नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (24 मई) को चुनावों और राजनीतिक दलों पर नज़र रखने वाली संस्था एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफ़ॉर्म्स (एडीआर) और कॉमन कॉज की उस याचिका पर फैसला देने से इनकार कर दिया, जिसमें चुनाव आयोग को फॉर्म 17 सी का रिकॉर्ड सार्वजनिक करने का निर्देश देने की मांग की गई थी.
फॉर्म 17 सी में एक पोलिंग बूथ पर डाले गए वोटों की संख्या दी होती है.
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, न्यायालय ने कहा कि चुनाव आयोग को चुनाव के बीच में काम करने के लिए लोग जुटाने में मुश्किल होगी.
बता दें कि गैर सरकारी संगठन (एनजीओ) ने उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर कर अपील की थी कि चुनाव आयोग 48 घंटे के भीतर हर पोलिंग स्टेशन पर मतों का आंकड़ा जारी करे.
हालांकि, शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने न सिर्फ चुनाव आयोग को फॉर्म 17 सी का डेटा सार्वजनिक करने का निर्देश देने से मना कर दिया है बल्कि याचिका पर सुनवाई को भी स्थगित कर दिया.
छुट्टी के बाद दूसरी बेंच करेगी सुनवाई
याचिका पर सुनवाई कर रही जस्टिस दीपांकर दत्ता और जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा की अवकाश पीठ ने कहा कि वह इस स्तर पर ऐसा कोई निर्देश जारी नहीं कर सकती और मामले को अवकाश के बाद उचित पीठ के समक्ष सूचीबद्ध कर दिया.
पीठ शुरुआत से ही इस मामले में हस्तक्षेप करने में नहीं करना चाह रही थी, लेकिन चुनाव आयोग का जवाब सुनने के लिए याचिका को सूचीबद्ध करने पर सहमत हो गयी थी.
कोर्ट ने साल 2019 में तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की नेता महुआ मोइत्रा द्वारा दायर रिट याचिका को भी इसी मामले (एडीआर की याचिका) के साथ सूचीबद्ध किया है. टीएमसी नेता ने अपनी रिट याचिका में पिछले आम चुनावों के मतदान के आंकड़ों में विसंगतियों का आरोप लगाया गया है.
इससे पहले चुनाव आयोग ने इसी मामले में दायर एक हलफनामे में कहा था कि मतदान के अंतिम आंकड़ों का खु़लासा करने का कोई क़ानूनी प्रावधान नहीं है और डेटा को सार्वजनिक करने से उसका दुरुपयोग हो सकता है, जिससे जनता के बीच चुनावी प्रक्रिया पर अविश्वास पैदा हो सकता है.
यह दावा करते हुए कि फॉर्म 17 सी के आधार पर प्रमाणित मतदान प्रतिशत डेटा साझा करने के लिए चुनाव आयोग कानूनन बाध्य नहीं है, आयोग ने अपने हलफनामे में कहा था, ‘यह प्रस्तुत किया जाता है कि उम्मीदवार या उसके एजेंट के अलावा किसी अन्य व्यक्ति को फॉर्म 17 सी प्रदान करने का कोई कानूनी आदेश नहीं है. याचिकाकर्ता बीच चुनाव में एक आवेदन दायर करके एक अधिकार पाने का प्रयास कर रहा है, जबकि कानून में ऐसा कोई अधिकार नहीं है.’
बता दें कि मतदान प्रतिशत डेटा को प्रकाशित करने में देरी और अंतिम आंकड़ों और मतदान के दिन शुरू में जारी किए गए आंकड़ों के बीच विसंगतियों के लिए आयोग की व्यापक रूप से आलोचना होती रही है.
पहले चरण का अंतिम मतदान प्रतिशत जारी करने में आयोग को 11 दिन लगे, वहीं बाद के तीन चरणों के अंतिम आंकड़े जारी करने में इसने चार-चार दिन का समय लिया.