गोरखपुर: गोरखपुर से सटे बस्ती मंडल के तीन लोकसभा क्षेत्रों – बस्ती, संत कबीर नगर और डुमरियागंज – में इस बार लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और समाजवादी पार्टी (सपा) प्रत्याशियों के बीच कड़ी टक्कर है. पिछले दो चुनावों 2014 और 2019 में तीनों सीट जीतने वाली भाजपा इस बार सपा के पीडीए (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) चक्रव्यूह में घिर गई है.
पिछली बार त्रिकोणीय मुकाबले ने विपक्षी प्रत्याशियों के मतों में बंटवारा किया और भाजपा के लिए जीत की राह आसान बनाई थी. इस बार तीनों स्थानों पर बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की मौजूदगी के बावजूद भाजपा और सपा में सीधी लड़ाई है. बसपा के प्रत्याशियों की चर्चा अपने जाटव वोटों को सहेज लेने और सपा प्रत्याशियों के कोर वोटर में विभाजन को लेकर ही हो रही है.
बसपा की अध्यक्ष मायावती ने 18 मई को बस्ती में जनसभा को संबोधित करते हुए कहा कि बस्ती मंडल में मुस्लिम आबादी काफी ज्यादा है, इसलिए संत कबीर नगर और डुमरियागंज में मुस्लिम समाज के कार्यकर्ता को प्रत्याशी बनाया है. बस्ती में अति पिछड़े वर्ग के वोट ज्यादा हैं, इसलिए अति पिछड़े वर्ग से कुर्मी बिरादरी के कार्यकर्ता को टिकट दिया है.
पूर्व मुख्यमंत्री मायावती अपने भाषण के प्रारंभ में यह सफाई इसलिए दे रही थीं क्योंकि उन्होंने तीनों स्थानों पर पूर्व घोषित प्रत्याशियों को बदल दिया था. बस्ती में उन्होंने पहले भाजपा के पूर्व जिलाध्यक्ष दयाशंकर मिश्र को टिकट दिया था लेकिन फिर बदलकर पूर्व विधायक नंदू चैधरी के बेटे लवकुश पटेल को दे दिया. इसी तरह, डुमरियागंज में ख्वाजा शम्सुद्दीन का टिकट बदलकर नदीम मिर्जा को और संत कबीर नगर में सैयद दानिश के बजाय उनके बड़े भाई नदीम अशरफ को टिकट दे दिया.
भाजपा ने इस बार भी तीनों लोकसभा क्षेत्र से अपने पुराने प्रत्याशी ही उतारे हैं. बस्ती से हरीश द्विवेदी को टिकट दिया गया है जो लगातार दो बार से जीते हैं. डुमरियागंज से जगदंबिका पाल को उतारा गया है, जो 2014 और 2019 का चुनाव भाजपा के टिकट से जीते थे. पाल 2009 में इसी क्षेत्र से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव जीत कर सांसद बने थे. वे लगातार चौथी बार चुनाव मैदान में हैं.
वहीं, संत कबीर नगर से प्रवीण निषाद दूसरी बार चुनाव मैदान में हैं. वे निषाद पार्टी के अध्यक्ष डॉ. संजय निषाद के बेटे हैं. प्रवीण निषाद 2018 में तब खूब चर्चा में आए थे जब गोरखपुर लोकसभा उपचुनाव में उन्होंने भाजपा प्रत्याशी को हरा दिया था. एक वर्ष बाद ही, उनके पिता डाॅ. संजय निषाद ने भाजपा से गठबंधन कर लिया. इसके बाद, प्रवीण निषाद को गोरखपुर से हटा कर संत कबीर नगर चुनाव लड़ने भेज दिया गया. प्रवीण निषाद के लिए जगह बनाने के लिए जूता कांड से चर्चा में आए शरद त्रिपाठी का टिकट काट दिया गया.
शरद त्रिपाठी के पिता डाॅ. रमापति राम त्रिपाठी को चुनाव लड़ने के लिए देवरिया भेज दिया गया, जहां वे जीत कर सांसद भी बने. इस चुनाव में उनका भी टिकट काट दिया गया है. बता दें कि पूर्व सांसद शरद त्रिपाठी का बीमारी से जुलाई 2021 में निधन हो गया था.
बात सपा की करें तो उसने तीनों क्षेत्र से अपने प्रत्याशी बदल दिए हैं. बस्ती में 2014 और 2019 का चुनाव बसपा से लड़े राम प्रसाद चौधरी को सपा ने मैदान में उतारा है. डुमरियागंज में संत कबीर नगर क्षेत्र से दो बार चुनाव लड़ चुके बाहुबली नेता पंडित हरिशंकर तिवारी के बड़े बेटे भीष्मशंकर तिवारी उर्फ कुशल तिवारी को चुनाव मैदान में उतारा है. वहीं, संत कबीर नगर से मेहदावल से विधायक एवं पूर्व मंत्री रहे लक्ष्मीकांत निषाद उर्फ पप्पू निषाद को टिकट दिया गया है.
सपा ने प्रत्याशियों का चयन पीडीए फॉर्मूले के तहत किया है. संत कबीर नगर जिले में निषाद, बस्ती में कुर्मी और डुमरियागंज में ब्राह्मण मतदाताओं की बहुलता को ध्यान में रख कर इसी बिरादरी के नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा है. सपा को भरोसा है कि उसका कोर वोटर मुसलमान और यादव तो उसके साथ है ही, ये नेता अपनी बिरादरी का वोट खींचकर साइकिल को पूरी रफ्तार से दौड़ा देंगे. साथ ही संविधान, बेरोजगारी, महंगाई, आरक्षण, खेती-किसानी के मुद्दे पर उसके साथ जुड़ रहा नया वोट बैंक और मजबूती देगा.
सपा ने इस नई सोशल इंजीनियरिंग का प्रयोग 2022 के चुनाव में भी किया था. बस्ती जिले में उसे इसका फायदा भी मिला और पांच में से चार सीट जीत लीं, लेकिन संत कबीर नगर और सिद्धार्थ नगर जिले में यह फॉर्मूला काम नहीं आया. विधानसभा चुनाव के अनुभव से सीख लेते हुए सपा ने इस समीकरण को थोड़ा और महीन किया है.
भाजपा के लिए ये तीनों सीट 2014 और 2019 में भी चुनौती बनी थीं क्योंकि उसे गोरखपुर व दूसरे क्षेत्रों के मुकाबले यहां बहुत कम अंतर से जीत मिली थी. डुमरियागंज में भाजपा को 2014 में 1,03,568 और 2019 में 1,05,321 मतों के अंतर से जीत मिली थी. बस्ती में जीत का अंतर क्रमशः 30,354 और 33,562 का रहा. संत कबीर नगर में भाजपा 2017 में 97,978 मतों के अंतर से जीती थी, लेकिन 2019 की तूफानी लहर में भी यह अंतर घटकर 35,749 हो गया.
यहां ध्यान देने वाली बात यह है कि 2014 में इन सीटों पर चतुष्कोणीय मुकाबला हुआ था और सपा-बसपा को तो करीब-करीब बराबर मत मिले थे. इसके बाद 2019 के चुनाव में सपा-बसपा मिल कर लड़े तो मुकाबला त्रिकोणीय हुआ, लेकिन बस्ती और संत कबीर नगर में कांग्रेस प्रत्याशी (राजकिशोर सिंह और भालचंद्र) ने अच्छे-खासे वोट बटोरे, जिससे सपा-बसपा को नुकसान हुआ. डुमरियागंज में धार्मिक ध्रवीकरण से भाजपा को मजबूती मिली थी.
इस चुनाव में तीनों सीट पर यह फैक्टर नहीं है. बसपा त्रिकोणीय मुकाबला नहीं बना पा रही है. संत कबीर नगर और डुमरियागंज में अल्पसंख्यक मतों में वह बंटवारा नहीं कर पा रही है. डुमरियागंज में आजाद समाज पार्टी से चुनाव लड़ रहे पूर्व विधायक अमर सिंह चौधरी अपनी बिरादरी के अलावा दलित मतदाताओं को भी आकर्षित कर रहे हैं. आजाद समाज पार्टी के संस्थापक चंद्रशेखर आजाद ने कई दिन उनके प्रचार में लगाए हैं. बस्ती में सपा प्रत्याशी राम प्रसाद चौधरी बसपा कैडरों को अपने पक्ष में लाने मेें सफल दिख रहे हैं.
सपा प्रत्याशी को डुमरियागंज में ब्राह्मणों को अपने पक्ष में लाने में अपनी पारिवारिक विरासत काम आ रही है.
संत कबीर नगर में पूरी लड़ाई निषाद मतदाताओं के बीच हो रही है. निषाद मतदाता असमंजस में हैं. बखिरा झील के पास स्थित शनिचरा गांव निषाद बहुल गांव है. यहां हर तीन साल पर होने वाली ‘ नाव पूजा ‘ की तैयारी चल रही थी. यहां रात में निषाद समाज के 20 हजार से अधिक लोग जुटने वाले थे. दोपहर में टेंट लग रहा था और भोजन बन रहा था. पूजा के लिए एक नाव को सजा-धजा कर तैयार किया गया था.
यहां आए हुए निषाद लोग भाजपा प्रत्याशी प्रवीण निषाद से इस बात को लेकर नाराज थे कि मुख्य सड़क से गांव तक आने वाली सड़क अभी तक नहीं बनी, जिससे लोगों को आने-जाने में दिक्कत होती है. इस गांव के युवा देवी प्रसाद निषाद ने कहा कि प्रवीण निषाद आएंगे तो हम उनसे पूछेंगे कि वे पांच वर्ष में यह सड़क क्यों नहीं बनवा पाए. यहां जुटे निषाद बिरादरी के लोगों में कुछ लोग सपा प्रत्याशी पप्पू निषाद को वोट देने की बात करते नजर आए.
सपा प्रत्याशी को सैंथवार मल्ल समाज का भी सहारा है जो अपनी बिरादरी के लोगों को टिकट नहीं दिए जाने से भाजपा से असंतुष्ट है.
संत कबीर नगर सीट पर सबकी निगाह ब्राह्मण वोटों पर भी है. भाजपा से दुबारा प्रवीण निषाद के लड़ने और सपा द्वारा भी निषाद उम्मीदवार देने से ब्राह्मण मतदाता ऊहापोह में है. सपा से दावेदारी कर रहे पूर्व विधायक दिग्विजय नारायण उर्फ जय चौबे भाजपा में शामिल हो गए, तो वहीं बस्ती में बसपा से टिकट कटने के बाद दयाशंकर मिश्र सपा में आ गए. इसी तरह, डुमरियागंज में सपा से नाराज होकर युवा नेता राम कुमार उर्फ चिनकू यादव भाजपा में चले गए. पूर्व विधायक एवं पूर्व मंत्री राजकिशोर सिंह अपने भाई ब्रजकिशोर सिंह के साथ भाजपा में शामिल हो गए हैं.
वर्तमान सांसदों के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर संत कबीर नगर ही नहीं, बस्ती और डुमरियागंज में भी दिखी. हालांकि, शहर व छोटे कस्बों में भाजपा का असर बरकरार दिखा. बखिरा कस्बे के दो चाय विक्रेताओं ने खुलकर भाजपा का समर्थन किया. एक दुकानदार ने तो नारा लगाते हुए बोला, ‘योगी सरकार’. दूसरे दुकानदार राजू गुप्ता ने कहा कि मोदी जी के नाम पर वोट दे रहे हैं क्योंकि उन्होंने गरीबों को राशन और मकान दिया है.
बखिरा के पहले सड़क पर सुर्ती और पान मसाला बेच रहे शर्मा जी ने कहा कि हमारा वोट मोदी जी को जाएगा. उनके पास ही गन्ने का रस बेच रहे एक व्यक्ति ने कहा कि आप जहां खड़े हैं, वह गोरखपुर जिले में आता है. यहीं से संत कबीर नगर शुरू हो जाता है. यह पूछने पर कि किसका कहां जोर है तो वह कहते हैं कि ‘ढेर मनई साइकिल पर जात हवें. कमल के फूलवों पर वोट बा.’
(लेखक गोरखपुर न्यूज़लाइन वेबसाइट के संपादक हैं.)