केरल विश्वविद्यालय के सीनेट में राज्यपाल की तरफ से की गईं नियुक्तियों को हाईकोर्ट ने रद्द किया

यह फैसला केरल विश्वविद्यालय के चार छात्रों द्वारा दायर की गई याचिकाओं पर आया है. सीपीआई (एम) और उसकी छात्र शाखा का कहना था कि राज्यपाल ने सीनेट में जिन चार छात्रों को नामांकित किया था, वे एबीवीपी कार्यकर्ता हैं और उनकी सिफारिश संघ परिवार ने की थी.

केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान. (फोटो साभार: यूट्यूब/India Vision 2017)

नई दिल्ली: विश्वविद्यालयों से संबंधित मामलों को लेकर केरल सरकार और राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान के बीच लंबे समय से गतिरोध चल रहा है. अब केरल उच्च न्यायालय ने विश्वविद्यालय के सीनेट में नियुक्ति से जुड़े एक मामले में राज्यपाल को झटका दिया है.

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, मंगलवार (21 मई) को हाईकोर्ट ने केरल विश्वविद्यालय के सीनेट में राज्यपाल द्वारा की गई चार नियुक्तियों को रद्द कर दिया और छह हफ्ते के अंदर नई नियुक्ति करने का निर्देश दिया है. यह फैसला विश्वविद्यालय के चार छात्रों द्वारा दायर की गई दो अलग-अलग याचिकाओं पर आया है.

बता दें कि राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने पिछले साल सीनेट में चार लोगों को नामित किया था.

सीपीआई (एम) और उसकी छात्र शाखा ने कहा था कि राज्यपाल ने जिन चार छात्रों को नामांकित किया है, वे आरएसएस की छात्र शाखा एबीवीपी के कार्यकर्ता हैं और उनकी सिफारिश संघ परिवार ने की थी. यह भी आरोप लगाया गया था कि राज्यपाल के नामांकित छात्रों का अकादमिक ट्रैक रिकॉर्ड बहुत अच्छा नहीं रहा है.

दरअसल, विश्वविद्यालय ने जिन नामों की सूची राजभवन को भेजी थी, राज्यपाल द्वारा नामित लोगों वे नाम नहीं थे. इसके बाद चार छात्रों ने अदालत का दरवाजा खटखटाया और आरोप लगाया कि राज्यपाल ने योग्य नामों को हटा दिया है.

कोर्ट ने क्या कहा?

जस्टिस मोहम्मद नियास सीपी की खंडपीठ ने कहा, ‘यह सच है कि नामांकन करते समय राज्यपाल के पास असीमित शक्ति नहीं होती. यदि किया गया नामांकन कानून के विपरीत है या प्रासंगिक बिंदुओं पर विचार नहीं किया गया है या निर्णय लेने में अप्रासंगिक बिंदुओं पर विचार किया गया है, तो नामांकन में न्यायालयों को हस्तक्षेप करना चाहिए.’

न्यायाधीश ने कहा कि शक्ति का कोई भी मनमाना उपयोग न केवल संविधान के अनुच्छेद 14 में निहित समानता के नियम का उल्लंघन करता है, बल्कि अनुच्छेद 16 में अंतर्निहित ‘भेदभाव’ के नियम का भी उल्लंघन करता है. विवेक के आधार पर लिए जाने वाले फैसलों में भी तर्कसंगतता, निष्पक्षता और समानता को ध्यान रखा जाना चाहिए. ऐसे फैसले केवल निजी राय के आधार पर नहीं लिए जा सकते.

केरल की उच्च शिक्षा मंत्री आर. बिंदू ने कहा कि राज्य सरकार छात्रों के लोकतांत्रिक अधिकारों और शिक्षा क्षेत्र में धर्मनिरपेक्ष मूल्यों की रक्षा के लिए काम कर रही है. उन्होंने कहा, ‘मुझे उम्मीद है कि इस फैसले से अनावश्यक विवादों पर विराम लग जाएगा.’