मणिपुर में हिंसा जारी, मोरेह में स्कूल और जिरीबाम में घरों में आग लगाई गई

मणिपुर के सीमावर्ती शहर मोरेह के पास टी मोथा में अज्ञात हमलावरों ने एक स्कूल की इमारत में आग लगा दी, वहीं जिरीबाम ज़िले के कालीनगर में खाली पड़े घरों और दुकानों में आगजनी हुई. इस बीच राज्य सरकार ने आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों के पुनर्वास के लिए कैबिनेट उपसमिति बनाने की बात कही है.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: X/@manipur_police)

नई दिल्ली: मणिपुर के सीमावर्ती शहर मोरेह के पास टी मोथा में बुधवार को अज्ञात हमलावरों ने एक स्कूल की इमारत में आग लगा दी, जबकि जिरीबाम जिले के कालीनगर में खाली पड़े घरों और दुकानों में आग लगा दी गई.

मालूम हो कि बीते 6 जून को जिरीबाम जिले में एक लापता व्यक्ति का सिर कटा शव बरामद होने के बाद पिछले सप्ताह से राज्य में हिंसा का एक नया दौर शुरू हो गया है और 2,000 से अधिक लोगों को असम और जिरीबाम क्षेत्र के अन्य हिस्सों में सुरक्षित स्थानों पर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, बुधवार रात करीब 9 बजे अज्ञात हमलावरों ने मोरेह शहर के पास जवाहर नवोदय विद्यालय की नवनिर्मित इमारत में आग लगा दी, जिसका अभी उद्घाटन नहीं हुआ है.

मोरेह मणिपुर के सबसे बड़े व्यावसायिक केंद्रों में से एक है, जो 3 मई, 2023 को चूड़ाचांदपुर जिले से भड़की हिंसा के बाद से बंद है.

लोगों के अनुसार, सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) के जवानों ने नवनिर्मित जेएनवी भवन, टी मोथा में एक चौकी स्थापित करने की योजना बनाई थी, जो कि बड़े पैमाने पर अनल समुदाय (Anāl community) का निवास स्थान है. यह गांव असम राइफल्स की चौकी के ठीक सामने स्थित है.

भारत-म्यांमार सीमा पर स्थित मोरेह शहर कई वर्षों से अवैध घुसपैठ का गढ़ रहा है. ख़बरें बताती हैं कि म्यांमार के कई सशस्त्र समूह मोरेह शहर और उसके आसपास के विभिन्न स्थानों पर रह रहे हैं, खासकर साही, हाओलेनफाई, टी मिनौ, गोवाजांग, बी बोंगजांग और अन्य में जगहों पर.

आगजनी की घटना के बाद आसपास के इलाकों के ग्रामीणों ने सुरक्षा बलों को मौके पर पहुंचने से रोकने के लिए जेएनवी, टी मोथा की ओर जाने वाली सभी सड़कों को लकड़ियों से अवरुद्ध कर दिया. हालांकि, स्कूल के ठीक सामने स्थित 5वीं असम राइफल्स चौकी आग बुझाने के लिए आवश्यक कदम उठाने के बजाय मूकदर्शक बनी रही.

इसके अलावा, बुधवार रात मणिपुर के जिरीबाम जिले के कालीनगर में तीन घरों और चार दुकानों में आग लगा दी गई. पुलिस के अनुसार, दुकान हमार समुदाय के एक सदस्य की थी.

पुलिस ने कहा कि घटना रात करीब 10:30 बजे हुई और जिला पुलिस की त्वरित प्रतिक्रिया के कारण आग बुझा दी गई. बाद में गुरुवार को करीब 1:30 बजे उसी इलाके में स्थित तीन खाली पड़े घरों में अज्ञात हमलावरों ने आग लगा दी, जिसे बुझा दिया गया.

जिरीबाम में चार दुकानों में आग लगने के बाद हमार जनजाति ने 24 घंटे निगरानी की मांग की

जनजातियों के एक नागरिक समाज समूह ने एक बयान में कहा कि हमार-कुकी-ज़ोमी जनजातियों के सदस्यों द्वारा संचालित चार दुकानों में आग लगने के बाद जिरीबाम में फिर से तनाव पैदा हो गया.

एनडीटीवी की रिपोर्ट के मुताबिक, इंडिजिनस ट्राइबल एडवोकेसी कमेटी (आईटीएसी) ने बयान में अधिकारियों से अपराधियों को तुरंत गिरफ्तार करने और कानून के अनुसार उन्हें उचित दंड देने के लिए कहा.

आईटीएसी ने आरोप लगाया कि दुकानों में आग मेईतेई सशस्त्र समूह आरमबाई तेंगोल ने लगाई थी.

आईटीएसी ने बयान में आरोप लगाया, ‘जलाए गए घर और दुकानें… (सभी) हमार वेंग, कालीनगर, जिरीबाम और मेईतेई लेइकाई, जिरीबाम में स्थित हैं. जिसमें दुकान मालिकों के नाम भी शामिल थे.’

इसमें कहा गया है कि जिन क्षेत्रों को 24 घंटे सुरक्षा की आवश्यकता है, उनमें कालीनगर भाग 1 और 2, हमार वेंग, आईबी लीकाई, करोंग, रानिन वेंग, मिशन कंपाउंड, वेंगनुअम, बाबूपारा वार्ड नंबर 4 (बाजार) और उचाथोल शामिल हैं.

आईटीएसी ने बयान में कहा, ‘हम सक्षम अधिकारियों से आग्रह करते हैं कि वे जिरीबाम में हमार, कुकी और ज़ोमी के इंडिजिनस आदिवासियों के इलाकों में और उसके आसपास केंद्रीय बलों द्वारा 24 घंटे निगरानी और गश्त की व्यवस्था करें, ताकि मेईतेई बदमाशों और आरमबाई तेंगोल द्वारा संपत्तियों को नष्ट/क्षतिग्रस्त और चोरी करने से रोका जा सके.’

आईटीएसी ने कहा कि अब तक जिरीबाम में हमार-कुकी-ज़ोमी जनजातियों के 45 घरों को जला दिया गया है. पिछले शनिवार को मेईतेई भीड़ ने एक चर्च में आग लगा दी थी, जिसे स्थानीय लोगों ने  पूरी इमारत में फैलने से पहले ही बुझा दिया था.

जिरीबाम से 943 विस्थापित लोग राहत शिविरों में; पुनर्वास के लिए कैबिनेट उपसमिति का प्रस्ताव

इस बीच, संवेदनशील क्षेत्रों से निकाले गए लगभग 600 प्रभावित लोग अभी भी जिरीबाम थाने के पास एक खेल परिसर में शरण लिए हुए हैं.

डिप्टी कमिश्नर कृष्ण कुमार के मार्गदर्शन में जिला प्रशासन, जिरीबाम की राहत टीम ने गुरुवार को राहत शिविरों का निरीक्षण किया. टीम ने किसी भी कमी को पूरा करने के लिए लोगों से बातचीत भी की.

रिपोर्ट के अनुसार, मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने गुरुवार को कैबिनेट की बैठक की और कहा कि सरकार ने आंतरिक रूप से विस्थापित लोगों के पुनर्वास के लिए कैबिनेट उपसमिति बनाने का प्रस्ताव किया है.

हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, उप-समिति की अध्यक्षता निर्माण और युवा मामले एवं खेल मंत्री के गोविंददास सिंह करेंगे, जबकि मंत्री अवांगबो न्यूमई (जल संसाधन और राहत एवं आपदा प्रबंधन), डॉ. सपम रंजन सिंह (चिकित्सा स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण और सूचना एवं जनसंपर्क) और खशिम वशुम (पशुपालन एवं पशु चिकित्सा और परिवहन) समिति के सदस्य होंगे.

सूचना एवं जनसंपर्क निदेशालय (डीआईपीआर) ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा, ‘मंत्रिमंडल उप-समिति के कार्यक्षेत्र में राहत शिविरों में रहने वाले आईडीपी की शिकायतों की पहचान करना, राहत शिविरों में रहने वाले लोगों की जरूरतों और आवश्यकताओं का आकलन करना, आईडीपी के पुनर्वास के उपायों की निगरानी करना और आईडीपी के अस्थायी पुनर्वास के लिए भूमि की पहचान करना शामिल है.’

मालूम हो कि जिरीबाम में 6 जून को उस समय तनाव फैल गया जब अज्ञात हमलावरों ने एक व्यक्ति के अपहरण के बाद उनकी हत्या कर दी गई थी और उनका सिर अलग किया गया शव बरामद हुआ था. इसके बाद स्थानीय लोगों ने हत्या के खिलाफ विरोध प्रदर्शन करते हुए कुछ घरों को आग लगा दी थी.

उसके बाद बीते 8 जून को अज्ञात बदमाशों ने जिरीबाम में दो पुलिस चौकियों, एक वन विभाग कार्यालय और कम से कम 70 घरों को आग के हवाले कर दिया, जिससे पड़ोसी राज्य में तनाव फिर से पैदा हो गया, जहां पिछले साल मई से जातीय हिंसा जारी है.

राज्य के अन्य हिस्सों में छिटपुट हिंसा जारी है. बुधवार को इंफाल ईस्ट और कांगपोकपी जिलों के बीच सीमा के पास के इलाकों से रुक-रुक कर गोलीबारी की खबर मिली.

ज्ञात हो कि मणिपुर में बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय और कुकी-जो आदिवासी समुदायों के बीच जातीय संघर्ष पिछले साल 3 मई को शुरू हुआ था. संघर्ष में अब तक 220 से अधिक लोग मारे गए हैं, हजारों घायल हुए हैं और कम से कम 50,000 लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं.

मणिपुर की आबादी में मेईतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी जिनमें नगा और कुकी समुदाय शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.