद करते हुए कहा कि जस्टिस सुंदरेश ने उन्हें प्रोत्साहित किया और पीठ के लिए कई फैसले लिखने दिए.
उन्होंने कहा, ऐसा ही एक फैसला उन्होंने 23 जुलाई 2018 को हर्षा एस्टेट्स बनाम पी. कल्याण चक्रवर्ती मामले में लिखा था. चूंकि तब उन्हें जज बने एक महीने से थोड़ा अधिक समय ही हुआ था, इसलिए यह फैसला उन्होंने अतिउत्साह में लिखा था, जो आम तौर पर एक नवनियुक्त जज के साथ होता है.
यह कहते हुए कि उस मामले में वरिष्ठ वकील श्रीराम पंचू ने विशिष्ट कार्य निष्पादन (Specific Performance) [कानूनी अनुबंध का उसकी शर्तों मुताबिक निष्पादन] की राहत से संबंधित मामले में बहस की थी, जस्टिस वेंकटेश बोले, ‘ तब, मैंने उनके खिलाफ फैसला दिया था… लेकिन आज मुझे लगता है कि मुझे इस पर एक स्पष्टीकरण देने की जरूरत है कि क्यों वह उस केस में सही थे.’
जस्टिस वेंकटेश ने कहा कि उन्होंने उस मामले में दो सिद्धांत निर्धारित किए थे. इसमें पहला यह था कि विशिष्ट कार्य निष्पादन के लिए मुकदमे में, यदि मुकदमा केवल एक समझौते को सरलता से लागू करने के लिए होता है और अन्य किसी राहत की मांग नहीं करता है, तो यह भूमि के लिए मुकदमे के दायरे में आएगा क्योंकि संपत्ति के कब्जे में राहत विशिष्ट कार्य निष्पादन की राहत में निहित होती है.
दूसरा सिद्धांत यह था कि विशिष्ट कार्य निष्पादन के लिए मुकदमे में, यदि वादी ने अतिरिक्त राहत की मांग की है- जैसे कि प्रतिवादी को कब्जे में हस्तक्षेप करने से रोकने के लिए निषेधाज्ञा- तो ऐसे मुकदमे भी लेटर्स पेटेंट के खंड 12 के तहत भूमि के मुकदमों के दायरे में आएंगे.
जस्टिस वेंकटेश ने अपने इन दोनों निर्धारित सिद्धांतों पर पुनर्विचार की जरूरत बताते हुए कहा कि उन्हें इस मामले में अपनी गलती का एहसास वरिष्ठ वकील आर. पार्थसारथी द्वारा इस विषय पर लिखे गए एक लेख को पढ़ने और वकील शरथ चंद्रन (जिन्हें वह मद्रास बार का ‘चमकता सितारा’ कहते हैं) के साथ इस विषय पर चर्चा के बाद हुआ.
उन्होंने आगे कहा, ‘यह रवैया बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि अंतत: उन्नति केवल सीखने से नहीं होती. न सीखने से भी उन्नति होती है… यहां एक संस्था शामिल है. इसमें कुछ भी व्यक्तिगत नहीं होता है. हर कोई गलती करता है और एक बार जब आपको पता चल जाए कि गलती हो गई है, तो यह बहुत महत्वपूर्ण है कि आप तुरंत इस तथ्य को स्वीकारें कि आपने गलती की है और इसे बदलने का प्रयास करें.’