नई दिल्ली: रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) का विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक जारी हो चुका है. 176 देशों की सूची में भारत 159वें स्थान पर है.
पिछले साल भारत 151वें स्थान पर था. आरएसएफ ने मोदी राज में प्रेस की स्वतंत्रता को संकट में बताया है. साथ ही, भारत में पत्रकारों के खिलाफ हो रही हिंसा और कुछ लोगों के हाथों में सिमटती जा रही मीडिया की बागडोर पर चिंता व्यक्त की है.
भारत पिछले साल की तुलना में इस बार दो पायदान ऊपर कैसे चढ़ गया है, इसे भी आरएसएफ स्पष्ट किया है.
आरएसएफ ने कहा है कि भारत का दो का पायदान ऊपर जाना ‘भ्रामक’ है. भारत की स्थिति और ज्यादा खराब हुई है. लेकिन पहले जो देश भारत से ऊपर थे उनकी स्थिति ज्यादा खराब हुई है, इसलिए भारत की स्थिति में सुधार नजर आ रहा है.
आरएसएफ ने जोड़ा, ‘हाल ही में अधिक कठोर कानून अपनाने के बावजूद भारत को दो पायदान ऊपर धकेल दिया गया. लेकिन इसकी स्थिति अभी भी लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है.’
भारत को लेकर आरएसएफ ने लिखा है, ‘2014 में नरेंद्र मोदी के सत्ता में आने के बाद से विभिन्न मामलों में प्रेस की स्वतंत्रता की स्थिति खराब हो गई है. रिलायंस इंडस्ट्रीज समूह के प्रमुख और प्रधानमंत्री मोदी के दोस्त मुकेश अंबानी 70 से अधिक मीडिया संस्थानों के मालिक हैं, जिसे कम से कम 80 करोड़ भारतीय देखते, पढ़ते और सुनते हैं. 2022 के अंत में पीएम मोदी के एक अन्य करीबी गौतम अडानी ने एनडीटीवी का अधिग्रहण कर लिया था. हाल के वर्षों में ‘गोदी मीडिया’ का उदय भी देखा गया है. …प्रधानमंत्री पत्रकारों के आलोचक हैं. वह पत्रकारों को ‘बिचौलियों’ की तरह देखते हैं जो उनके समर्थकों के साथ उनके सीधे संबंधों को खराब कर रहे हैं. ऐसे भारतीय पत्रकार, जो सरकार की आलोचना करते हैं, उन्हें भाजपा समर्थित ट्रोल्स के अभियानों का शिकार होना पड़ता है.’
भारत के कई पड़ोसी देश उससे थोड़े ऊपर हैं – पाकिस्तान 152वें, श्रीलंका 15वें, नेपाल 74वें और मालदीव 106वें स्थान पर है.
रैंकिंग के दूसरी ओर अफगानिस्तान 178वें, बांग्लादेश 165वें और म्यांमार 171वें स्थान पर है.
विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में पांच बिंदु शामिल होते हैं, जिनमें अंकों की गणना की जाती है और फिर देशों को रैंक दी जाती है. ये पांच – राजनीतिक संकेतक, आर्थिक संकेतक, विधायी संकेतक, सामाजिक संकेतक और सुरक्षा संकेतक हैं.