नई दिल्ली: मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने रविवार को कहा कि 2023 में राज्य में 2,480 अवैध प्रवासियों का पता चला था, लेकिन पिछले साल 3 मई को हिंसा भड़कने के बाद उन्हें निर्वासित करने का अभियान बंद कर दिया गया.
टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक, एक संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए सिंह ने कहा कि बढ़ते वनों की कटाई और अवैध प्रवासियों द्वारा नए गांवों बनने को लेकर फरवरी 2023 में कैबिनेट की बैठक में दो कुकी मंत्रियों लेतपाओ हाओकिप और नेमचा किपगेन ने भाग लिया था और एक कैबिनेट उप-समिति गठित की गई थी. हाओकिप इस उप-समिति के अध्यक्ष बनाए गए थे.
सिंह ने कहा, ‘हम किसी के प्रति पक्षपाती नहीं हैं, बल्कि अवैध प्रवासियों के प्रति पक्षपाती हैं. यह राज्य मंत्रिमंडल द्वारा लिया गया निर्णय था. चंदेल के दस गांवों में बायोमेट्रिक्स लिया गया, जिसके दौरान 1,165 अवैध प्रवासी पाए गए, तेंगनौपाल जिले के 13 गांवों में 1,147, चूड़ाचांदपुर में 154 अवैध प्रवासी पाए गए और बाकी कामजोंग जिले में पाए गए.’
सिंह ने कहा कि इन आंकड़ों में कामजोंग जिले में प्रवेश करने वाले अतिरिक्त 5,457 अवैध प्रवासियों को शामिल नहीं किया गया है, 5,173 लोगों के बायोमेट्रिक्स लिए गए हैं, जबकि 329 पड़ोसी देश में स्थिति में सुधार के बाद स्वेच्छा से वापस लौट गए हैं.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्यमंत्री ने कहा कि म्यांमार के बाकी अवैध प्रवासी वर्तमान में अकेले कामजोंग जिले के आठ गांवों में राहत शिविरों में शरण ले रहे हैं.
मुख्यमंत्री के अनुसार, प्रवासियों को स्थानीय आबादी के साथ घुलने-मिलने से रोकने के लिए ये शिविर स्थानीय निवास स्थान से दूर स्थित हैं.
सिंह ने कहा, ‘राज्य की रक्षा के लिए जो पहले से ही अवैध प्रवासन, वन अतिक्रमण और पोस्ता की खेती से पैदा हुई विभिन्न चुनौतियों और खतरों से प्रभावित है, हम अवैध प्रवासियों का निर्वासन जारी रखेंगे.’
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, सिंह ने कहा, ‘अवैध प्रवासियों का पता लगाना केवल एक समुदाय तक सीमित नहीं था, बल्कि पूरे मणिपुर राज्य को कवर करना था. गांवों का दौरा करने के बाद वे मिले थे. हालांकि, अवैध प्रवासियों की पहचान करने का अभियान शुरू होने के एक महीने बाद ही बंद कर दिया गया था और 3 मई को हिंसा भड़कने के बाद इसे रोकना पड़ा.’
सिंह ने जिनेवा स्थित इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ ज्यूरिस्ट्स (आईसीजे) पर कड़ी निराशा व्यक्त की, जिसने हाल ही में भारतीय अधिकारियों को मणिपुर में निर्वासन रोकने का आदेश दिया था.
सिंह ने पूछा, ‘क्या संगठन को मूल निवासी आबादी के सामने आने वाली कठिनाइयों और अवैध प्रवासियों के कारण खड़ी हुई वनों की कटाई, जनसांख्यिकीय चुनौतियों और पोस्ते की खेती जैसे मुद्दों के बारे में पता है? यह एक गैर-जिम्मेदाराना बयान है. केंद्र और मणिपुर सरकार दोनों उनके अधीन नहीं हैं. निर्वासन भी जबरन नहीं किया गया था और कोई कानून नहीं तोड़ा गया था. म्यांमार के अधिकारी कागजी कार्रवाई और औपचारिकताएं पूरी करने के बाद उन्हें लेने आए थे.’
सिंह ने कहा, ‘जो एनजीओ धन कमाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं, उन्हें राज्य के मुद्दे में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए क्योंकि ये मूल निवासियों के अस्तित्व का मामला है.’
सिंह ने कहा, ‘हमें विस्थापित व्यक्तियों के बारे में जानकारी मिली है जो स्वयं सहायता समूहों से प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद सड़कों पर अपने उत्पाद बेच रहे हैं. हम उत्पादों को खरीदने और उन्हें उनकी ओर से बेचने के लिए एक टीम या एनजीओ को शामिल करेंगे.’
सिंह ने कहा, ‘हमने चुनाव आचार संहिता समाप्त होने के बाद राहत शिविरों में रहने वाले लोगों की बेहतरी के लिए भी कुछ करने की तैयारी की है.’
मालूम हो कि पिछले साल 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 200 से अधिक लोगों की जान चली गई है. यह हिंसा तब भड़की थी, जब बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किया गया था.
मणिपुर की आबादी में मेईतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी समुदाय शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.