नई दिल्ली: छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय ने कहा है कि लिव-इन रिलेशनशिप ‘भारतीय संस्कृति के लिए कलंक’ है और यह एक ‘आयातित धारणा’ है.
रिपोर्ट के अनुसार, जस्टिस गौतम भादुड़ी और संजय एस. अग्रवाल की पीठ ने एक व्यक्ति की उस अपील को खारिज कर दिया, जिसमें उसने एक महिला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में जन्मे बच्चे की कस्टडी की मांग की थी. पुरुष और महिला दोनों वयस्क हैं और अलग-अलग धर्मों के हैं.
हाईकोर्ट का यह 30 अप्रैल का आदेश हाल ही में सार्वजनिक हुआ है जिसमें उसने कहा है, ‘समाज के कुछ वर्गों में अपनाई जा रही लिव-इन रिलेशनशिप भारतीय संस्कृति के लिए कलंक बनी हुई है क्योंकि यह भारतीय सिद्धांतों की सामान्य अपेक्षाओं के विपरीत एक आयातित सोच है.’
इस बीच, हाईकोर्ट ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप में महिलाओं को समझना और उनकी सुरक्षा करना महत्वपूर्ण है.
अदालत ने आगे कहा, ‘विवाहित पुरुष के लिए लिव-इन रिलेशनशिप से बाहर निकलना बहुत आसान होता है और ऐसे मामले में अदालतें ऐसे तकलीफदेह लिव-इन रिश्ते से बचकर निकली महिला की बदहाली और ऐसे रिश्ते से जन्मे बच्चे के प्रति अपनी आंखें नहीं मूंद सकतीं.
हालांकि, अदालत ने यह भी कहा कि ‘वैवाहिक कर्तव्यों के प्रति उदासीनता’ ने संभवतः लिव-इन रिश्तों को बढ़ावा दिया है.
अदालत ने कहा, ‘…समाज के बारीकी से निरीक्षण से पता चलता है कि पश्चिमी देशों के सांस्कृतिक प्रभाव के कारण वैवाहिक संस्था अब लोगों को पहले की तरह नियंत्रित नहीं करती है और इस महत्वपूर्ण बदलाव और वैवाहिक कर्तव्यों के प्रति उदासीनता ने संभवतः लिव-इन-रिलेशनशिप की अवधारणा को जन्म दिया है.’
दंतेवाड़ा जिले के अब्दुल हमीद सिद्दीकी (43) ने अपनी याचिका में कहा था कि वह एक अलग धर्म की महिला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में थे और महिला ने एक बच्चे को जन्म दिया था.
याचिका में सिद्दीकी ने लिखा था कि उन्होंने 2021 में बिना धर्म परिवर्तन के बच्चे की मां से शादी की थी. रिपोर्ट में कहा गया है कि 10 अगस्त 2023 को सिद्दीकी ने मां और बच्चे को लापता पाया और अदालत में बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की, जिसके बाद महिला ने कहा कि वह अपने माता-पिता के साथ रह रही है.
इसी बीच, दंतेवाड़ा पारिवारिक अदालत ने सिद्दीकी को बच्चे की कस्टडी नहीं दी, तो उन्होंने हाईकोर्ट का रुख किया.
महिला उसकी दूसरी पत्नी थी, जिसने तर्क दिया कि चूंकि शादी विशेष विवाह अधिनियम के तहत हुई थी और इसलिए एक से अधिक पत्नी रखने वाला मुस्लिम कानून इस पर लागू नहीं होता है, अत: यह शादी अमान्य है.
छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट अकेला नहीं है जिसने लिव-इन रिलेशनशिप की आलोचना की हो. उत्तराखंड समान नागरिक संहिता की धारा 378 के तहत जो लोग लिव-इन रिलेशनशिप में हैं, उन्हें सरकारी अधिकरण में इसका पंजीकरण कराना आवश्यक है.
हालांकि, 2021 में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने एक लिव-इन जोड़े को सुरक्षा प्रदान की थी, जबकि इससे इसी न्यायालय की दो अन्य पीठों ने इस अवधारणा पर असहमति व्यक्त की थी.