नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में अनुपचारित (untreated) ठोस कचरे की स्थिति को ‘भयावह’ करार दिया और केंद्र से समस्या का तत्काल समाधान खोजने के लिए नगर निगम अधिकारियों के साथ बैठक बुलाने को कहा.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, जस्टिस एएस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि कचरे को कम करने के लिए किसी को भी चिंता नहीं है और कहा कि यह कुछ ऐसा है जो संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत स्वच्छ वातावरण में रहने के नागरिकों के जीवन के मौलिक अधिकार को सीधे प्रभावित करता है.
जस्टिस ओका ने कहा, ‘हम इस बारे में चिंतित हैं. सारी दुनिया क्या कहेगी? भारत की राजधानी में 2024 तक प्रतिदिन 3,800 टन कचरे का उपचार नहीं किया जा रहा है. 2025 में क्या होगा?’ अदालत ने कहा, ‘हर जगह स्थिति भयानक है.’
कोर्ट ने सुझाव मांगे और पूछा कि क्या निर्माण कार्य पर रोक लगानी होगी. पीठ ने कहा, ‘किसी को अपना दिमाग लगाना होगा. 2027 तक 6,000 टन अतिरिक्त अनुपचारित ठोस कचरा बनने से पहले इसे रोकना होगा.’
दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) की ओर से पेश होते हुए वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने कहा कि अत्यधिक मात्रा में ठोस कचरे से निपटने के लिए एक प्रणाली को सफल होने में तीन साल और लगेंगे और मौजूदा सुविधाओं में से कुछ को मुकदमेबाजी का सामना करना पड़ रहा है.
अदालत ने अपने आदेश में कहा, ‘सभी संबंधित पक्षों द्वारा यह स्वीकार किया गया है कि एमसीडी की सीमा के भीतर हर दिन 3,800 टन ठोस अपशिष्ट उत्पन्न होता है जिसका उपचार इस अर्थ में नहीं किया जा सकता है कि मौजूदा संयंत्रों में इसे उपचारित करने की क्षमता नहीं है. राजधानी दिल्ली में यह दुखद स्थिति है. हमें बताया गया है कि जून 2027 तक एक ऐसी सुविधा अस्तित्व में आ जाएगी जो 3,800 टन ठोस कचरे की अत्यधिक मात्रा से निपटने में सक्षम होगी, जिसका मतलब है कि अब से तीन साल से अधिक की अवधि के लिए दिल्ली में किसी न किसी जगह पर 3,800 टन ठोस कचरा जमा होगा.’
पीठ ने चेतावनी दी कि अगर हालात में सुधार नहीं हुआ तो वह सर्वोच्च निगम अधिकारी को तलब करेगी.
इसी बीच, केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय ने अदालत को सूचित किया कि गुरुग्राम, फरीदाबाद और ग्रेटर नोएडा जैसे शहरों में प्रतिदिन ठोस अपशिष्ट उत्पादन का दैनिक स्तर प्रसंस्करण क्षमता से अधिक है.
इस पर ध्यान देते हुए पीठ ने निर्देश दिया कि संबंधित लोगों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अनुपचारित ठोस कचरे की वर्तमान मात्रा तब तक नहीं बढ़नी चाहिए जब तक कि उचित सुविधाएं न हो जाएं और उन्हें निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध लगाने सहित विभिन्न तरीकों पर विचार करना चाहिए.
अधिकारियों की बैठक आयोजित करने का निर्देश देते हुए अदालत ने कहा कि यदि वे ठोस प्रस्ताव लाने में विफल रहे तो वह कठोर आदेश देने के लिए मजबूर होगी.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, सुनवाई के दौरान पीठ ने सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से कहा, जो किसी अन्य मामले में उसके समक्ष पेश हो रहे थे, कि केंद्र को इस मुद्दे पर भी गौर करना चाहिए.
पीठ ने कहा, ‘यह किस तरह का परिदृश्य है और हम पूरी दुनिया को क्या संकेत दे रहे हैं? हम विकास के बारे में बात करते हैं, हम पर्यावरण के बारे में बात करते हैं. हम क्या संकेत दे रहे हैं.’
इसमें यह भी पूछा गया कि क्या किसी प्राधिकरण ने यह अनुमान तैयार करने की कोशिश की है कि आने वाले वर्षों में दिल्ली में अनुपचारित ठोस कचरे की मात्रा कितनी बढ़ जाएगी.
एमसीडी की ओर से पेश वकील ने कहा, ‘इसमें प्रति वर्ष तीन प्रतिशत की वृद्धि होगी, जिसका अर्थ है प्रति दिन 330 मीट्रिक टन और इसका स्रोत दिल्ली का 2041 का मसौदा मास्टर प्लान है.’
पीठ ने मामले की अगली सुनवाई 26 जुलाई को तय की है.
बता दें कि 22 अप्रैल को मामले की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने इस बात को ‘चौंकाने वाला’ बताया था कि नगरपालिका द्वारा दिल्ली में प्रतिदिन निकलने वाले 11,000 टन ठोस कचरे में से 3,000 टन का निपटारा नहीं किया जाता था.