नई दिल्ली: मणिपुर में 8 मई से 13 मई के बीच कम से कम 13 लोगों का अपहरण कर लिया गया, जिनमें चार मणिपुर पुलिस के जवान, एक केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) का जवान, एक संदिग्ध ड्रग डीलर और पांच नागरिक शामिल हैं. इस संबंध में हिंदुस्तान टाइम्स ने अपनी रिपोर्ट में जानकारी दी है.
सुरक्षा बल के जवानों ने अखबार को बताया है कि अगवा किए गए लोगों की वास्तविक संख्या इससे भी अधिक हो सकती है, क्योंकि अक्सर परिवार पुलिस में रिपोर्ट दर्ज नहीं कराते हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि मणिपुर पुलिस ने इन मामलों में एफआईआर दर्ज की है और कम से कम 10 लोगों को गिरफ्तार किया है.
गिरफ्तार किए गए लोगों में से दो लोग प्रभावशाली मेईतेई संगठन अरामबाई तेंग्गोल के सदस्य हैं, जिन पर इंफाल पूर्व के कांगपोकपी जिले से चार पुलिसकर्मियों के अपहरण का आरोप है. इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक, 25 वर्षीय ताइबंगनबा सनौजम और 40 वर्षीय मोइरांगथेम बोबो पर अपहरण और शारीरिक हमला करने का आरोप लगाया गया है.
3 मई 2023 को जातीय हिंसा भड़कने के एक साल से अधिक समय बाद, अपहरणों ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि आज राज्य कितना विभाजित हो गया है. हालांकि हिंसा की तीव्रता कम हो गई है, लेकिन राज्य वस्तुतः दो भागों में विभाजित हो गया है, मेइतेई और कुकी-ज़ोमी समुदाय पूरी तरह से अलग-अलग जीवन जी रहे हैं.
इंडियन एक्सप्रेस ने अपनी रिपोर्ट में इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि यह विभाजन पुलिस तक भी फैल हुआ है: ‘गहरे विभाजन और संघर्ष द्वारा खींची गई लकीरों के कारण नागरिक आबादी की तरह ही कांगपोकपी जिले के कुकी-ज़ोमी पुलिसकर्मी – जहां वे बहुमत में हैं – अब राज्य के मेईतेई बहुल क्षेत्रों में काम नहीं करते हैं, वहीं मेईतेई पुलिसकर्मी भी कुकी-ज़ोमी बहुल क्षेत्रों में नहीं जाते हैं.’
एक केंद्रीय सुरक्षा अधिकारी ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया, ‘अगवा किए गए चारों पुलिसकर्मी न तो मेईतेई हैं और न ही कुकी. वे एक सहकर्मी (कुकी पुलिसकर्मी) के परित्यक्त (छोड़े गए) घर से कुछ घरेलू सामान लेकर लौट रहे थे, जिसे पिछले साल जातीय संघर्ष के दौरान अपना घर छोड़कर भागना पड़ा था. वह कुकी पुलिसकर्मी जातीय विभाजन के कारण घर नहीं लौट सका. अरामबाई तेंग्गोल को इसका पता लगा और रास्ते से चारों पुलिसकर्मियों का अपहरण कर लिया. उन्होनें पुलिसकर्मियों को यातना दिए जाने की तस्वीरें भी लीं ऐर घाटी में अपने वॉट्सऐप ग्रुप में फैला दीं.’
बता दें कि बीते एक वर्ष में हिंसा में अब तक राज्य में करीब 225 लोगों की जान गई है और कम से कम 50,000 लोग अभी भी विस्थापित हैं. पुलिस शस्त्रागार से हथियारों और गोला-बारूद की भी लूटपाट हुई है, जिनका इस्तेमाल हिंसा में हुआ है.
हिंदुस्तान टाइम्स के अनुसार, अपहरण और जबरन वसूली के मामलों में अचानक वृद्धि के लिए ‘आर्थिक नुकसान, बेरोजगारी, हथियार खरीदने या अभियान चलाने के लिए पैसे की आवश्यकता और नागरिक आबादी के बीच हथियारों और गोला-बारूद की मौजूदगी’ को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है.