मेटा ने भारत में चुनाव के दौरान एआई से छेड़छाड़ कर बनाए राजनीतिक विज्ञापनों को मंज़ूरी दी: रिपोर्ट

द गार्डियन की एक रिपोर्ट बताती है कि फेसबुक और इंस्टाग्राम के मालिक मेटा ने भारत के चुनाव के दौरान आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से हेरफेर कर बनाए गए ऐसे राजनीतिक विज्ञापनों को मंज़ूरी दी, जो ग़लत सूचना फैलाते थे और धार्मिक हिंसा भड़काने वाले थे.

फेसबुक और इंस्टाग्राम के लोगो (तस्वीर साभार: Pixabay/The Wire)

नई दिल्ली: लोकसभा चुनावों के बीच सामने आया है कि चुनावों के दौरान सोशल मीडिया कंपनी मेटा ने इसके एक मंच फेसबुक पर ऐसे राजनीतिक विज्ञापन चलने दिए, जो छेड़छाड़ कर बनाए गए थे और गलत जानकारी दे रहे थे.

द गार्डियन के साथ साझा की गई एक रिपोर्ट बताती है कि फेसबुक और इंस्टाग्राम के मालिक मेटा ने भारत के चुनाव के दौरान आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (एआई) से हेरफेर कर बनाए गए राजनीतिक विज्ञापनों को मंजूरी दी, जो गलत सूचना फैलाते थे और धार्मिक हिंसा भड़काते थे.

विज्ञापनों में मुसलमानों के खिलाफ अपशब्द शामिल थे. इसके अलावा कई विज्ञापनों में नेताओं के बारे में झूठे दावे भी किए गए थे.

मेटा में विज्ञापन को हरी झंडी देने कि प्रणाली की जांच के लिए इंडिया सिविल वॉच इंटरनेशनल (आईसीडब्ल्यूआई) और एको (एक कॉरपोरेट एकाउंटेबिलिटी ऑर्गेनाइजेशन) द्वारा विज्ञापन बनाए और मेटा की विज्ञापन लाइब्रेरी में भेजा.

एक विज्ञापन में पाकिस्तान के झंडे की तस्वीर के बगल में एक विपक्षी नेता को फांसी देने का आह्वान किया गया, जिसमें झूठा दावा किया गया कि वे ‘भारत से हिंदुओं को मिटाना’ चाहता था.

मेटा की लाइब्रेरी में जमा 22 विज्ञापनों में से 14 ऐसे विज्ञापनों को मंजूरी दी गई, जो हेट स्पीच और गलत जानकारी (मिसइंफॉरमेशन) पर कंपनी की नीतियों का उल्लंघन कर रहे थे.

मेटा की नीतियों के तहत, राजनीतिक विज्ञापनों को मंजूरी से पहले एक विशिष्ट प्राधिकरण प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है, लेकिन गार्डियन के अनुसार, इस आधार पर केवल तीन विज्ञापन ही खारिज किए गए.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘ये चिंताजनक परिणाम भारत में हो रहे ‘निर्णायक’ चुनावों के बीच सामने आए हैं. शोधकर्ताओं ने पहले ही भारत में लाखों मतदाताओं के बीच नफरती भाषण और दुष्प्रचार फैलाने के लिए मेटा विज्ञापनों को हथियार की तरह इस्तेमाल करने वाले एक नेटवर्क का खुलासा किया था. ऐसे विज्ञापनों से मेटा को फायदा होता है.’

जांच के इस दूसरे चरण के दौरान, जो भारत के 7 चरण के लोकसभा चुनाव में से तीसरे और चौथे चरण के साथ मेल खाता था, 189 निर्वाचन क्षेत्रों को शामिल किया गया था. शोधकर्ताओं ने उन जिलों में विज्ञापनों को टारगेट किया जो ‘साइलेंस पीरियड’ में प्रवेश कर रहे थे.

रिपोर्ट में कहा गया है, ‘साइलेंस पीरियड के दौरान चुनाव संबंधी सभी विज्ञापनों पर रोक लगा दी जाती है. यह पड़ताल भारतीय चुनाव कानूनों के अनुपालन में मेटा की विफलता को भी उजागर करता है.’

एको ने पड़ताल के दौरान पाया कि प्रत्येक विज्ञापन में एआई की मदद से बनाई गई भ्रामक तस्वीरों को इस्तेमाल किया गया था. तस्वीरों से छेड़छाड़ के लिए व्यापक रूप से उपयोग किए जाने वाले एआई इमेज टूल्स का उपयोग किया गया था. शोधकर्ता आसानी से ऐसी तस्वीरों को बना पाए, जिनमें एक व्यक्ति इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन जला रहा था, हिंदू और मुस्लिम पूजा स्थलों में आग लगी हुई थी और आप्रवासियों की भीड़ भारत की सीमा पार कर रहे थे.

जांच के खुलासे चिंता का विषय है क्योंकि मेटा ने भारतीय चुनावों से पहले वादा किया था कि वह ‘गलत सूचना फैलाने के लिए एआई से बनाई सामग्री का पता लगाने और हटाने को प्राथमिकता देगा.’

मेटा के एक प्रवक्ता ने गार्डियन को बताया कि जो लोग चुनाव या राजनीति के बारे में विज्ञापन चलाना चाहते हैं, उन्हें हमारे प्लेटफार्मों पर आवश्यक प्राधिकरण प्रक्रिया से गुजरना होगा और सभी लागू कानूनों का पालन करना होगा.

अल जज़ीरा ने अपनी रिपोर्ट में बताया था कि मार्च में नरेंद्र मोदी की एआई से बनाई एक तस्वीर, जिसमें उन्हें हिंदू महाकाव्य महाभारत के भीष्म पितामह के रूप में दिखाया गया था, उस तस्वीर को इंस्टाग्राम पर एक राजनीतिक विज्ञापन के रूप में प्रचारित किया गया था.

अल जज़ीरा की रिपोर्ट के अनुसार, मेटा एड लाइब्रेरी डेटा से पता चला है कि मार्च के महीने में राइट विंग पेज- टहोकेज मोदी समाट ने इंस्टाग्राम पर 363 राजनीतिक कंटेंट को अधिक प्रसारित करने के लिए 5.37 लाख ($ 6,500) खर्च किए.  ृइन प्रायोजित विज्ञापनों में से लगभग 14%, यानी 50 तस्वीरों को एआई से बनाया गया था.

अल जज़ीरा ने लिखा है, ‘मतदाताओं को धोखा देने के लिए डीपफेक का विशेष रूप से उपयोग नहीं किया जा रहा है,  इसके बजाय, जेनरेटिव एआई का इस्तेमाल कर नैरेटिव गढ़ा जा रहा है.