नई दिल्ली: राजस्थान के कोटा शहर में आईआईटी-जेईई प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे एक 17 वर्षीय छात्र ने अपने कमरे में फांसी लगाकर आत्महत्या कर ली है. पुलिस ने रविवार (16 मई) को यह जानकारी दी.
बिहार के मोतिहारी निवासी आयुष जायसवाल प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के लिए महावीर नगर इलाके के सम्राट चौक के पास एक पेइंग गेस्ट (पीजी) हाउस में रह रहे थे.
द टेलीग्राफ के मुताबिक, पुलिस ने बताया कि जब छात्र शनिवार रात तक अपने कमरे से बाहर नहीं आया तो उसके दोस्तों ने पीजी के मालिक को इसकी सूचना दी.
महावीर नगर एसएचओ महेंद्र मारू ने बताया, ‘प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे एक लड़के ने शनिवार रात आत्महत्या कर ली. वह अपने कमरे में लटका हुआ पाया गया. अभी तक कोई सुसाइड नोट बरामद नहीं हुआ है. उसके परिवार के सदस्यों के यहां पहुंचने के बाद पोस्टमार्टम किया जाएगा.’
उन्होंने बताया कि जब छात्र ने दरवाजा नहीं खोला तो पीजी के मालिक ने पुलिस को सूचना दी. सूचना मिलने पर एक टीम मौके पर पहुंची और दरवाजा तोड़ा तो छात्र को फंदे से लटका हुआ पाया. पुलिस ने उसे नीचे उतारा और न्यू मेडिकल कॉलेज अस्पताल ले गई, जहां डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया.
इस साल अब तक कोटा में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे किसी छात्र द्वारा की गई यह 11वीं आत्महत्या है.
पिछले साल 26 छात्रों ने की थी आत्महत्या
बता दें कि वर्ष 2023 में विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे 26 छात्रों ने आत्महत्या की थी, जो 2015 के बाद से सबसे अधिक था. पुलिस आंकड़ों के मुताबिक, कोटा में 2022 में 15, 2019 में 18, 2018 में 20, 2017 में 7, 2016 में 17 और 2015 में 18 छात्रों की मौत आत्महत्या से हुई थी. 2020 और 2021 में छात्रों की आत्महत्या का कोई मामला सामने नहीं आया था, क्योंकि कोविड-19 महामारी के कारण कोचिंग संस्थान बंद हो गए थे या ऑनलाइन मोड पर चल रहे थे.
प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए प्रतिवर्ष 2,00,000 से अधिक छात्र कोटा जाते हैं. पिछले साल प्रशासन ने इन मौतों को रोकने के लिए कई कदम उठाए थे. प्रशासन ने हॉस्टल के कमरों में ‘आत्महत्या-रोधी’ पंखे, बालकनियों में जाल लगाना और टॉपर्स के महिमामंडन पर प्रतिबंध लगाने जैसे उपाय अपनाए थे.
लड़कियों में आत्महत्या की दर का पता लगाने के लिए प्रशासनिक अधिकारियों की अगुआई में पांच विशेष महिला दस्ते भी गठित किए गए. प्रत्येक दस्ते को नियमित रूप से कोचिंग सेंटर में लड़कियों से बात करने और हर 15 दिन में जिला कलेक्टरों को विस्तृत रिपोर्ट सौंपने का काम दिया गया. हालांकि, इन उपायों का क्रियान्वयन अभी भी अधर में लटका हुआ है.