नई दिल्ली: सत्ताधारी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपनी आय से ज्यादा खर्च कर रही है.
द वायर पर प्रकाशित एम. राजशेखर की रिपोर्ट बताती हैं कि वित्त वर्ष 2014-15 से 2022-23 के बीच भाजपा की कुल जितनी आय थी, पार्टी ने उससे करीब सात गुना ज्यादा कार्यालय बनवाने और प्रचार करने पर खर्च कर दिया.
सत्ता में आने के कुछ महीनों बाद अगस्त 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने घोषणा की कि देश के सभी राज्यों और जिलों में आधुनिक संचार सुविधाओं से लैस भाजपा का कार्यालय होना चाहिए.
घोषणा के बाद पार्टी अपने सुप्रीम लीडर के सपनों को साकार करने में जुट गई. अगले ही साल भाजपा ने देश के 694 में से 635 जिलों में नए कार्यालय बनाने का फैसला किया. मार्च 2023 तक लक्ष्य को बढ़ाकर 887 कर दिया गया.
साल 2020 में भाजपा के महासचिव अरुण सिंह ने इकोनॉमिक टाइम्स से बातचीत में कहा था, ‘पहले हमारे किसी एक विधायक या स्थानीय नेता के घर पर पार्टी कार्यालय हुआ करता था. इस वजह से कई दूसरे नेता कार्यालय आने से परहेज करते थे. चूंकि अब पार्टी बड़ी हो गई है, इसलिए उसके पास पुस्तकालय, सम्मेलन कक्ष और वीडियो और ऑडियो कॉन्फ्रेंसिंग रूम जैसी सभी सुविधाओं के साथ अपने कार्यालय होने चाहिए.’
मार्च 2023 में तमिलनाडु के कृष्णागिरी स्थित भाजपा कार्यालय समेत कुल 10 दफ्तरों का उद्घाटन हुआ था. इस मौके पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने संवाददाताओं से कहा था कि 290 जिला कार्यालयों पर काम पूरा हो चुका है. बाकी पर काम चल रहा है.
भाजपा के इस अभियान पर उतना ध्यान नहीं दिया गया जितना दिया जाना चाहिए था.
भव्य दफ्तर बना रही है भाजपा
बैंगलोर और चेन्नई के बीच राष्ट्रीय राजमार्ग पर बना कृष्णागिरी शहर का भाजपा कार्यालय पांच मंजिला है. इमारत की लंबाई 16 मीटर और चौड़ाई 12 मीटर है. पूरी इमारत को क्रीम और सफेद रंग के साथ नारंगी पुट दिया गया है. अगर इमारत के ऊपर बने भाजपा के चुनाव चिह्न- कमल और बड़ी-सी पार्किंग पर ध्यान न जाए, तो कोई इसे आवासीय अपार्टमेंट मानने की गलती कर सकता है.
हालांकि, कृष्णागिरी का पार्टी कार्यालय इकलौता नहीं है जो इतनी बड़ी जगह पर बना है. साल 2016 में टाइम्स ऑफ इंडिया ने ओडिशा के विभिन्न जिलों में नवनिर्मित भाजपा कार्यालयों पर खबर छापी थी. इस खबर के अनुसार ओडिशा के जिला कार्यालय करीब 10,000 वर्ग फुट में निर्मित हुए हैं. पार्किंग की अच्छी व्यवस्था है. कार्यालय के सम्मेलन कक्ष में 250-300 लोग आराम से बैठ सकते हैं.
अन्य जिला कार्यालय भी भव्य बनाए गए हैं. इस सूची में मणिपुर (थौबल), केरल (कन्नूर ) और हिमाचल प्रदेश (ऊना ) के पार्टी कार्यालय को शामिल किया जा सकता है.
2018 में पार्टी ने मध्य दिल्ली के दीन दयाल उपाध्याय मार्ग पर अपने नए 170,000 वर्ग फुट के मुख्यालय का अनावरण किया था, जो कनॉट प्लेस से एक किलोमीटर भी दूर नहीं है. उद्घाटन के मौके पर तत्कालीन पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था कि यह कार्यालय दुनिया के किसी भी अन्य राजनीतिक दल के कार्यालय से बड़ा है.
इससे पहले भाजपा का राष्ट्रीय कार्यालय 11, अशोक रोड पर था. भव्यता के स्तर पर यह कार्यालय नए मुख्यालय के सामने नहीं टिक पाएगा, लेकिन भाजपा अभी भी 11, अशोक रोड को अपने आईटी सेल के मुख्यालय और चुनाव ‘वॉर रूम’ के रूप में उपयोग कर रही है. जिस सड़क पर नया भाजपा मुख्यालय बना है, उसकी दूसरी तरफ वर्ष 2020 में नरेंद्र मोदी ने एक परिसर का उद्घाटन किया था. तब मीडिया ने बताया था कि इसका उपयोग पार्टी के महासचिव और मंत्री स्तर के नेता करेंगे.
साल 2021 में दिल्ली-जयपुर एक्सप्रेसवे पर सिग्नेचर टावर क्रॉसिंग पर गुड़गांव भाजपा के लिए एक नए कार्यालय का अनावरण किया गया था. कार्यालय को लेकर हिंदुस्तान टाइम्स में जो जानकारी छपी थी, उससे पता चलता है कि भाजपा का यह दफ्तर लगभग 100,000 वर्ग फुट के क्षेत्र में फैला हुआ है. इसके अलावा टू लेवल बेसमेंट पार्किंग की व्यवस्था है. सभागार इतना बड़ा है कि 600-700 लोग आराम से इकट्ठा हो सकते हैं. दो बड़े सम्मेलन कक्ष हैं. तमाम नेताओं और कार्यकर्ताओं के ठहरने की भी इंतजाम है. लेकिन इन सबको बनाने में कितना खर्च आया है, इसकी कोई जानकारी नहीं है.
भारत के शहरी इलाकों में कई और नए कार्यालय खुले हैं, जैसे- त्रिवेन्द्रम और ठाणे में. पार्टी दिल्ली भाजपा और मध्य प्रदेश भाजपा के लिए भी नए कार्यालय बना रही है. जैसा कि इकोनॉमिक टाइम्स ने 2023 में रिपोर्ट किया था, दिल्ली भाजपा का कार्यालय मध्य दिल्ली में 825 वर्ग मीटर के भूखंड पर बन रहा है; इमारत कुल 30,000 वर्ग फुट में होगी.
इसके अलावा मध्य प्रदेश भाजपा का नया कार्यालय भोपाल में बन रहा है. अनुमान है कि इसके निर्माण पर करीब 100 करोड़ रुपये का खर्च आ सकता है. असम भाजपा का पार्टी कार्यालय एक लाख वर्ग फुट में बनाया गया है, जिसमें एक गेस्ट हाउस, एक आधुनिक मीडिया सेंटर, मीटिंग हॉल और 350 सीटों वाला सभागार है. इसकी कीमत 25 करोड़ रुपये है.
हमें नहीं पता कि भाजपा कितनी इमारत बना रही है. पहले नड्डा ने 900 तक नए पार्टी कार्यालय बनाने का लक्ष्य रखा था.
भाजपा के बढ़ते संसाधन
देश में आय की असमानता 100 साल के उच्चतम स्तर पर है. लोग पहले की तरह बचत नहीं कर पा रहे हैं. लेकिन आम भारतीय की इन कठिनाइयों के बावजूद भाजपा की संपदा फैलती जा रही है. भाजपा न केवल चुनाव में सीट बढ़ा रही है, बल्कि जमकर चल और अचल संपत्ति भी जुटा रही है.
मार्च 2023 तक भाजपा के नकदी भंडार में 5,400 करोड़ रुपये थे. इस बीच उसकी अचल संपत्ति भी लगातार बढ़ रही है. चुनावों में भाजपा ने अन्य दलों की तुलना में अधिक पैसा बहाया है. सत्ता बनाए रखने के लिए भाजपा पर नेताओं का दलबदल कराने का आरोप भी लगता है. आखिर भाजपा के पास कितना पैसा है?
राजनीतिक दल अपनी आय-व्यय की जानकारी चुनाव आयोग को देते हैं. लेकिन पार्टियां अपनी पूरी आय नहीं बतातीं. जिन साधनों का इस्तेमाल कर वे सत्ता में आते हैं, अक्सर उनका खुलासा नहीं किया जाता है. द वायर से बातचीत में रायपुर के एक राजनीतिक पर्यवेक्षक ने कहा, ‘भाजपा के चुनावी प्रभुत्व का पता उसके वित्तीय प्रभुत्व से चलता है.’
यह अजीब है कि देश के राजनीतिक टिप्पणीकार भाजपा की विजयों पर किताब लिखते हुए उसकी तिजोरी की जांच नहीं करते. देश के लोगों को यह पता नहीं है कि 10 साल सत्ता में रहने के दौरान पार्टी ने कितनी कमाई की है. हालांकि पार्टी के दो मोटे खर्चों (निर्माण कार्य और चुनाव प्रचार) पर नज़र दौड़ाएं तो कुछ संकेत मिलते हैं. 2014 और 2023 के बीच भाजपा द्वारा आधिकारिक तौर पर घोषित आय 14,663 करोड़ रुपये था, जो उसके खर्चों से बहुत कम है.
भाजपा अपनी नई इमारतों पर कितना खर्च कर रही है?
पार्टी की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, 2014-15 और 2022-23 के बीच भाजपा ने जमीन हासिल करने और इमारतों को बनवाने पर 1,124 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. साल 2016 में प्रकाशित टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार ओडिशा में बनने वाले हर जिला कार्यालय की लागत 2 करोड़ रुपये से 3 करोड़ रुपये के बीच होगी. यह लगभग आठ साल पहले की बात है. भूमि दरों और निर्माण लागत में उछाल को देखते हुए, हाल की इमारतों की लागत अधिक होने की संभावना है.
उदाहरण के लिए कृष्णागिरी कार्यालय, चेन्नई-बैंगलोर राजमार्ग पर बना है, जो होसुर जिले के तेजी से विकसित हो रहे इलाके से बमुश्किल तीस मिनट की दूरी पर है. एक स्थानीय बिल्डर ने द वायर को बताया कि यहां जमीन की दरें 5,000 रुपये प्रति वर्ग फुट हैं, तो प्लॉट पर लगभग पांच करोड़ रुपये का खर्च आएगा. बेसिक इंफ्रास्ट्रक्चर पर 1,500 से 3,000 रुपये प्रति वर्ग फुट की लागत आ सकती है. उन्होंने निर्माण की संभावित लागत कम से कम 1.5 करोड़ रुपये आंकी. उन्होंने कहा, ‘तमाम सुविधाओं से लैस एक इमारत की लागत करीब 3 करोड़ रुपये होगी.’
मार्च 2023 में नड्डा ने कहा था कि 290 पार्टी कार्यालय पूरे हो चुके हैं. अगर एक जिला कार्यालय को बनाने में 3 करोड़ रुपये की लागत आयी होगी, तो 290 दफ्तरों के निर्माण पर भाजपा ने 870 करोड़ रुपये खर्च किए होंगे। अब पार्टी अपनी योजना के तहत 887 जिला कार्यालय बनाती है तो 2,661 करोड़ रुपये का खर्च बैठेगा। पार्टी बड़े शहरों में बड़े कार्यालय भी बना रही है. भजापा के गुवाहाटी कार्यालय की लागत 25 करोड़ रुपये है और भोपाल कार्यालय की लागत 100 करोड़ रुपये होने की संभावना है.
मान लें कि राज्य-स्तरीय बड़ा कार्यालय बनाने पर 25 करोड़ रुपये का खर्च आएगा. इस हिसाब से 36 (राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की कुल संख्या) बड़े कार्यालयों के निर्माण पर 900 करोड़ रुपये का खर्च आएगा. यानी कुल करीब 3,500 करोड़ रुपये खर्च होंगे.
यह संख्या अधिक हो सकती है. जिला कार्यालयों पर 3 करोड़ रुपए से अधिक की लागत आ सकती है. उदाहरण के लिए ओडिशा में जमीन का बाजार मूल्य बिक्री पत्र में लिखे मूल्य से अधिक बताया गया था. पार्टी हर राज्य में एक से अधिक बड़े कार्यालय बना सकती है.
इसके अलावा कुछ भी आरोप हैं, जैसे कांग्रेस नेता कमलनाथ का कहना है कि भाजपा ने सिर्फ अपने दिल्ली मुख्यालय पर 700 करोड़ रुपये खर्च किए हैं .
द वायर ने पार्टी की निर्माण योजनाओं और बजट के विवरण के लिए भाजपा के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष राजेश अग्रवाल को ईमेल किया है. पार्टी के संयुक्त कोषाध्यक्ष नरेश बंसल को भी सवाल ईमेल किए गए. दोनों को व्हाट्सएप पर इन ईमेल के बारे में जानकारी भी दी गई. उनके जवाब आने पर लेख में अपडेट कर दिया जाएगा.
चुनाव प्रचार पर कितना खर्च कर रही है भाजपा?
भाजपा की वार्षिक रिपोर्ट से पता चलता है कि पार्टी ने वित्त वर्ष 2015-16 से 2022-23 के बीच चुनाव प्रचार पर कुल 5,744 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. हालांकि, सेंटर फ़ॉर मीडिया स्टडीज़ (सीएमएस) जैसे स्वतंत्र अध्ययन संस्थान का मानना है कि भाजपा ने अकेले 2019 के चुनावों पर करीब 27,000 करोड़ रुपये खर्च किए हैं.
सीएमएस का यह भी मानना है कि 2019 के आम चुनावों में राजनीतिक दलों द्वारा किए गए कुल खर्च का लगभग 45% (60,000 करोड़ रुपये) अकेले भाजपा ने किया था. भाजपा के उम्मीदवारों ने भी चुनाव आयोग द्वारा तय सीमा (प्रति निर्वाचन क्षेत्र एक करोड़ रुपये) से ज्यादा खर्च किया है. 1998 के आम चुनावों में कुल व्यय में भाजपा की हिस्सेदारी बहुत मात्र 20% थी.
2024 के चुनावों में दोगुना खर्च (135,000 करोड़ रुपये) होने का अनुमान है. फिर, राज्य के चुनाव हैं. यहां भी भाजपा ने अपने प्रतिद्वंद्वियों को पछाड़ दिया है, रायपुर स्थित एक राजनीतिक पर्यवेक्षक ने आरोप लगाया कि पार्टी ने छत्तीसगढ़ विधानसभा चुनावों में प्रति सीट 3 से 4 करोड़ रुपये खर्च किए हैं. उन्होंने कहा, “यह उम्मीदवारों को दी गई नकदी है, न कि पार्टी सोशल मीडिया आदि पर जो खर्च करती है.”
एक विधानसभा सीट पर एक उम्मीदवार के लिए खर्च की सीमा 40 लाख रुपये है. भारत में कुल 4,123 विधानसभा क्षेत्र हैं. पिछले दस वर्षों में इनमें से प्रत्येक पर दो बार चुनाव हो गए हैं. प्रत्येक विधानसभा चुनाव पर औसतन 2 करोड़ रुपये का खर्च मानने पर भी यह 16,492 करोड़ रुपये बैठता है. द वायर ने अग्रवाल और बंसल से सीएमएस के अनुमान, छत्तीसगढ़ में पार्टी के खर्च के आरोपों और द वायर की गणना पर टिप्पणी करने के लिए कहा है. उनके जवाब मिलने पर लेख अपडेट कर दिया जाएगा.
फिर पैसे कहां से आ रहे हैं?
केवल इमारतों के निर्माण और चुनाव प्रचार का खर्च 74,053 करोड़ रुपये से 107,803 करोड़ रुपये के बीच पहुंच सकता है. यह 2014-15 से 2022-23 के बीच पार्टी की घोषित आय 14,663 करोड़ रुपये से पांच से सात गुना अधिक है. भाजपा को चुनावी बांड से जितना धन मिला है वह भी इसका 10% नहीं है. बता दें, 2017-18 से 2022-23 के बीच भाजपा को चुनावी बांड से 6500 करोड़ रुपये से ज्यादा मिले हैं.
भाजपा के खर्च पर एक नजर डालिए-
जिला कार्यालयों के निर्माण: 2,661 करोड़ रुपये
अन्य भवन: 900 करोड़ रुपये
राज्य चुनाव: 16,492 करोड़ रुपये
लोकसभा चुनाव: 54,000 करोड़ रुपये – 87,750 करोड़ रुपये
अतीत में भाजपा ने बार-बार कहा है कि उसकी इमारतों का वित्त पोषण पार्टी कार्यकर्ताओं के दान और स्वैच्छिक योगदान से होता है. हालांकि, उन पैसों को पहले ही पार्टी की वार्षिक रिपोर्ट में ‘स्वैच्छिक योगदान’ के अंतर्गत गिना गया होगा. स्पष्ट जानकारी के लिए द वायर ने अग्रवाल और बंसल से संपर्क किया है. पर उनसे जवाब नहीं मिला है.