प्रेस संगठनों की अपील- प्रेस की आज़ादी पर अंकुश लगाने वाले क़ानूनों को वापस ले केंद्र

बीते महीने पत्रकारों के 15 संगठनों के प्रतिनिधियों ने एक बैठक में हिस्सा लेने के बाद संयुक्त तौर पर कहा कि सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रस्तावित प्रेस क़ानून मीडिया की स्वतंत्रता में बाधा न डालें, तथा नागरिकों की निजता के अधिकार को बरकरार रखा जाए.

(प्रतीकात्मक फोटो साभार: विकीमीडिया कॉमन्स)

नई दिल्ली: देश के शीर्ष प्रेस संगठनों ने केंद्र सरकार से प्रेस की स्वतंत्रता पर अंकुश लगाने वाले कानूनों को वापस लेने का आग्रह किया है. इसके अलावा मीडिया संगठनों ने सरकार से भारतीय प्रेस परिषद के स्थान पर एक ऐसा निकाय बनाने की मांग की है, जिसमें प्रसारण और डिजिटल मीडिया भी शामिल हों और जो लगातार बदलते परिदृश्यों में चुनौतियों से निपट सके.

बीते महीने 28 मई को पत्रकारों के 15 संगठनों के प्रतिनिधियों ने एक बैठक में हिस्सा लिया और एक प्रस्ताव के माध्यम से उन बिंदुओं पर प्रकाश डाला, जिसकी मांग लंबे समय से पत्रकार संगठन कर रहे हैं.

इसमें कहा गया है कि सरकार को यह सुनिश्चित करना होगा कि प्रस्तावित भावी प्रेस कानून मीडिया की स्वतंत्रता में बाधा न डालें तथा नागरिकों की निजता के अधिकार को बरकरार रखा जाए.

इस बैठक में प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, इंडियन जर्नलिस्ट यूनियन, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट्स, डिजिपब न्यूज फाउंडेशन, इंटरनेट फ्रीडम फाउंडेशन, वर्किंग न्यूज कैमरामैन एसोसिएशन, भारतीय महिला प्रेस कोर सहित मुंबई, कोलकाता, तिरुवनंतपुरम और चंडीगढ़ के प्रेस क्लब और अन्य पत्रकार संगठनों ने हिस्सा लिया.

सभी संगठनों की ओर से जारी एक संयुक्त बयान में कहा गया कि प्रस्तावित प्रसारण सेवा (विनियमन) विधेयक-2023, डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण अधिनियम-2023, प्रेस और पत्रिकाओं का पंजीकरण अधिनियम-2023 और इससे भी महत्वपूर्ण सूचना प्रौद्योगिकी संशोधन नियम- 2023 जैसे कानूनों के व्यापक प्रावधानों का उद्देश्य प्रेस को चुप कराना है. ये प्रावधान सरकार को किसी भी ऑनलाइन सामग्री को हटाने का अधिकार देते हैं जिसे वह गलत या भ्रामक मानती है.

संगठनों ने आगे कहा कि इन प्रस्तावित कानूनों से नियंत्रण और विनियमन की आशंकाएं हैं और इससे नागरिकों के जानने के अधिकार पर अनुचित प्रतिबंध लग सकते हैं. सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि लोगों के जानकारी प्राप्त करने (जानने) के अधिकार का हनन न हो. बार-बार इंटरनेट बंद करने का चलन नागरिकों के सूचना के अधिकार और पत्रकारों की ख़बरें देने की क्षमता, दोनों को बाधित करती है.

इस बैठक में कहा गया कि देश में प्रेस को भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत दिए गए अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना चाहिए ताकि यह हमारे जीवंत और समावेशी लोकतंत्र के एक महत्वपूर्ण स्तंभ के रूप में कार्य करना जारी रखे.

प्रेस संगठनों ने मांग की कि सरकार को डिजिटल पर्सनल डेटा एक्ट, 2023 के ऐसे सभी प्रावधानों को या तो हटाना चाहिए या उनमें संशोधन करना चाहिए, जिनका उद्देश्य सूचना का अधिकार अधिनियम, 2005 को कमजोर करना है.

इस बैठक में ये भी मांग की गई कि संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित भारतीय प्रेस परिषद की जगह एक मीडिया परिषद बनाई जाए, जिसमें प्रसारण और डिजिटल मीडिया को शामिल किया जाए. मीडिया परिषद को लगातार बदलते मीडिया परिदृश्य से उत्पन्न चुनौतियों से निपटने के लिए सशक्त बनाया जाना चाहिए.

इसमें श्रमजीवी पत्रकार, यूनियनों के प्रतिनिधि, मालिक और सरकार शामिल होने चाहिए. इसे मीडिया घरानों, प्रकाशनों, प्रसारण और डिजिटल रूप से प्रकाशित सामग्री और मालिकों पर सख्ती बरतने और ऐसे अन्य उपाय करने का अधिकार दिया जाना चाहिए.

इस बैठक में व्यक्तिगत डेटा की सुरक्षा, अभिव्यक्ति स्वतंत्रता, त्वरित एवं आसानी से सुलभ शिकायत निवारण तंत्र के लिए एक आधुनिक कानूनी ढांचे की आवश्यकता पर भी बल दिया गया.

(इस प्रस्ताव के सभी बिंदुओं को पढ़ने के लिए यहांं क्लिक करें.)