बंगाल: 25,000 स्कूली नियुक्तियां रद्द करने वाले कलकत्ता हाईकोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट की रोक

बीते 22 अप्रैल को कलकत्ता हाईकोर्ट ने 2016 में राज्य स्कूल सेवा आयोग द्वारा 25,753 शिक्षकों और ग़ैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्ति को रद्द कर दिया था. इसे चुनौती देते हुए पश्चिम बंगाल सरकार ने शीर्ष अदालत का रुख़ किया था.

(फोटो साभार: विकिपीडिया/Subhashish Panigrahi)

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को कलकत्ता हाईकोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी जिसमें पश्चिम बंगाल के सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में कार्यरत लगभग 25,000 शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की नियुक्तियों को उनके चयन में कथित गंभीर अनियमितताओं के चलते रद्द कर दिया था. इस घोटाले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) के पास है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने कथित अनियमितताओं में बिना किसी कठोर कार्रवाई के सीबीआई को अपनी जांच जारी रखने की अनुमति दी. बता दें कि इस घोटाले में हुईं अनियमितताओं के तहत खाली ओएमआर शीट वाले व्यक्तियों और चयनित नामों के पैनल से बाहर के लोगों को 2016 में पश्चिम बंगाल स्कूल चयन आयोग (एसएससी) द्वारा आयोजित भर्ती प्रक्रिया में चयनित किया गया था.

अदालत ने आगे स्पष्ट किया कि शिक्षकों को दी गई सुरक्षा इस शर्त के अधीन होगी कि यदि उनकी नियुक्ति अंततः अवैध पाई जाती है, तो वे इस आदेश की तारीख से अपने मामले में अंतिम निर्णय आने तक का अपना वेतन वापस करेंगे.

पिछले हफ्ते इसी मामले में शीर्ष अदालत ने हाईकोर्ट के 22 अप्रैल के आदेश के उस हिस्से पर रोक लगा दी थी, जिसमें अवैध नियुक्तियों को समायोजित करने के लिए अत्यधिक संख्या में पद सृजित करने के निर्णय के संबंध में सीबीआई को पश्चिम बंगाल के मंत्रियों और सरकारी अधिकारियों की जांच करने की अनुमति दी गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल उस आदेश को बरकरार रखा और मामले को आगे की सुनवाई के लिए स्थगित कर दिया.

मंगलवार का यह आदेश ममता बनर्जी सरकार को राहत देने वाला है, जो सीबीआई द्वारा जांच किए गए शिक्षक भर्ती घोटाले में कलकत्ता हाईकोर्ट द्वारा पारित आदेशों के बाद आलोचनाओं का सामना कर रही है.

बता दें कि सरकार ने 22 अप्रैल के आदेश के खिलाफ इस आधार पर अपील की थी कि 25,000 शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों की अचानक बर्खास्तगी से छात्रों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा क्योंकि कम अवधि के भीतर इतनी बड़ी संख्या में शिक्षकों की व्यवस्था करना संभव नहीं होगा. इसने आगे तर्क दिया था कि सीबीआई जांच के अनुसार भी लगभग 8,000 नियुक्तियां अवैध पाई गईं और इसलिए सभी नियुक्तियों को रद्द करना गलत है.

मामले में प्रभावित शिक्षकों द्वारा भी अलग-अलग याचिकाएं दायर की गई थीं. सभी याचिकाओं पर विचार करते हुए शीर्ष अदालत ने दागी उम्मीदवारों को बाकी उम्मीदवारों से अलग करने की संभावनाओं का पता लगाने के लिए करीब 4 घंटों तक दलीलें सुनीं.

जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा, ‘यह मुद्दा जांच का विषय है कि क्या विशेष तौर पर अवैध नियुक्तियों को परेशानी झेल रहीं वैध नियुक्तियों से अलग किया जा सकता है.यदि ऐसी प्रक्रिया संभव है तो 25,000 नियुक्तियों को रद्द करना अनुचित होगा.’

अदालतन ने माना कि ऐसा पृथक्करण संभव है, इसलिए इस उद्देश्य के लिए अपनाए जाने वाले तौर-तरीकों को निर्धारित करना होगा. चूंकि इसमें विस्तृत दलीलों की आवश्यकता होगी, इसलिए पीठ ने मामले को आगे की सुनवाई के लिए जुलाई में स्थगित कर दिया.

अदालत ने कहा, ‘यह स्पष्ट है कि कुछ नियुक्तियां दागदार हैं. हम सभी बर्खास्तगी पर रोक लगाने वाला एक व्यापक आदेश पारित नहीं कर सकते.’

साथ ही, पीठ उन 25,000 व्यक्तियों की आजीविका पर हाईकोर्ट के फैसले के प्रभाव के प्रति सचेत थी जो इतने वर्षों से सेवा में बने हुए हैं.

साथ ही. पीठ ने कहा, ‘अदालत बड़ी संख्या में कक्षा 9-12 के सहायक शिक्षकों को बर्खास्त करने से छात्रों पर पड़ने वाले प्रभाव को नजरअंदाज नहीं कर सकती है. अगर हाईकोर्ट के फैसले को बरकरार रखा जाता है तो इसके परिणाम होंगे.’

उल्लेखनीय है कि यह कथित भर्ती घोटाला 2014 का है, जब पश्चिम बंगाल प्राथमिक शिक्षा बोर्ड ने प्राथमिक स्कूलों के शिक्षकों की भर्ती के लिए शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) आयोजित की थी. साल 2021 में यह सामने आया कि कम टीईटी स्कोर वाले व्यक्तियों को शिक्षक पद दे दिए गए थे.

सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) इस मामले की जांच कर रहे हैं, जिसमें रिश्वतखोरी के माध्यम से टीईटी परिणामों में हेरफेर करने और अयोग्य उम्मीदवारों को भर्ती करने की साजिश में पूर्व शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी सहित सत्तारूढ़ दल के कई शीर्ष नेताओं को शामिल किया गया है.

पार्थ चटर्जी तृणमूल कांग्रेस सरकार में 2014 से 2021 तक शिक्षा मंत्री थे. चटर्जी की गिरफ्तारी के बाद उन्हें मंत्री पद से हटा दिया गया और तृणमूल कांग्रेस से निलंबित कर दिया गया.

मालूम हो कि मई 2023 में कलकत्ता हाईकोर्ट ने नियुक्ति प्रक्रिया में उचित प्रक्रिया का पालन नहीं होने पर लगभग 36,000 लोगों की नियुक्ति रद्द करने का आदेश दिया था, जो पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा प्रायोजित और सहायता प्राप्त स्कूलों में प्राथमिक शिक्षकों के रूप में भर्ती के समय अप्रशिक्षित थे.