भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने के ख़िलाफ़ मणिपुर, मिज़ोरम में प्रदर्शन, हज़ारों लोग सड़कों पर उतरे

केंद्र सरकार ने भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने और फ्री मूवमेंट रिजीम (एफएमआर) को रद्द करने की घोषणा की है. एफएमआर वर्तमान में सीमा के आसपास के निवासियों को औपचारिक दस्तावेज़ के बिना एक-दूसरे के क्षेत्र में 16 किलोमीटर तक जाने की अनुमति देता है.

मिज़ोरम में रैली में भाग ले रहे लोग. (फोटो साभार: X/@jon_suante)

नई दिल्ली: भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने और पड़ोसी देश के साथ फ्री मूवमेंट रिजीम (एफएमआर) को ख़त्म करने के केंद्र सरकार के फैसले का उत्तर पूर्वी राज्यों में खासा विरोध हुआ है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इसी कड़ी में गुरुवार को मणिपुर और मिजोरम में कुकी-ज़ो आदिवासी समुदाय के हजारों लोगों ने इसके विरोध में निकाली गई रैलियों में भाग लिया.

ज्ञात हो कि केंद्र ने सीमा के दूसरी ओर से ‘अवैध प्रवासन’ को रोकने के लिए भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने और एफएमआर को रद्द करने की घोषणा की है. यह निर्णय संभावित रूप से मुक्त आवाजाही व्यवस्था (Free Movement Regime) को समाप्त कर सकता है जो वर्तमान में सीमा के निवासियों को औपचारिक दस्तावेज के बिना एक-दूसरे के क्षेत्र में 16 किलोमीटर तक पार करने की अनुमति देता है.

मणिपुर और केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर राज्य में जातीय संघर्ष के कारणों में से एक के रूप में अवैध प्रवासन को जिम्मेदार ठहराया है, जिसके कारण पिछले साल 3 मई से 200 से अधिक लोगों की मौत हो गई.

रैली के आयोजकों ने कहा कि सैकड़ों कुकी ज़ो आदिवासी लोगों ने मणिपुर के तेंगनौपाल जिला मुख्यालय में एक रैली का आयोजन किया, जबकि हजारों प्रदर्शनकारियों ने कई जुलूसों में हिस्सा लिया, जो म्यांमार सीमा के करीब कई गांवों को कवर करते हैं.

उल्लेखनीय है कि मणिपुर और मिजोरम म्यांमार के साथ क्रमशः 390 किमी और 510 किमी लंबी अंतरराष्ट्रीय सीमा साझा करते हैं.

ज़ो यूनिफिकेशन ऑर्गनाइजेशन (ज़ोरो), कुकी इनपी और कुकी स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन ने एक रैली का आयोजन किया जो सेंट पीटर चर्च से शुरू हुई और तेंगनौपाल में डिप्टी कमिश्नर के कार्यालय पर समाप्त हुई.

मिज़ोरम में ज़ोरो द्वारा आयोजित रैलियां चम्फाई और लुंगलेई जिलों में आयोजित की गईं. ज़ोरो एक मिज़ो समूह है जो भारत, बांग्लादेश और म्यांमार की सभी चिन-कुकी-मिज़ो-ज़ोमी जनजातियों को एक प्रशासन के तहत लाना चाहता है.

ज़ोरो के महासचिव एल.रामदीनलियाना रेन्थलेई ने कहा, ‘वफ़ाई और आसपास के गांवों के हजारों लोगों ने सुबह जुलूस निकाला, जबकि लगभग 7,000 प्रदर्शनकारियों ने ज़ोखावथर रैली में भाग लिया.’

उन्होंने दावा किया कि म्यांमार के ख्वामावी और पड़ोसी गांवों के सैकड़ों लोगों ने भी ज़ोखावथर रैली में हिस्सा लिया, हालांकि कई लोग भारत में प्रवेश नहीं कर सके क्योंकि संबंधित अधिकारियों को किसी भी अप्रिय घटना को रोकने के लिए फ्रेंडशिप गेट बंद करना पड़ा था.

ज़ोखावथर में रैली को संबोधित करते हुए ज़ोरो अध्यक्ष आर. संगकाविया ने केंद्र से उन स्वदेशी (इंडिजिनस) लोगों, जो अंतरराष्ट्रीय सीमा से विभाजित हैं, को मूल निवासियों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र घोषणा (यूएनडीआरआईपी), 2007 के अनुच्छेद 36 के अनुसार अधिकार दिए जाने का आग्रह किया.

अनुच्छेद 36(1) आध्यात्मिक, सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक उद्देश्यों के लिए गतिविधियों सहित सीमाओं के पार संबंध बनाए रखने के स्वदेशी लोगों के अधिकार को मान्यता देता है और अनुच्छेद 36(2) में प्रावधान है कि राज्यों का दायित्व है कि वे इस अधिकार का अमल सुनिश्चित करें.

संगकाविया ने कहा, ‘हम भारत-म्यांमार सीमा पर बाड़ लगाने और एफएमआर को वापस लेने की कोशिश का विरोध जारी रखेंगे.’

इससे पहले मिजोरम के मुख्यमंत्री लालदुहोमा ने  कहा था कि उनकी सरकार चाहती है कि एफएमआर को यह दावा करते हुए बरकरार रखा जाए कि भारत और म्यांमार में रहने वाले मिज़ो लोग वर्तमान अंतरराष्ट्रीय सीमा को स्वीकार नहीं कर सकते क्योंकि इसका सीमांकन मिज़ो लोगों से परामर्श किए बिना ब्रिटिशों द्वारा किया गया था.

फरवरी 2021 में पड़ोसी देश में सैन्य तख्तापलट के बाद म्यांमार के 31,000 से अधिक लोगों ने मिजोरम में शरण ली है. उनमें से एक बड़ा वर्ग चिन जनजाति से है, जिसे ज़ो समुदाय के नाम से भी जाना जाता है. वे मिजोरम के मिज़ो समुदाय के समान वंश और संस्कृति साझा करते हैं.