बेंगलुरू: आत्महत्या करने वाले दलित मेडिकल छात्र के पिता ने साथी छात्रों पर उत्पीड़न का आरोप लगाया

बेंगलुरु के श्री अटल बिहारी वाजपेयी मेडिकल कॉलेज एंड रिसर्च इंस्टिट्यूशन में बीते 10 जून को 22 वर्षीय मेडिकल छात्र लोकेंद्र सिंह ढांडे ने आत्महत्या कर ली थी. उनके पिता का कहना है कि दलित होने के चलते उसका उत्पीड़न किया जाता था.

लोकेंद्र ढांडे. (फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट)

मुंबई: बीते 10 जून को बेंगलुरु के श्री अटल बिहारी वाजपेयी मेडिकल कॉलेज एंड रिसर्च इंस्टिट्यूशन में 22 वर्षीय मेडिकल छात्र लोकेंद्र सिंह ढांडे को लड़कों के छात्रावास की छत से लटका हुआ पाया गया. इस छात्रावास में वह पिछले दस महीने से रह रहा था.

राजस्थान के सुदूर बाड़मेर जिले के दलित युवक लोकेंद्र ने कोई सुसाइड नोट नहीं छोड़ा है.

हालांकि, उनके पिता- जो एक वकील और आंबेडकरवादी बौद्ध हैं- ने आरोप लगाया है कि उनके बेटे को उसके तीन रूममेट्स द्वारा परेशान और प्रताड़ित किया गया, जो उसी कॉलेज में छात्र हैं.

अकादमिक रूप से होनहार छात्र लोकेंद्र ने राष्ट्रीय पात्रता-सह-प्रवेश परीक्षा (नीट) में दो प्रयासों के बाद मेडिकल कॉलेज में प्रवेश लिया था. पिछले साल अगस्त में दाखिला लेने के बाद, लोकेंद्र 2,000 किलोमीटर दूर बेंगलुरु चले गए.

उनके पिता अमित ढांडे ने द वायर को बताया, ‘यह पहली बार था जब मेरा बेटा राजस्थान से बाहर किसी बड़े शहर में पढ़ाई करने जा रहा था.’

कॉलेज के तीन छात्रों के खिलाफ अमित के आरोप उनके बेटे द्वारा एक महीने पहले साझा की गई बातों पर आधारित हैं.

अमित ने बताया, ‘एक महीने पहले, तीन छात्रों में से एक ने मेरे बेटे के बारे में शिकायत करने के बहाने मुझसे संपर्क किया. उसने मेरे बेटे के खिलाफ कुछ झूठे दावे किए. जब ​​मैंने अपने बेटे से इस बारे में पूछा तो उसने बताया कि कैसे उसके रूममेट उसे परेशान करते रहते हैं और झूठे आरोप लगाते रहते हैं.’

चूंकि ये आरोप ज़्यादातर हल्के-फुल्के थे, इसलिए अमित का कहना था कि उन्होंने उन पर ज़्यादा ध्यान नहीं दिया. उन्हें लगा कि कॉलेज जाने वाले वाले बच्चों को एडजस्ट होने में समय लगता है. लेकिन अब जबकि लोकेंद्र ने अपनी जान दे दी है, पिता का कहना है कि उन्हें अपने बेटे को और भी बातें साझा करने के लिए प्रेरित करना चाहिए था. उन्होंने कहा, ‘मुझे नहीं पता था कि मेरा बेटा इस हद तक संघर्ष कर रहा था कि उसने आत्महत्या करने का फैसला कर लिया.’

अमित के अनुसार, तीनों रूममेट नियमित रूप से लोकेंद्र को ‘परेशान’ करते थे और उससे अपने खाने का खर्चा उठाने के लिए कहते थे.

अमित ने दावा किया, ‘वे इसे पार्टी कहते थे और हर कुछ दिनों में लोकेंद्र को अपने खाने का खर्च उठाने के लिए मजबूर करते थे. लेकिन जब खाने का भुगतान करने की उनकी बारी आती, तो वे उसे ग्रुप से बाहर कर देते थे. उनके लगातार उत्पीड़न से मेरा बेटा अलग-थलग और बुरी तरह प्रताड़ित महसूस करता था.’

उन्होंने यह भी कहा कि रूममेट्स ने लोकेंद्र को उसकी जाति के आधार पर भी अपमानित किया. बता दें कि ढांडे परिवार मेघवाल समुदाय से ताल्लुक रखता है, जो राजस्थान की एक अनुसूचित जाति है.

10 जून को दोपहर करीब 3 बजे लोकेंद्र छात्रावास में अपने कमरे की छत से लटका हुआ मिला. मां नीता ढांडे का कहना है, ‘हमें हमारे बेटे की मौत के बारे में कॉलेज प्रिंसिपल ने बताया.’ उनके माता-पिता के अनुसार, कॉलेज के अधिकारियों ने लोकेंद्र के फिंगरप्रिंट का इस्तेमाल करके उसका फोन अनलॉक किया और अमित का नंबर डायल किया.

दूर राजस्थान में बैठे परिवार को बेंगलुरु पहुंचने में 24 घंटे से अधिक का समय लगा.

अमित ने कहा, ‘हमारे लिए यह सफल आसान नहीं था. हमें वाहन किराए पर लेकर अहमदाबाद पहुंचना पड़ा और फिर बेंगलुरू के लिए उड़ान भरी. वहां पहुंचने पर, न तो कॉलेज के प्रिंसिपल और न ही कोई वरिष्ठ अधिकारी हमसे मिलने आए. हमारी अनुपस्थिति में कॉलेज मेरे बच्चे का अभिभावक था. जब वह जीवित था, तब उन्होंने उसकी परवाह नहीं की और जब वह मर गया, तब भी उन्होंने उसकी परवाह नहीं की.’

परिवार को अपने बेटे के शव को घर वापस ले जाने का भी प्रबंध करना पड़ा.

परिवार का मानना ​​है कि लोकेंद्र की आत्महत्या के पीछे और भी कुछ है. उन्होंने दावा किया, ‘जब मेरे बच्चे का शव मिला था, तो कॉलेज को उसके किसी भी सामान को छूने से बचना चाहिए था. लेकिन उन्होंने उसके फोन को खोल लिया. हमें बाद में पता चला कि कॉलेज के सभी वॉट्सऐप ग्रुप से मैसेज डिलीट कर दिए गए थे, जिनका लोकेंद्र हिस्सा था.’

कॉमर्शियल स्ट्रीट पुलिस थाने ने अमित की शिकायत दर्ज कर ली है, लेकिन तीनों गैर-दलित छात्रों में से किसी को भी मामले में आरोपी नहीं बनाया गया है.

अमित ने द वायर को बताया कि लोकेंद्र की मौत के बाद उसके चार भाई-बहन और उसकी मां सदमे में हैं.

पिता पूछते हैं, ‘मेरे दो बच्चे मेडिकल की पढ़ाई की तैयारी कर रहे हैं. अब मैं उन्हें मेडिकल की पढ़ाई के लिए शहर कैसे दूर जाने दूं?’

बाड़मेर में कई जाति-विरोधी अभियानों का हिस्सा रहे अमित ने मामले की सीबीआई जांच की मांग की है. कई जाति-विरोधी संगठनों ने कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्धारमैया और राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को पत्र लिखकर मामले की निष्पक्ष जांच और परिवार को मुआवजा देने की मांग की है.

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