नई दिल्ली: कथित तौर पर मैनुअल स्कैवेंजिंग के कारण उत्तर प्रदेश और दिल्ली में दस दिनों में आठ लोगों की मौत पर चिंता व्यक्त करते हुए कार्यकर्ताओं ने उन लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई की मांग की, जो सफाई कर्मचारियों को सुरक्षा उपकरण के बिना सेप्टिक टैंक साफ करने के लिए मजबूर करने के लिए जिम्मेदार हैं.
डेक्कन हेराल्ड की रिपोर्ट के मुताबिक, दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच (डीएएसएएम) और जस्टिस न्यूज के बैनर तले कार्यकर्ताओं ने एक संवाददाता सम्मेलन में मांग की कि दोषियों की पहचान की जाए और मैनुअल स्कैवेंजिंग अधिनियम और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की संबंधित धाराओं के तहत तुरंत एफआईआर दर्ज की जाए.
पत्रकारों से बात करते हुए डीएएसएएम के सदस्यों ने आरोप लगाया कि 2 मई को लखनऊ के वजीरगंज इलाके में एक 57 वर्षीय व्यक्ति और उसके 30 वर्षीय बेटे की सीवर लाइन तैयार करते समय मृत्यु हो गई. उन्होंने आरोप लगाया कि जल निगम का कोई भी अधिकारी दो घंटे तक घटनास्थल पर नहीं गया और जब तक उन्हें अस्पताल ले जाया गया, उन्हें मृत घोषित कर दिया गया.
सुप्रीम कोर्ट के एक वरिष्ठ वकील और ह्यूमन राइट्स लॉ नेटवर्क के संस्थापक कॉलिन गोंजाल्विस ने कहा, ‘यह भयावह है कि सीवर लाइन को साफ करने के लिए श्रमिकों को बिना किसी प्रोटोकॉल, मशीन या ऑक्सीजन गियर के सीवर लाइन में उतरने के लिए मजबूर किया जाता है.’
प्रेस वार्ता में मौजूद स्वतंत्र पत्रकार राधिका बोर्डिया ने कहा कि 3 मई को नोएडा सेक्टर 26 में एक निजी आवास के सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय जहरीली गैस की चपेट में आने से दो दिहाड़ी मजदूरों की मौत हो गई. उन्होंने कहा, ‘मुगलसराय से एक और घटना की सूचना मिली है, जहां एक निजी आवास के सेप्टिक टैंक की सफाई करते समय चार लोगों की मौत हो गई.’
बोर्डिया ने कहा कि ऐसी घटनाओं के बाद भी पुलिस सख्त कार्रवाई नहीं करती.
एक अन्य कार्यकर्ता रोमा ने कहा, ‘मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट के तहत किसी भी पीड़ित के परिवार के सदस्यों के पुनर्वास, परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी और उचित मुआवजा देने का कानून है.’ उन्होंने कहा कि यह प्रक्रिया नहीं चल रही है.
उन्होंने कहा कि 12 मई को दिल्ली के रोहिणी में सीवर की सफाई के दौरान एक सफाई कर्मचारी की मौत हो गई थी.
ज्ञात हो कि उत्तर-पश्चिम दिल्ली के रोहिणी में एक मॉल के बाहर सीवर की सफाई के दौरान जहरीली गैस की चपेट में आने से 32 वर्षीय एक व्यक्ति की मौत हो गई और एक अन्य घायल हो गया.
दलित आदिवासी शक्ति अधिकार मंच के सदस्यों ने यह भी कहा कि उन्हें ऐसे मामलों में न्याय के लिए लड़ने के लिए संघ बनाने की जरूरत है.
मालूम हो कि देश में पहली बार 1993 में मैला ढोने की प्रथा पर प्रतिबंध लगाया गया था. इसके बाद 2013 में कानून बनाकर इस पर पूरी तरह से बैन लगाया गया. हालांकि आज भी समाज में मैला ढोने की प्रथा मौजूद है.
मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत किसी भी व्यक्ति को सीवर में भेजना पूरी तरह से प्रतिबंधित है. अगर किसी विषम परिस्थिति में सफाईकर्मी को सीवर के अंदर भेजा जाता है तो इसके लिए 27 तरह के नियमों का पालन करना होता है. हालांकि इन नियमों के लगातार उल्लंघन के चलते आए दिन सीवर सफाई के दौरान श्रमिकों की जान जाती है.