नई दिल्ली: मणिपुर सरकार ने घाटी-प्रमुख मेईतेई समुदाय द्वारा पवित्र मानी जाने वाली एक पहाड़ी का नाम बदलने और क्षेत्र को अपना ‘शिविर’ होने का दावा करने के लिए कुकी विद्रोही समूह के खिलाफ कार्रवाई शुरू की है.
एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, मणिपुर सरकार के सूत्रों ने कहा कि पहाड़ी प्रभुत्व वाली कुकी जनजातियों और मेइतेई लोगों के बीच जातीय तनाव के बीच कुकी सशस्त्र समूह की यह कार्रवाई हिंसा के एक और दौर में बदल सकती है.
कुकी नेशनल फ्रंट- मिलिट्री काउंसिल या केएनएफ (एमसी), जो खुद को ‘कुकी आर्मी’ भी कहता है, ने थांगजिंग चिंग (पहाड़ी) पर एक साइनबोर्ड लगाया था, जिसमें इसे ‘कुकी आर्मी’ का ‘थांगटिंग शिविर’ कहा गया था.
माना जाता है कि झील के किनारे बसे मोइरांग शहर में मेईतेई समुदाय थांगजिंग चिंग को तीर्थ की तरह मान्यता देते हैं और इसे उनके देवता इबुधौ थांगजिंग का घर मानते हैं. उनका मानना है कि थांगजिंग चिंग कम से कम 2,000 साल पुरानी जगह है.
वहीं, जनजातियां इस पहाड़ी श्रृंखला को थांगटिंग कहती हैं, जो चूड़ाचांदपुर जिले के अंतर्गत आती है.
मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने एक्स पर एक पोस्ट में कहा कि राज्य सरकार ने कुकी सशस्त्र समूह के खिलाफ पुलिस मामला दर्ज किया है, क्योंकि यह क्षेत्र एक संरक्षित स्थल है. सिंह ने कहा कि सशस्त्र समूह द्वारा नाम बदलने से मणिपुर स्थानों का नाम अधिनियम, 2024 का भी उल्लंघन हुआ है.
मुख्यमंत्री ने कहा, ‘सरकार की मंजूरी के बिना किसी भी मौजूदा नाम को बदलने में शामिल किसी भी समूह या व्यक्तियों पर तुरंत मामला दर्ज करने के उपाय किए गए हैं. मणिपुर स्थान नाम अधिनियम, 2024 के तहत थांगजिंग चिंग का नाम बदलने के लिए भी मामला दर्ज किया गया है, जो एक संरक्षित स्थल भी है.’
द हिंदू की रिपोर्ट के मुताबिक, मणिपुर पुलिस ने सोमवार को थांगजिंग पहाड़ी के सांस्कृतिक रूप से विवादित क्षेत्रों में लगाए गए एक साइनबोर्ड की तस्वीरों पर मणिपुर सरकार के भूमि संसाधन विभाग की एक शिकायत के आधार जीरो एफआईआर दर्ज की है.
जिस तस्वीर पर एफआईआर दर्ज की गई है, उसमें एक जंगली पहाड़ी के रास्ते में एक प्रवेश द्वार दिखाया गया है, जिस पर लिखा था, ‘कुकी नेशनल फ्रंट – मिलिट्री काउंसिल केएनएफ-एमसी कुकी आर्मी थांगटिंग कैंप’.
भूमि संसाधन विभाग ने कहा कि सोशल मीडिया पर प्रसारित इस तस्वीर के आधार पर यह थांगजिंग पहाड़ी के क्षेत्र की प्रतीत होती है और बैनर में भी इसे ‘थांगटिंग’ लिखा गया है.
सरकार ने कहा कि चूंकि इस क्षेत्र को ऐतिहासिक महत्व का संरक्षित क्षेत्र घोषित किया गया है, इसलिए तस्वीर मणिपुर स्थान नाम अधिनियम 2024 का उल्लंघन करते हुए ‘नाम के अनधिकृत परिवर्तन का संकेत देती है.’
आईपीसी की धारा 120-बी (आपराधिक साजिश), 153-ए (धर्म या जातीयता के आधार पर शत्रुता को बढ़ावा देना), 295-ए (किसी समुदाय की धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने के जानबूझकर किए गए कृत्य), धारा 400 (डकैतों के एक समूह का हिस्सा होना) और 505 (सार्वजनिक शरारत) के तहत मामला दर्ज किया है.
ऐतिहासिक महत्व
शिकायत में भूमि संसाधन विभाग ने कहा, ‘यह कहा गया है कि वर्तमान थांगजिंग हिल चूड़ाचांदपुर-संरक्षित वन के अंतर्गत आता है जिसे सितंबर 1966 में भारतीय वन अधिनियम, 1927 की धारा 29 के तहत अधिसूचित किया गया था. इसके अलावा, थांगजिंग (थांगजिंग चिंग) ) ऐतिहासिक महत्व की एक पहाड़ी है और कला और संस्कृति विभाग, मणिपुर सरकार ने इसे मणिपुर प्राचीन और ऐतिहासिक स्मारक और पुरातत्व स्थल और अवशेष अधिनियम, 1976 की धारा 4 के तहत एक संरक्षित स्थल घोषित किया है.’
चूड़ाचांदपुर और बिष्णुपुर जिलों के बीच बनाए गए बफर जोन के बीच में स्थित पहाड़ी श्रृंखला को कुकी और मेईतेई ने अपने-अपने समुदायों के लिए धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व के रूप में चुनौती दी है. 3 मई, 2023 को दोनों समुदायों के बीच जातीय संघर्ष शुरू होने के बाद से पहाड़ी श्रृंखला पर प्रार्थना और पूजा करने के अधिकार को लेकर विवाद और बढ़ गए हैं.
क्षेत्र के कुकी-ज़ो ग्राम प्रमुखों और समुदाय के नागरिक समाज संगठनों ने पूरे संघर्ष के दौरान पहाड़ी श्रृंखला पर अपने अधिकारों का दावा किया है, जिसके कारण सरकार की ओर से तीखी प्रतिक्रिया हुई है और जोर देकर कहा गया है कि यह एक संरक्षित क्षेत्र है.
इस साल फरवरी में मणिपुर सरकार के वन, पर्यावरण और जलवायु परिवर्तन विभाग ने राज्यपाल के माध्यम से आदेश जारी किए, जिसमें पास के कुकी-ज़ोमी गांवों में से एक उखा लोइखाई के एलएस और ग्राम प्रधान द्वारा किए गए ऐसे दावों को खारिज कर दिया गया. हालांकि इसने कहा कि इस संबंध में पूछताछ अभी भी चल रही है.
आदेशों में कहा गया है कि जिस अधिसूचना ने गांव को चूड़ाचांदपुर-खौपुम संरक्षित वनों के अधिकार क्षेत्र से बाहर कर दिया था, उसे 2022 में रद्द कर दिया गया था, इस प्रकार इसे अपनी सीमा के अंदर डाल दिया गया और इसे संरक्षित भूमि पर अतिक्रमण माना गया.
राज्य सरकार ने कहा कि गांव की स्थिति के संबंध में नई जांच पहले ही शुरू कर दी गई है.
2022 में गांव को संरक्षित वनों की सीमा के भीतर वर्गीकृत किए जाने के कुछ दिनों के भीतर ग्राम प्रधान थेनखोमांग हाओकिप ने राज्य सरकार और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को विस्तृत शिकायतें भेजी थीं, जिसमें कहा गया था कि जमीन को दोबारा वर्गीकृत करने के लिए उनसे अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं लिया गया है.
2023 में जातीय संघर्ष शुरू होने के महीनों बाद एनसीएसटी ने शिकायत का संज्ञान लिया और उसने भी सिविल कोर्ट के रूप में अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करके जांच शुरू की.
ज्ञात हो कि बीते मार्च महीने में मणिपुर विधानसभा ने मेईतेई और कुकी-ज़ो समुदायों के बीच चल रहे जातीय संघर्ष- जिसमें हिंसा के दौरान एक समुदाय के सदस्यों द्वारा दूसरे समुदाय के अधिक आबादी वाले स्थानों के आधिकारिक नाम बदलने की कोशिश की गई थी, की पृष्ठभूमि में मणिपुर स्थानों का नाम विधेयक, 2024 को सर्वसम्मति से पारित किया गया था, जिसके तहत स्थानों का नाम बदलने पर तीन साल तक की जेल की सजा और तीन लाख रुपये तक का जुर्माना का प्रावधान है.
पिछले साल 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद संघर्ष के दौरान कुछ जगहों के नाम बदलने के मामले सामने आए थे. सबसे प्रमुख चूड़ाचांदपुर था, जो एक कुकी-बहुल जिला है, जिसका मुख्यालय का नाम भी वही है, जिसका नाम कई कुकी समूहों द्वारा लमका रखा गया था, जो मेईतेई राजा चूड़ाचांद सिंह के नाम पर वर्तमान नाम के बजाय जगह का एक पारंपरिक नाम था.
एक अन्य उदाहरण में ज़ो समुदाय की पाइते उप-जनजाति के नाम पर इंफाल के एक इलाके पाइते वेंग को स्थानीय निवासियों द्वारा क्वाकीथेल निंगथेमकोल के रूप में रखा गया था.