नई दिल्ली: फ्रांसीसी फिल्म निर्देशक वैलेंटिन हेनॉ को पिछले साल अक्टूबर में उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में दलितों के मार्च में कथित तौर पर शामिल होने के बाद गिरफ्तार कर लिया गया था. फ्रांस के अख़बार ल मोंद की रिपोर्ट के अनुसार, बाद में उन्हें जमानत पर रिहा कर दिया गया था, लेकिन उनके खिलाफ जारी लुकआउट नोटिस (एलओसी) के कारण रिहाई के छह महीने बाद भी वे भारत से बाहर नहीं जा सके.
अपनी पीड़ा के बारे में बात करते हुए हेनॉ ने द वायर को बताया कि प्रक्रिया में उन्हें ‘नैतिक यातना’ से निपटना सबसे मुश्किल लगा. उन्होंने कहा, ‘नैतिक यातना: आपको नहीं पता होता कि आप कुछ दिनों के लिए जेल में हैं या कुछ सालों के लिए. और तकनीकी रूप से यह अपराध की पूर्वधारणा होती है.’
हेनॉ दलित महिलाओं पर होने वाले अत्याचारों पर केंद्रित एक फिल्म पर काम करने के लिए 10 अगस्त 2023 को भारत आए थे. उत्तर प्रदेश से पहले उन्होंने बिहार और झारखंड का दौरा किया था. 10 अक्टूबर 2023 को उन्होंने किसान महिलाओं के नेतृत्व में आयोजित ‘आंबेडकर जन मार्च’ में भाग लिया था, जहां महिलाएं दलितों के लिए भूमि अधिकारों की मांग कर रही थीं. रिपोर्ट के अनुसार, उन्हें ‘स्थानीय खुफिया एजेंटों’ ने घेर लिया था, क्योंकि मंच पर एक वक्ता जो उन्हें पहले से जानता था, ने ‘अंतरराष्ट्रीय पर्यवेक्षकों’ की उपस्थिति दर्ज कराने के लिए उनके नाम का उल्लेख किया था.
ल मोंद ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि हालांकि हेनॉ को ‘एजेंटों’ द्वारा कुछ ‘प्रैक्टिकल प्रश्न’ पूछे जाने के बाद कार्यक्रम स्थल से जाने की अनुमति दे दी गई थी, लेकिन पुलिस उसी दिन उन्हें उनके होटल के कमरे से थाने ले आई थी.
पुलिस ने कथित तौर पर उन पर विदेशी अधिनियम के अनुच्छेद 14बी के तहत ‘वीज़ा शर्तों का उल्लंघन’ करने का आरोप लगाया है, जिसमें कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर भारत में प्रवेश करने के लिए जाली पासपोर्ट का उपयोग करता है या कानून के अधिकार के बिना देश में रहता है तो उसे कम से कम दो साल की अवधि के कारावास से ‘दंडित’ किया जाएगा, जिसे आठ साल तक बढ़ाया जा सकता है.
रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि कानून प्रवर्तन अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने ‘अपने वीजा आवेदन में धनबाद के एक रिफरेंस कॉन्टेक्ट का जिक्र किया था और उन्हें झारखंड छोड़ने की अनुमति नहीं थी.’ लेकिन ‘यह आरोप पूरी तरह से बेबुनियाद है. उनके ई-बिजनेस वीज़ा, जो एक वर्ष के लिए वैध है, में कोई भौगोलिक प्रतिबंध शामिल नहीं है.’
ल मोंद के अनुसार, गिरफ़्तारी के एक दिन बाद हेनॉ को एक ‘पार्किंग स्थल’ पर ले जाया गया, जहां एक जज ने उनकी गिरफ़्तारी से संबंधित दस्तावेज़ों पर हस्ताक्षर किए, जिसके बाद उन्हें गोरखपुर जेल भेज दिया गया.
फ्रांसीसी दैनिक को हेनॉ ने जेल में बिताए अपने समय के बारे में बताते हुए कहा, ‘हम फर्श पर सोते थे, इतनी कम जगह थी कि रात में करवट लेना भी असंभव था. जमीन लोगों से भरी हुई थी.’
रिपोर्ट के अनुसार, उन्हें मानसिक रूप से अस्थिर व्यक्तियों के लिए बनी कोठरी (सेल) में रखा गया था. ल मोंद ने हेनॉ के हवाले से बताया है, ‘उन्हें चुप रहने के लिए शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया, लेकिन वहां रहना सौभाग्य की बात थी, क्योंकि वहां जमीन पर थोड़ी ज़्यादा जगह थी.’
इस बीच, वह पहले दिन जेल से ही फ्रांसीसी दूतावास से संपर्क करने में कामयाब रहे. दूतावास ने एक वकील का संपर्क उपलब्ध कराया. गिरफ्तारी के तीसरे हफ़्ते में दूतावास के एक अधिकारी ने जेल में उनसे मुलाक़ात की. उसके बाद उनके पिता उनसे मिलने आए और अपना वकील बदल दिया, जिसके बाद वह जमानत पाने में कामयाब रहे और 10 नवंबर 2023 को रिहा हुए.
हालांकि, हेनॉ के खिलाफ़ जारी लुकआउट सर्कुलर नहीं हटाया गया और मई तक उनका पासपोर्ट पुलिस के पास था. वह अब फ्रांस लौटने में सक्षम हुए हैं.
रिपोर्ट के अनुसार, इन कठिन हालात के दौरान फ्रांसीसी दूतावास ने उनके परिवार को सूचित किया था कि ‘चुनावों के कारण प्रक्रिया में देरी हुई है.’
हेनॉ ने द वायर को बताया कि आखिरकार उन्होंने 4 मई को भारत छोड़ दिया था.
#India: Before being allowed to leave India & return to France in May, Valentin Hénault spent 1 month in prison in October & endured 7 months of administrative ordeal. RSF denounces the imprisonment of this filmmaker who was scouting for a documentary on the Dalits.… pic.twitter.com/xwABO4Qnkk
— RSF (@RSF_inter) May 27, 2024
बता दें कि रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स (आरएसएफ) द्वारा जारी 2024 के विश्व प्रेस स्वतंत्रता सूचकांक में भारत को 176 देशों में 159वां स्थान दिया गया है.