विशेष विवाह अधिनियम से हुआ हिंदू-मुस्लिम विवाह मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत अमान्य: हाईकोर्ट

जहां मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बिना धर्म परिवर्तन के एक मुस्लिम पुरुष और हिंदू महिला के बीच शादी को अमान्य बताया है, वहीं दूसरी ओर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि शादी के लिए धर्म बदलना ज़रूरी नहीं है और अलग धर्म में आस्था रखने वाले जोड़े विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी कर सकते हैं.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: Pablo Heimplatz/Unsplash)

नई दिल्ली: दूसरे धर्म में शादी को लेकर इस समय देश के दो उच्च न्यायालयों के फैसले सुर्खियों में है. एक ओर जहां मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने बिना धर्म परिवर्तन के मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत एक मुस्लिम शख्स और हिंदू महिला के बीच शादी को अवैध बताया है, भले शादी विशेष विवाह अधिनियम के तहत ही क्यों न हुई हो.

वहीं, दूसरी ओर इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि शादी के लिए धर्म बदलना जरूरी नहीं है और अलग धर्म में आस्था रखने वाले जोड़े विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी कर सकते हैं.

इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने इस्लामिक कानून को आधार बनाते हुए कहा कि अग्नि-मूर्ति को पूजने वाली हिंदू महिला और मुस्लिम पुरुष का विवाह नहीं हो सकता. अगर ये शादी विशेष विवाह अधिनियम के तहत भी हुई हो, तब भी उसे मुस्लिम पर्सनल लॉ के हिसाब से अवैध ही माना जाएगा.

दरअसल, अदालत में एक जोड़े (मुस्लिम पुरुष और हिंदू महिला) ने स्पेशल मैरिज एक्ट, 1954 के तहत अपनी शादी रजिस्टर करने के लिए पुलिस सुरक्षा की मांग करते हुए याचिका दायर की थी. जोड़े की तरफ से पेश वकील ने कोर्ट को बताया था कि महिला शादी के लिए दूसरा धर्म नहीं अपनाना चाहती थी और न ही पुरुष अपना धर्म बदलना चाहता है. ऐसे में दोनों ने शादी रजिस्टर करने के लिए पुलिस सुरक्षा मांगी है.

बार और बेंच की रिपोर्ट के मुताबिक, 27 मई को मामले पर फैसला सुनाते हुए जस्टिस गुरपाल सिंह अहलूवालिया ने कहा कि एक मुस्लिम पुरुष और एक हिंदू महिला के बीच शादी को मुस्लिम कानून के तहत ‘अमान्य’ विवाह माना जाएगा. भले ही वो स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विवाहित क्यों न हों.

अदालत ने आगे कहा कि जो भी विवाह पर्सनल लॉ के अंतर्गत मान्य नहीं है, उन्हें विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत वैध नहीं माना जा सकता. विशेष विवाह अधिनियम के अंतर्गत विवाह करने के लिए दोनों में से किसी एक को अपना धर्म बदलना होगा.

कोर्ट ने शादी की मांग अस्वीकार करते हुए जोड़े को सलाह दी कि युवक-युवती लिव इन रिलेशनशिप में रह सकते हैं, लेकिन दोनों की शादी को वैध नहीं माना जा सकता.

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा- शादी के लिए धर्म बदलना जरूरी नहीं

ठीक इस फैसले के उलट इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक फैसले में कहा कि विशेष विवाह अधिनियम किसी को बिना धर्म बदले विवाह बंधन में बंधने से रोकता नहीं है. विपरीत धर्म में आस्था रखने वाले जोड़े विशेष विवाह अधिनियम के तहत शादी कर सकते हैं. यानी शादी के लिए धर्म बदलना जरूरी नहीं है.

एनडीटीवी की खबर के अनुसार, इलाहाबाद हाईकोर्ट की जस्टिस ज्योत्सना शर्मा की बेंच के सामने एक लिव-इन जोड़े ने खुद की जान को खतरा बताते हुए सुरक्षा के मांग याचिका दायर की थी. इस जोड़े के बीच पहले ही शादी को लेकर एक समझौता हो चुका था. राज्य सरकार का कहना था कि इस जोड़े को सुरक्षा नहीं दी जा सकती, क्योंकि इस तरह के विवाह को कानून में मान्यता नहीं दी जाती है.

हालांकि, जस्टिस ज्योत्सना शर्मा ने इस तर्क को खारिज कर दिया और कहा कि निश्चित ही ये शादी का करार कानून में अमान्य है. लेकिन कानून दोनों को धर्मांतरण के बिना विशेष विवाह अधिनियम के तहत कोर्ट मैरिज के लिए आवेदन करने से नहीं रोकता है. यानी विपरीत धर्म में आस्था रखने वाले जोड़े विशेष विवाह अधिनियम तहत के बिना धर्म बदले शादी कर सकते हैं.

अदालत ने इस जोड़े को सुरक्षा प्रदान करने का आदेश देते हुए दोनों को अगली सुनवाई से पहले अपनी शादी के लिए कदम उठाने को कहा, जिससे उनकी गंभीरता साबित हो सके.

कोर्ट ने उन्हें विशेष विवाह अधिनियम के तहत विवाह करने और इसका सबूत कोर्ट के सामने प्रस्तुत करने का निर्देश दिया. इस मामले में अगली सुनवाई अब 10 जुलाई को होगी.