गुजरात चुनाव राउंडअप: भाजपा ने एक दिन पहले पेश किया संकल्प पत्र. कांग्रेस ने की आलोचना. भाजपा-कांग्रेस में कड़े मुकाबले के आसार.
अहमदाबाद/नई दिल्ली: गुजरात में विधानसभा चुनाव के पहले चरण के लिए शनिवार को सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात की 89 सीटों पर मतदान हो रहा है. इन सीटों पर कुल 977 उम्मीदवार अपनी चुनावी किस्मत आजमा रहे हैं.
गुजरात का चुनाव मुख्यत: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस के अध्यक्ष बनने जा रहे राहुल गांधी के बीच हो गया है. दोनों ने ट्वीटर पर भारी संख्या में लोगों से मतदान करने की अपील की है.
कड़े मुकाबले वाले दूसरे चरण के लिए मतदान 14 दिसंबर को होगा. इन चुनावों के जरिये भाजपा जहां पांचवी बार सत्ता में वापसी की उम्मीद लगाए है, वहीं कांग्रेस इस चुनाव को अपना खोया आधार वापस पाने के मौके के तौर पर देख रही है.
दोनो पार्टियों की ओर से किए गए धुआंधार प्रचार अभियान के बाद शनिवार को राज्य के मतदाता अपने उम्मीदवार चुनने के लिए वोट करेंगे. जिन सीटों पर आज चुनाव हो रहा है वहां कुल 2.12 करोड़ मतदाता हैं.
शनिवार को होने वाले मुकाबले में नामी गिरामी उम्मीदवारों में- राजकोट पश्चिम से लड़ रहे मुख्यमंत्री विजय रूपाणी, कांग्रेस के शक्तिसिंह गोहिल मांडवी से और परेश धनानी अमरेली से चुनाव लड़ रहे हैं.
राहुल बनाम मोदी हुआ मुकाबला
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और जल्द ही कांग्रेस प्रमुख बनने जा रहे राहुल गांधी के बीच की चुनावी जंग में इसे महत्वपूर्ण माना जा रहा है. कांग्रेस ने चुनाव के दो दिन पहले अपने नेता मणिशंकर अय्यर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर उनके विवादित बयान के लिए निलंबित कर दिया. उनके बयान से मतदान के ठीक पहले विवाद पैदा हो गया.
अयोध्या विवाद, राहुल गांधी के मंदिरों में पूजा के लिए जाने जैसे मुद्दे भाजपा नेताओं की तरफ से उठाने के कारण चुनावी प्याले में रह रहकर तूफान उठता रहा. प्रधानमंत्री मोदी के गृह राज्य में राहुल गांधी कांग्रेस के पक्ष में जोरदार अभियान चला रहे हैं.
मोदी ने करीब 15 रैलियों को संबोधित किया, वहीं गांधी ने सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात में सात दिन से ज्यादा गुजारते हुए कई रैलियों को संबोधित किया.
भगवा दल के मुख्य चुनावी रणनीतिकार भाजपा प्रमुख अमित शाह ने भी रैलियों को संबोधित करते हुए खासतौर पर कांग्रेस और उसके नेताओं पर निशाना साधा.
भाजपा ने केंद्रीय मंत्रियों- अरुण जेटली, राजनाथ सिंह, निर्मला सीतारमण के अलावा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को भी प्रचार के लिए उतारा.
कांग्रेस की तरफ से पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पी चिदंबरम, ज्योतिरादित्य सिंधिया तथा सचिन पायलट जैसे महत्वपूर्ण नेताओं ने मतदाताओं के सामने अपनी पार्टी का पक्ष रखा. दूसरे चरण में उत्तर और मध्य गुजरात की 93 सीटों पर मतदान होना है. मतगणना 18 दिसंबर को होगी.
आलोचना के बाद भाजपा ने आनन फानन में जारी किया संकल्प पत्र
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने शुक्रवार को आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गुजरात के भविष्य को लेकर खामोश हैं. उन्होंने सत्तारूढ़ भाजपा पर चुनावों के लिए अब तक अपना घोषणापत्र प्रकाशित नहीं करने के लिए निशाना साधा. हालांकि, आलोचनाओं के बीच भाजपा ने शुक्रवार को आनन फानन में अपना घोषणा पत्र जारी किया.
पार्टी ने इसे संकल्प पत्र नाम दिया है. इसे जारी करते हुए वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा, पूरे भारत में गुजरात की जीडीपी ग्रोथ सबसे अधिक है. पिछले पांच सालों से बड़े राज्यों में गुजरात 10 प्रतिशत के औसत से विकास कर रहा है.
संकल्प पत्र जारी करते हुए अरुण जेटली ने कांग्रेस के पाटीदार आरक्षण के वादे पर हमला बोला. उन्होंने कहा, कांग्रेस का नजरिया पूर्वाग्रहग्रस्त और संवैधानिक रूप से असंभव है.
इसके पहले छोटा उदयपुर जिले के इस जनजातीय कस्बे में चुनावी रैली को संबोधित करते हुए राहुल गांधी ने कहा कि उनकी पार्टी जनजाति समुदायों, महिलाओं और युवकों और उनकी मांगों सहित समाज के विभिन्न धड़े के साथ विचार-विमर्श कर घोषणापत्र लाई है.
कांग्रेस उपाध्यक्ष ने कहा, आधे गुजरात में प्रचार खत्म हो चुका है. जल्द ही मतदान होगा. लेकिन, भाजपा ने अब तक अपने घोषणापत्र का ऐलान नहीं किया है. भाजपा ने आपको नहीं बताया कि अगले पांच साल में वह आपके लिए क्या करेगी.
उन्होंने कहा, मोदी जी कहते हैं कि भाजपा अगले सौ साल तक गुजरात में शासन करेगी. लेकिन, अपनी रैलियों में गुजरात के भविष्य पर वह एक शब्द तक नहीं कह रहे.
उन्होंने कहा, इसके बजाए, मोदीजी अफगानिस्तान, पाकिस्तान, चीन और कई वैश्विक मुद्दों के बारे में बात कर रहे हैं. यह चुनाव मोदी या राहुल गांधी को लेकर नहीं है… यह गुजरात के लोगों के लिए है.
राहुल ने कहा, भाजपा यहां पिछले 22 साल से शासन कर रही है. अब आपके पास उस सरकार को चुनने का अवसर है जो आपपर फोकस करेगी. लोग जानना चाहते हैं कि भाजपा या कांग्रेस उनके लिए क्या करेंगी. भाजपा ने अपना घोषणापत्र तक घोषित नहीं किया है जबकि हमने लोगों के साथ सघन बातचीत की है और उसके मुताबिक अपना घोषणापत्र तैयार किया है.
राहुल ने कहा कि पंचायतों अनुसूचित इलाके तक विस्तार के क्रियान्वयन, एसटी के लिए आरक्षित रिक्त पद भरे जाने, जनजाति छात्रों के लिए वजीफे और भूमि अधिग्रहण के लिए बेहतर मुआवजा सहित जनजाति समुदाय की सभी प्रमुख मांगों को कांग्रेस घोषणापत्र में शामिल किया गया है.
कांग्रेस नेता ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ने गुजरात में बिना समुचित मुआवजा दिए जनजातियों की 6.5 लाख एकड़ जमीन छीन ली.
पहले चरण में भाजपा-कांग्रेस में करीबी मुकाबला होने की संभावना
गुजरात विधानसभा चुनाव के पहले चरण में सत्तारूढ़ भाजपा और कांग्रेस के बीच करीबी मुकाबला होने की संभावना है. कांग्रेस में जमीनी स्तर पर चुनाव प्रबंधन का काम देख रहे नेताओं के चुनाव पूर्व अनुमान में पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में पार्टी के पास इस बार अधिक सीटें जीतने का अच्छा मौका है.
वर्ष 2012 में हुए चुनाव में विधानसभा की 182 सीटों में से कांग्रेस को 61 सीटें मिली थी. भाजपा को 115 सीटों पर जीत हासिल हुई थी. हालांकि भाजपा ने कांग्रेस के इस अनुमान को खारिज किया है और कहा है कि पार्टी ज्यादा मजबूती के साथ राज्य की सत्ता में फिर से आएगी.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जोरदार ढंग से पार्टी के लिए प्रचार किया और पार्टी अध्यक्ष अमित शाह ने भी इसमे अहम भूमिका निभाई है. कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने ऐसे समय में पार्टी के प्रचार का नेतृत्व किया है जब कांग्रेस पिछले 22 वर्षों से इस पश्चिमी राज्य की सत्ता से बाहर है.
गुजरात में पहली बार वोट देने जा रहे मतदाताओं के जेहन में है जाति, नौकरियां और मोदी
पाटीदार आंदोलन का केंद्र मेहसाणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के गृहनगर वडनगर से 35 किमी दूर है और दोनों जोड़ने वाली सड़क खराब है. यहां से वड़नगर जा रही गुजरात राज्य परिवहन निगम की बस में बड़ी संख्या में छात्र सवार हैं जिनमें से ज्यादातर स्थानीय कॉलेज में बीएससी के छात्र हैं और गुजरात विधानसभा चुनाव के 14 दिसंबर को होने वाले दूसरे चरण के मतदान में अपना पहला मत डालेंगे.
मेहसाणा और वड़नगर मेहसाणा जिले में आते हैं. वड़नगर उन्झा निर्वाचन क्षेत्र में आता है जबकि मेहसाणा शहर एक अलग निर्वाचन क्षेत्र है. इन 12 लाख नए मतदाताओं के जेहन में राजनीति के अलावा भी कई मुद्दे हैं.
इन्हीं में शामिल हैं आशीष पटेल और जशवंत सिंह. दोनों करीबी दोस्त हैं लेकिन उनके राजनीतिक विचार एकदम अलग-अलग हैं. आशीष पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के प्रमुख हार्दिक पटेल के कट्टर समर्थक हैं जबकि जशवंत का रुझान भाजपा की ओर है.
आशीष का कहना है कि यह मानना गलत है कि पटेल समुदाय के सभी लोग अमीर होते हैं. हममें से किसी के पास सरकारी नौकरी नहीं है. जमीन इतनी ज्यादा नहीं है कि पूरे परिवार का पेट भर सके. इसलिए हमें आरक्षण की जरूरत है.
मतदाताओं में पटेल 12 फीसदी हैं. उनमें से उपजाति है कड़वा और लेउवा. हार्दिक और आशीष कड़वा उपजाति से हैं जिनकी संख्या कम है. विश्लेषकों का कहना है कि राज्य में 182 सीटों में से करीब 60 सीटों के नतीजों को वे प्रभावित कर सकते हैं.
संख्याबल के मामले में लेउवा अधिक हैं. पूर्व मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल इसी उपजाति से आती हैं. जशवंत का मानना है कि भाजपा पांचवी बार जोरदार जीत दर्ज करेगी.
इस बस में सवार अन्य छात्र विक्रम चौधरी, धवल चौधरी, विकास चौधरी और निखिल देसाई सभी ओबीसी वर्ग से हैं. इसमें से एक विकास ने कहा, वडनगर का रिश्ता मोदी से है, मोदी खुद भी ओबीसी हैं. कोई भी अन्य पार्टी वहां उपस्थिति दर्ज नहीं करवाए पाएगी. हमारे आसपास विकास हो रहा है.
पहली बार मतदान करने जा रहे युवाओं के लिए विकास और नौकरियां का मुद्दा महत्वपूर्ण है. उनके लिए 2002 के दंगे खास मायने नहीं रखते. एक अन्य छात्र हितेश सोलंकी मानते हैं कि राहुल गांधी को एक मौका दिया जाना चाहिए.
भाजपा का गुजरात मॉडल लोगों को धोखा देने का मॉडल है: अखिलेश
समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने शुक्रवार को कहा कि उन्होंने गुजरात का विकास देखने के लिए यहां की यात्रा करने का फैसला किया. हालांकि, उन्होंने महसूस किया कि भाजपा का गुजरात मॉडल लोगों को धोखा देने का मॉडल है.
उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ने गुजरात में भाजपा के विकास मॉडल पर निशाना साधने के लिए आगरा-लखनउ एक्सप्रेसवे और लखन मेट्रो का हवाला दिया.
यादव यहां अपनी पार्टी के उम्मीदवारों का प्रचार करने के लिए पहुंचे थे. समाजवादी पार्टी राज्य की चार विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ रही है.
उन्होंने यहां संवाददाताओं से कहा, मैंने गुजरात के विकास मॉडल को देखने के लिए राज्य की यात्रा करने का फैसला किया क्योंकि भाजपा के नेता यहां कह रहे हैं कि वे विकास के आधार पर चुनाव लड़ रहे हैं. लेकिन हमने अपनी आंखों से देखा है कि गुजरात मॉडल लोगों को धोखा देने का मॉडल है.
यादव ने कहा, हमने देश की सर्वश्रेष्ठ सड़क का निर्माण किया है जिसपर लड़ाकू विमान उतर सकते हैं. हमने सोचा कि गुजरात में काफी विकास हुआ होगा. हमें पिछले 22 वर्षों में राज्य में बनाई गई ऐसी एक सड़क दिखाएं जहां लड़ाकू विमान उतर सकता है. पाकिस्तान से नजदीकी की वजह से ऐसी सड़कों की जरूरत गुजरात जैसे राज्य में अधिक है.
उन्होंने अहमदाबाद मेट्रो रेल परियोजना में विलंब के लिए राज्य सरकार की आलोचना भी की. उन्होंने कहा, मैंने सोचा था कि मैं जब अहमदाबाद की यात्रा करूंगा तो मुझे मेट्रो ट्रेन की सवारी करने को मिलेगी.
सपा अध्यक्ष ने कहा कि उनकी पार्टी सत्तारूढ़ भाजपा के खिलाफ कांग्रेस और उसके सहयोगी दलों का समर्थन कर रही है. यादव ने इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों में धांधली के मुद्दे पर भी भाजपा पर निशाना साधा. उन्होंने कहा कि उनकी पार्टी मानती है कि चुनाव मतपत्रों का इस्तेमाल करके होना चाहिए.
उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश में हाल में हुए स्थानीय निकाय के चुनावों में भाजपा उन्हीं स्थानों पर जीती जहां ईवीएम का इस्तेमाल हुआ. उन्होंने कहा, चुनाव आयोग ने स्वीकार किया है कि ईवीएम में खामी हो सकती है, अगर इसमें संशोधन किया जा सकता है तो इसके साथ छेड़छाड़ भी की जा सकती है. कई स्थानों पर आप कोई बटन दबाते हैं और वोट भाजपा को जाता है.
उन्होंने कहा कि हम पश्चिमी देशों की काफी नकल करते हैं, तो हम उनका अनुकरण करते हुए मतपत्रों की ओर क्यों नहीं लौटते हैं.
नाखुश जातीय समूह, छोटे व्यवसायी नोटा का विकल्प अपना सकते हैं
गुजरात चुनाव में पहली बार नोटा (उपर्युक्त में से कोई नहीं) विकल्प उपलब्ध होने से राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि कुछ जातीय समूह और छोटे तथा मध्यम व्यवसायी भी इसका इस्तेमाल कर सकते हैं जो जीएसटी को लेकर भाजपा से नाखुश हैं.
बहरहाल, भाजपा ने यह कहते हुए इन विचारों को खारिज कर दिया कि नोटा खेल बिगाड़ सकता है क्योंकि पार्टी को अपनी नीतियों की लोकप्रिय अपील पर विश्वास है जो हाल के पंचायत चुनाव परिणामों में दिखा.
वर्ष 2012 के गुजरात विधानसभा चुनाव में ईवीएम मशीनों में नोटा का विकल्प नहीं था. बहरहाल इस बार मतदाता इसका इस्तेमाल कर सकेंगे. राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक 2014 के लोकसभा चुनावों में जब नोटा का विकल्प दिया गया तो गुजरात में चार लाख 20 हजार से ज्यादा मतदाताओं ने इसका इस्तेमाल किया.
विश्लेषक ने कहा, उस वक्त कांग्रेस अपने सबसे खराब राजनीतिक दौर से गुजर रही थी और मध्य तथा पश्चित भारत में सत्ताविरोधी लहर थी. फिर भी गुजरात में 4.20 लाख मतदाताओं ने नोटा का इस्तेमाल किया.
उन्होंने कहा, इस बार कुछ सामाजिक-आर्थिक वर्ग सत्तारूढ़ भाजपा से निराश हैं. कुछ जातियां भगवा दल का पुरजोर विरोध कर रही हैं जबकि छोटे और मध्यम स्तर के उद्योगों जैसे कुछ सेक्टर जीएसटी लागू करने के लिए इसकी काफी आलोचना कर रहे हैं. नोटा का विकल्प वे लोग अपना सकते हैं जिन्होंने पहले भजापा नेताओं का विरोध किया था.
सत्तारूढ़ भाजपा ने दावा किया कि नोटा विकल्प से इस पर ज्यादा असर नहीं होगा और हाल के ग्राम पंचायत चुनावों में इसे काफी समर्थन मिला. यह पूछने पर कि 2014 के आम चुनावों में चार लाख से ज्यादा मतदाताओं ने नोटा विकल्प अपनाया था तो नेता ने कहा, 2014 के चुनावों में भाजपा का कुल वोट बढ़ा था. हाल में हुए ग्राम पंचायत चुनावों में भी भाजपा को मजबूत समर्थन दिखा.
उन्होंने कहा, मेरा मानना है कि नोटा से हमारा खेल खराब नहीं होगा. अगर कुछ मतदाता नोटा का इस्तेमाल करेंगे तो दोनों बड़ी पार्टियां प्रभावित होंगी न कि सिर्फ भाजपा.
बहरहाल नोटा के प्रति कांग्रेस ने अपना रुख बदला है, खासकर तब जब चुनाव पूर्व सर्वेक्षण में 182 सदस्यीय विधानसभा में पार्टी के लिए 78 सीटों पर जीत की संभावना बताई गई है.
कांग्रेस के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, पहले नोटा से भाजपा की जीत का अंतर कम होने की संभावना थी. अब नोटा और कुछ गैर भाजपा और भाजपा विरोधी मतदाताओं के एकजुट होने से हम कुछ और सीटों पर जीत हासिल कर सकेंगे.
भाजपा की सुरक्षित सीट पर कड़े मुकाबले का सामना कर सकते हैं मुख्यमंत्री रूपाणी
भाजपा का गढ़ मानी जाने वाली राजकोट-पश्चिम सीट पर पार्टी के हाई-प्रोफाइल प्रत्याशी और गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी को कड़े और रोमांचक मुकाबले का सामना करना पड़ सकता है. रूपाणी को इस सीट पर कांग्रेस के इंद्रनील राज्यगुरू से चुनौती मिल रही है.
पूर्व में राजकोट दो के तौर पर जानी जाने वाली इस सीट को भगवा पार्टी के लिए सुरक्षित माना जाता है. पार्टी वर्ष 1985 से इस सीट पर जीत हासिल करती रही है.
कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला 1985 से 2012 तक भाजपा के लिए सात बार इस सीट को जीत चुके हैं. 1985 में उन्होंने हर्षदबा चूड़ासमा को हराया था.
नरेंद्र मोदी को मुख्यमंत्री के तौर पर नामांकित किए जाने के बाद वाला ने 2002 में मोदी के लिए यह सीट छोड़ दी थी. बाद में मोदी के मणिनगर विधानसभा क्षेत्र का रुख करने के बाद वाला ने 2012 तक अपनी जीत का सिलसिला जारी रखा.
बाद में वाला को कर्नाटक भेजे जाने के बाद 2014 में विजय रूपाणी ने उपचुनाव में इस सीट पर जीत हासिल की. हालांकि राजकोट-पश्चिम आरएसएस का मजबूत गढ़ है लेकिन कांग्रेस ने राज्यगुरु को इस सीट पर खड़ा कर एक कड़ी चुनौती पेश कर दी है. जातिगत संयोजन को पार्टी के पक्ष में करने के लिए कांग्रेस ने राजकोट-पूर्व के मौजूदा विधायक राज्यगुरु को इस सीट के लिए मैदान में उतारा है.
इस सीट पर जीत हासिल करने के लिए रूपाणी को आक्रोशित पाटीदारों और व्यापारी समुदाय का विश्वास जीतना होगा जिसे नोटबंदी और जीएसटी लागू किए जाने के प्रभाव का सामना करना पड़ रहा है.
भाजपा के शासन में शिक्षा और सरकारी नौकरी में आरक्षण के अभाव को लेकर पाटीदारों के गुस्से को कांग्रेस रूपाणी के खिलाफ भुनाना चाह रही है. पाटीदारों के बीच भाजपा का आधार कोटा आंदोलन और हार्दिक पटेल के कांग्रेस के साथ हाथ मिलाने की वजह से प्रभावित हो सकता है.
गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे कांग्रेस उम्मीदवारों की संख्या में 10 प्रतिशत की वृद्धि
गुजरात विधानसभा चुनाव के दोनों चरणों में खड़े उम्मीदवारों के शपथपत्रों के विश्लेषण से पता चला है कि कांग्रेस के 38 उम्मीदवारों पर गंभीर आपराधिक आरोप हैं.
विश्लेषण में पता चला कि 2012 के विधानसभा चुनाव के पार्टी उम्मीदवारों की तुलना में गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे उम्मीदवारों की संख्या में 10 प्रतिशत की वृद्धि हुई है.
दो गैर सरकारी संगठनों- एसोसियेशन फार डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) और गुजरात एलेक्शन वॉच (जीईडब्ल्यू) द्वारा किए गए विश्लेषण के अनुसार कांग्रेस का आंकड़ा 12 प्रतिशत से बढ़कर 22 प्रतिशत हो गया.
2012 में इस तरह के आरोपों का सामना कर रहे कांग्रेस उम्मीदवारों की संख्या कुल 171 उम्मीदवारों में 21 थी. इस बार 174 में से 38 उम्मीदवार ऐसे हैं जोकि उनका 22 प्रतिशत है.
इसकी तुलना में भाजपा के उम्मीदवारों का आंकड़ा पिछले चुनाव की तरह 13 प्रतिशत ही है. 2012 में भाजपा में 180 उम्मीदवारों में से 24 गंभीर आपराधिक आरोपों का सामना कर रहे थे जबकि इस बार उसके 175 उम्मीदवारों में से 23 पर बलात्कार, हत्या की कोशिश, लूटपाट और अपहरण के आरोप हैं.
विश्लेषण के अनुसार चुनाव में खड़े उम्मीदवारों में से कुल 165 पर गंभीर आपराधिक आरोप हैं.
पोरबंदर में पुराने प्रतिद्वंद्वी फिर आमने-सामने
गुजरात में विधानसभा चुनाव में पुराने प्रतिद्वंद्वी भाजपा के बाबू बोखीरिया और कांग्रेस के अर्जुन मोडवाडिया एक बार फिर से पोरबंदर सीट पर आमने सामने हैं.
महात्मा गांधी की जन्मस्थली पोरबंदर से चुनाव लड़ रहे दोनों नेताओं को दिग्गज माना जा रहा है और दोनों पहले एक दूसरे को हरा चुके हैं. यह मछुआरा समुदाय बहुल क्षेत्र है और कांग्रेस इस समुदाय को अपने पक्ष में करने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है इसके बावजूद यहां दोनों पार्टियों के बीच कड़ी टक्कर होने के आसार हैं.
दोनों पार्टी के नेता- बोखीरिया एवं मोडवाडिया मेर समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. यहां मेर और मछुआरा समुदाय की संख्या 70,000 और 30,000 के करीब हैं वहीं ब्राह्मण और लोहान समुदाय की संख्या 50,000 और 20,000 है. लेकिन पोरबंद सीट पर जीत में मछुआरा समुदाय की बड़ी भूमिका हो सकती है. मछुआरा समुदाय के निर्णायक होने के कारण भाजपा और कांग्रेस दोनों ने ही धुआंधार चुनाव प्रचार किया है और इस समुदाय का समर्थन अपने पक्ष में होने का दावा किया.
बोखीरिया वर्तमान में विधायक हैं और वह गुजरात सरकार में कैबिनेट मंत्री रह चुके हैं.
हार्दिक के लिए प्रतिष्ठा का मुद्दा बनी धोराजी सीट
गुजरात की धोराजी विधानसभा सीट पर चुनाव पाटीदार अनामत आंदोलन समिति पीएएएस के नेता हार्दिक पटेल के लिए प्रतिष्ठा का मुद्दा बन गया है क्योंकि उनके प्रमुख सहयोगियों में से एक ललित वसोया यहां से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ रहे हैं.
राजकोट जिले में पटेल समुदाय की बहुलता वाली इस विधानसभा सीट पर वसोया का मुकाबला भाजपा के दिग्गज नेता और पूर्व लोकसभा सदस्य हरीलाल पटेल के साथ है.
धोराजी सीट पारंपरिक रूप से कांग्रेस का एक मजबूत गढ़ रही है. कांग्रेस छोड़ कर भाजपा में शामिल होने से पूर्व पटेल समुदाय के दिग्गज नेता विट्ठल रदादिया कांग्रेस के टिकट पर पांच बार इस सीट से विधायक चुने गये थे.
रदादिया इस समय लोकसभा में पोरबंदर से भाजपा सांसद हैं. धोराजी एकमात्र विधानसभा सीट है जहां पर कांग्रेस ने हार्दिक पटेल की अगुवाई वाले पीएएएस के एक नेता को मैदान में उतारा है.
इस निर्वाचन क्षेत्र में पाटीदारों की बड़ी संख्या है लेकिन मुस्लिम और दलित भी बड़ी संख्या में हैं. इन सभी कारकों का असर इस सीट पर होने जा रहे चुनाव में पड़ सकता है.
हालांकि, पाटीदार और दलितों के मुद्दों से अधिक प्रभावी मुद्दा यहां स्थानीय स्तर पर विकास का है क्योंकि धोराजी शहर में भूमिगत सीवेज प्रणाली अधूरी है और सड़क अवसंरचना की हालत अच्छी नहीं है. किसानों के लिए कपास और मूंगफली जैसी उनकी उपज के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य हासिल करना बड़ी दिक्कत है.
वसोया ने कहा यहां जाति और पार्टीदारों के मुद्दों से अधिक प्रभावी स्थानीय मुद्दे हैं. भाजपा शासित नगर पालिका भूमिगत सीवेज प्रणाली को समय पर पूरा नहीं कर पाई. यह अब तक अधूरी है.
पीएएस नेता धुआंधार प्रचार कर रहे हैं और स्थानीय निकाय में कथित भ्रष्टाचार तथा गांव में किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं.
क्या कांग्रेस भाजपा के गढ़ सूरत में सेंध लगा पाएगी
गुजरात में हीरों के शहर और पाटीदार कोटा आंदोलन के केंद्र सूरत में विधानसभा चुनाव का कड़ा मुकाबला देखने को मिल सकता है क्योंकि कांग्रेस ने इस बार पाटीदार आंदोलन का चेहरा रहे हार्दिक पटेल को अपने शस्त्र के तौर पर शामिल किया है.
पाटीदार फैक्टर के अलावा जीएसटी, नोटबंदी जैसे मुद्दों के बीच यह देखना दिलचस्प होगा कि हीरों एवं कपड़ों के कारोबार की नगरी के लोग किसके पक्ष में मतदान करेंगे. यहां भी शनिवार को पहले चरण में ही मतदान हो रहा है.
अहमदाबाद गुजरात का सबसे बड़ा शहर है जबकि इस चुनावी मौसम में सूरत दिग्गज नेताओं की पसंदीदा जगह बनकर उभरा है. जीएसटी एवं नोटबंदी से प्रभावित लोगों की दुर्दशा समझाने के लिए कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी पिछले महीने दो बार शहर की यात्रा कर चुके हैं.
अपनी यात्रा के दौरान राहुल ने शहर के पाटीदार गढ़ों- वरछा और कतारगाम में विशाल रैली को संबोधित किया था. तीन दिसंबर को कोटा आंदोलन के नेता हार्दिक पटेल ने वरछा में विशाल रोड शो किया था. मुख्यमंत्री विजय रुपाणी के नेतृत्व में उसी दिन माजुरा में भाजपा का रोड शो हुआ था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले महीने शहर के बाहरी इलाके में स्थित कडोदरा में एक रैली को संबोधित किया था. पाटीदारों एवं कारोबारियों की नाराजगी को देखते हुए कांग्रेस को इस बार भाजपा से कुछ सीटें छीनने की उम्मीद है, जबकि दूसरी ओर भाजपा को विश्वास है कि वह लंबे समय से उसका गढ़ रहे सूरत में अपनी पकड़ बनाए रखेगी क्योंकि उसके नेताओं का दावा है कि कांग्रेस जो दिखा रही है, जमीनी हकीकत उससे कहीं अलग है.
सूरत नगर कांग्रेस अध्यक्ष हसमुख देसाई ने कहा कि शहर के ज्यादातर लोगों का संबंध सौराष्ट्र से है, ऐसे में कृषि संकट उनके गुस्से को भड़काने का काम कर सकता है. शहर में पटेलों की बहुतायत है.
बहरहाल, भाजपा ने इन दलीलों को खारिज कर दिया और दावा किया कि जमीनी हकीकत इससे बिल्कुल अलग है. माजुरा से भाजपा के मौजूदा विधायक हर्ष सांघवी ने कहा, शुरू में कारोबारी जीएसटी से नाराज थे लेकिन अब वे इसे समझ पा रहे हैं. यह तथाकथित गुस्सा कभी वोट में नहीं बदलेगा. अगर लोग अब भी हमारे खिलाफ होते तो फिर मुख्यमंत्री की रैली में इतनी संख्या में लोग कैसे आते.
सूरत के लिए पाटीदार अनामत आंदोलन समिति के संयोजक धार्मिक मालवीय ने कहा कि उन्होंने कम से कम पांच सीटों पर भाजपा को हराने का लक्ष्य निर्धारित किया है. उन्होंने कहा, लोग हमारे समर्थन में हैं और भाजपा उम्मीदवारों को प्रचार के लिए पाटीदारों की सोसायटियों में घुसने में भी दिक्कत आ रही है.
(समाचार एजेंसी भाषा से इनपुट के साथ)