मणिशंकर अय्यर के बयान से प्रधानमंत्री इतने आहत हो गए कि इसी पर वोट मांगने लगे. साथ भी यह भी पूछ डाला कि क्या मणिशंकर अय्यर पाकिस्तान उनकी सुपारी देने गए थे?
नेताओं की बयानबाज़ियां हैं. फिर बयानबाज़ियों को लेकर बयानबाज़ियां हैं. हर कोई दूसरे की कड़ी निंदा कर रहा है लेकिन अपने ख़राबतर बयानों का स्पष्टीकरण है, विरोधियों के लिए लानत मलामत का जख़ीरा है. विशेषज्ञ लोकतंत्र की गरिमा के लिए परेशान हैं, नेता कह रहे हैं कि वे भी लोकतंत्र बचाने के लिए ही बयान दे रहे हैं.
हर किसी के पास अपनी बयानबाज़ियों में एक सीढ़ी उतरकर बयान देने की सुविधा है. देश के नागरिक भी नेताओं की तरह दो धड़ों में हैं. कुछ के पास निकृष्ट बयानों के पक्ष में तर्क हैं, कुछ प्रधानमंत्री की ही तरह आहत हैं कि देश के सर्वोच्च पदों पर बैठे लोग भी अपने पदों की गरिमा तक का ख्याल क्यों नहीं करते?
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी डॉ. आंबेडकर पर बनी एक संस्था का उद्घाटन करने पहुंचे तो कांग्रेस पर आरोप लगाया कि एक परिवार के चलते आंबेडकर के योगदान को भुला दिया गया. आंबेडकर पर राजनीति से आहत कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने कहा कि मोदी ‘बहुत नीच किस्म का आदमी है’, जो गंदी राजनीति करता है.
प्रधानमंत्री इतने आहत हो गए कि इसे चुनावी मुद्दा बना लिया. वे मणिशंकर के इसी बयान पर वोट मांगने लगे. प्रधानमंत्री ने न सिर्फ़ मणिशंकर के बयान को चुनावी मुद्दा बनाया, बल्कि उससे भी नीचे उतरकर कह गए कि क्या मणिशंकर अय्यर पाकिस्तान उनकी सुपारी देने गए थे?
प्रधानमंत्री, उनकी पार्टी और उनके समर्थकों ने मणिशंकर के बयान की व्याख्या ऐसे की कि ‘नीच किस्म का आदमी’ मतलब ‘नीच जाति का आदमी’. मणिशंकर के सुभाषित वचनों की इससे पवित्र व्याख्या भी क्या होती? प्रधानमंत्री या भाजपा क्यों कर कबूल करेगी कि वे घटिया राजनीति करते हैं.
अब मोदी विरोधी कुनबा पूछ रहा है कि ‘नीच’ का मतलब ‘जाति’ कैसे हो गया? कुछ ने तो प्रधानमंत्री के बयानों का संग्रह तैयार करके उनके लिए इस्तेमाल किए गए पदों का स्पष्टीकरण भी पेश किया है, जिसे आप सोशल मीडिया पर प्राप्त कर सकते हैं. नेता एक-दूसरे के सामने उनकी बयानबाज़ियों का नमूना पेश कर रहे हैं कि किस-किसने किस-किसको कब -कब क्या-क्या कहा था.
यह किसी ने नहीं पूछा कि अगर ‘नीच’ का मतलब नीची जाति से लिया गया तो किसी जाति विशेष में पैदा हुआ आदमी नीच या ऊंच कैसे होता है? मणिशंकर अय्यर और नरेंद्र मोदी को यह अधिकार किसने दिया होगा कि वे कुछ जातियों को नीचा या ऊंचा बताते फिरें.
खैर, नरेंद्र मोदी के बारे में कहा जाता है कि वे संघ के प्रचारक रहे हैं. वे प्रधानमंत्री बनकर भी इस सुविधा से लैस हैं कि जब चाहते हैं तब प्रधानमंत्री रहते हैं और जब चाहते हैं तब प्रचारक हो जाते हैं. उन्होंने अपना चुनावी अभियान जारी रखते हुआ यह भुला दिया कि पहले चरण का चुनावी प्रचार ख़त्म हो गया है और पहले चरण के लिए एक दिन पहले वोट मांग डाला.
यह बात महत्वहीन है क्योंकि सैंया कोतवाल पर कार्रवाई कौन करेगा? महत्व की बात यह है कि मणिशंकर अय्यर के माफ़ी मांगने और उन्हें कांग्रेस से निलंबित किए जाने पर भी प्रधानमंत्री की प्रचारपिपासा ख़त्म न हुई. वे कई कई सभाओं में लोगों को बताते घूम रहे हैं कि मणिशंकर ने उन्हें नीच कहा, जैसे कि लोकतंत्र की नींव इसी बात पर पड़ी होगी कि कोई एक व्यक्ति नरेंद्र मोदी के बारे में क्या सोचता है. भला हो मणिशंकर अय्यर का कि गुजरात को मोदी को चुनावी मुद्दा मिल गया, वरना वे किस मुद्दे पर चुनाव लड़ते!
प्रधानमंत्री के लंबे भाषणों की अंतर्वस्तु की चीर-फाड़ तो हमेशा होती रही है, लेकिन शायद यह पहली बार है कि दिल्ली के लाल किले से जो विकास यह दावा करके चला था कि दस साल के लिए लड़ाई-झगड़े किनारे रखकर गरीबी से लड़ते हैं, वही विकास गुजरात के कड़े मुकाबले में मंदिर में घुसकर मस्जिद-मस्जिद चिल्ला रहा है.
टाइम्स आॅफ इंडिया अखबार ने रिपोर्ट की है कि प्रधानमंत्री वोटिंग के एक दिन पहले कांग्रेस से पूछ रहे हैं कि मंदिर या मस्जिद, जवाब दो. जब गुजरात में वोटिंग जारी है तब कांग्रेस के घोषित उपाध्यक्ष और अघोषित अध्यक्ष राहुल गांधी ने पूछ लिया कि विकास कहां है?
कांग्रेस ने ट्वीट किया, मोदी जी ने हिंदुस्तान के सब चोरों का काला धन सफेद कर दिया और आपको लाइन में खड़ा कर दिया. मोदी जी पिछले आठ नवंबर से कहते आ रहे हैं कि नोटबंदी से सब चोर परेशान हैं. यानी दोनों को चोरों की तलाश है, दोनों ने मिलकर संसद में चुनावी और राजनीतिक फंडिंग का पर्दा और मोटा कर दिया है. फिर मिलकर चोरों को ढूंढ रहे हैं. सर्विलांस सिस्टम का आधार तैयार हो चुका है, बस संविधान और कोर्ट का रोड़ा अटकाने वाले देशद्रोही ही देशभक्त हो जाएं तो चोर पकड़ में अब आया कि तब आया.
हालिया सूचना तक प्रधानमंत्री आहत हैं और वोटिंग के एक दिन पहले तक अपने लिए इस्तेमाल हुए आपत्तिजनक बयानों को अनापत्ति ढंग से गिना गए हैं.
गुजरात के भाबरा में चुनावी सभा में प्रधानमंत्री ने बताया कि सोनिया गांधी से लेकर मणिशंकर अय्यर तक ने उन्हें क्या-क्या कहा है. उन्होंने कहा कि अय्यर ने द्विपक्षीय संबंधों को सुधारने के रास्ते से उन्हें हटाने के लिए पाकिस्तान में सुपारी दी थी.
अहमदाबाद के निकोले इलाके की एक सभा में उन्होंने कहा कि कांग्रेस नेताओं ने मुझे एक के बाद एक अकल्पनीय शीर्षक दिए. मुझे सांप, बिच्छू, चायवाला, लहू-पुरुष, नीच, गटर का कीड़ा, पागल कुत्ता, नपुंसक, भस्मासुर, बंदर, औरंगजेब, मानसिक विक्षिप्त, निरक्षर, रावण, यमराज और क्या-क्या नहीं कहा. क्या आप इसी तरह से लोकतंत्र और चुने हुए मुख्यमंत्री या प्रधानमंत्री का सम्मान करते हैं.
मोदी ने गालियां गिनाने के क्रम यह कहकर प्रधानमंत्री पद की लाज रख ली कि ‘उन्हें ये चीजें गिनानी पड़ीं क्योंकि कुछ नेता अय्यर को निलंबित करके खुद को पाक-साफ दिखा रहे हैं. मुझे जितनी गालियां दी गई हैं मैं उनमें से 10 फीसदी का ही उल्लेख कर रहा हूं.’
जो लोग सोच रहे होंगे कि देश के विकास के लिए ही प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठे मोदी जी इस तरह की बयानबाज़ी में क्यों अटके हैं, तो उनके लिए प्रधानमंत्री ने शंका समाधान कर दिया है कि ‘कांग्रेस की कार्य संस्कृति अटकाना, लटकाना और भटकाना है.’ इसीलिए प्रधानमंत्री दिल्ली की संसद का सत्र छोड़कर चुनावी सभाओं और स्तरहीन बयानबाज़ियों ने अटक, लटक और भटक रहे हैं.
देश के लोग समझते हैं कि मोदी प्रधानमंत्री हैं लेकिन मोदी जी ने गुजरात की जनता से पूछा है कि ‘आप मुझे बताइए कि मैं नीच क्यों हूं? क्योंकि मैं एक गरीब परिवार में पैदा हुआ? या इसलिए कि मैं एक पिछड़े परिवार में पैदा हुआ? या इसलिए कि मैं एक गुजराती हूं?’
विकल्प इतने हैं कि अय्यर की टिप्पणी को मतदाता जिस तरह अपने से जोड़ पाएं, उस तरह जोड़ लें लेकिन वोट अय्यर की टिप्पणी पर ही दें. वे इसे अपने तक रखकर ही अपनी आहत आत्मा को शांत नहीं कर सके, उनकी इतिहासप्रियता यहां भी रंग लाई.
उन्होंने कहा, ‘यह पहली बार नहीं है कि कांग्रेस नेताओं ने कहा है कि मैं नीच हूं. सोनिया गांधी और उनके परिवार के सदस्यों ने मेरे बारे में ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया है. वे ऐसा इसलिए करते हैं क्योंकि उनको गुजरात और यहां के लोगों से द्वेष है. चाहे वह सरदार पटेल हों, मोरारजी देसाई हों या फिर मोदी हों.’
चुनावी सभा की सुविधा यह है कि संसद की तरह यहां पर कोई सदस्य सवाल नहीं करता. प्रधानमंत्री ने अपने को आसानी से कांग्रेसी नेता सरदार पटेल और मोरारजी देसाई के बगल खड़ा किया, उनको कांग्रेस का पीड़ित बताया और खुद को उतना ही पीड़ित बताया.
इतिहास में यह प्रश्न अनुत्तरित ही रह जाएंगे कि क्या कांग्रेस ने सरदार पटेल या मोरारजी को भी नीच कहा था? अगर कांग्रेस को पटेल से द्वेष था तो वे नेहरू सरकार में गृह मंत्री कैसे हुए? अगर कांग्रेस को गुजरात से द्वेष था तो वह भाजपा के पहले तक दशकों तक सत्ता में कैसे बनी रही?
खैर, चुनाव में जनता ही जनार्दन है तो जनता के सामने संस्कार प्रदर्शन भी होना चाहिए. संस्कार की तरफ घरवापसी करते हुए कांग्रेस ने प्रधानमंत्री से मांग की है कि ‘प्रधानमंत्री अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने वाले अपनी पार्टी के नेताओं के खिलाफ कार्रवाई शुरू करने का दिखाएं और राजनीतिक संवाद की गरिमा को बहाल करने में मदद करें.’
संस्कार का नमूना पेश करते हुए कांग्रेस प्रवक्ता आनंद शर्मा ने कहा, ‘क्या प्रधानमंत्री राहुल गांधी, सोनिया गांधी और अन्य पार्टी नेताओं के खिलाफ अपमानजनक और अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने के लिए अपने सहयोगियों के खिलाफ कार्रवाई करेंगे? प्रधानमंत्री को लेकर मणिशंकर अय्यर की ओर से की गयी टिप्पणी अस्वीकार्य है और कांग्रेस की संस्कृति तथा परंपरा इस तरह के बयानों की अनुमति नहीं देती. राहुल गांधी ने इसे नामंजूर कर दिया है और कांग्रेस ने कार्रवाई की है.’
बहरहाल, प्रधानमंत्री या उनके किसी सहयोगी ने अपनी पार्टी की संस्कृति के बारे में कुछ नहीं कहा है. इन बयानबाज़ियों पर, पार्कों में जोड़ों को पीटने वाले महात्माओं के महान विचार से देश अभी तक वंचित है.
लेकिन आनंद शर्मा का कहना है कि ‘मणिशंकर की टिप्पणी के जितना ही दुखद और निंदनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह और उनके आधिकारिक प्रवक्ताओं ने राजनीतिक विमर्श को अभूतपूर्व तरीके से निचले स्तर पर ला दिया है.’
कांग्रेस प्रवक्ता अजय कुमार ने प्रधानमंत्री से खुद को बर्खास्त करने की अपील कर डाली है. उनका कहना है कि ‘प्रधानमंत्री तथा अन्य भाजपा नेता राष्ट्रपिता के लिए और सोनिया एवं राहुल गांधी के लिए अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल करते हैं. राहुल गांधी ने नैतिकता दिखाते हुए मणिशंकर को निलंबित कर दिया है. अगर मोदीजी वैसी ही नैतिकता दिखाते हैं तो मोदीजी को खुद को निलंबित करना होगा क्योंकि उन्होंने सोनिया गांधी और राहुल गांधी के साथ ही अन्य नेताओं के खिलाफ भी कुछ खराब शब्दों का इस्तेमाल किया था.’
अजय कुमार चाहते हैं कि ‘प्रधानमंत्री में अगर थोड़ी भी नैतिकता है तो उन्हें खुद को और अमित शाह को तथा अन्य नेताओं को निलंबित कर देना चाहिए.’
बयानबाज़ियों की इस बमबाज़ी में कर्नाटक के एक मंत्री की भी एंट्री हो गई है. उन्होंने बर्बरता के सर्वोच्च पैमाने का इस्तेमाल करते हुए आरोप लगाया है कि ‘भाजपा के कुछ नेता आईएसआईएस की तरह बर्ताव कर रहे हैं.’
कर्नाटक के गृह मंत्री रामालिंगा रेड्डी ने अपने इस बयान से विवाद खड़ा कर दिया है कि भाजपा के कुछ नेता आतंकवादी संगठन आईएसआईएस की तरह बर्ताव कर रहे हैं.
रेड्डी के बयान के बिल्कुल पीछे-पीछे आई उनकी सफाई में उन्होंने कहा है कि मैंने कभी भी सभी भाजपा नेताओं को आतंकी नहीं कहा. मैंने कहा था कि केवल कुछ भाजपा नेता आईएसआईएस की तरह बर्ताव कर रहे हैं.
आईएसआईएस को याद करने के बाद रेड्डी ने फरमाया है कि मैं आईएसआई, आईएसआईएस और जिहादियों की निंदा करने वाला पहला शख्स हूं. ये भाजपा नेता भड़काऊ बयान देकर सांप्रदायिक भावना को उकसाने का प्रयास कर रहे हैं.
उन्होंने केंद्रीय मंत्री अनंत कुमार हेगड़े और भाजपा सांसद प्रताप सिम्हा की याद दिला डाली. हेगड़े ने भी हाल ही में ‘इस्लाम का इस दुनिया से सफाया कर देने’ की सलाह पेश की थी.
आईएसआईएस के बाद जिहाद की एंट्री होनी थी सो हुई. जहां चाह वहां राह की तर्ज पर जहां भाजपा वहां जिहाद की चर्चा अपरिहार्य है. मंत्री के इस बयान पर विपक्षी भाजपा ने प्रचंड प्रतिक्रिया देते हुए बयानबाज़ी की इस संस्कारशाला में एक और भाजपा सांसद शोभा करंदलजे ने ट्वीट किया, ‘प्रदेश को चलाने वाले इस तरह की सोच के लोगों की वजह से कर्नाटक जिहादी गतिविधियों का हब बन गया है.’
उन्होंने एक और ट्वीट किया, ‘भाजपा की तुलना आतंकवादियों से करने के रेड्डी के बयान की कड़ी निंदा करती हूं. क्या मंत्री अपना विवेक खो चुके हैं या जिहादियों के तुष्टीकरण की कोशिश कर रहे हैं.’
क्या यहां जिहादियों से मतलब मुसलमानों से है? अब तक मुस्लिम तुष्टीकरण जैसे शब्द का प्रयोग होता था, जिसे न्यू इंडिया की संस्कारशाला के सपूतों ने जिहादी से रिप्लेस कर दिया है.
बयानबाज़ी में आगे निकलने की होड़ सीढ़ी दर सीढ़ी नीचे उतरते जाने का खेल है जिसमें जितनी तुर्श और तीखी भाषा होगी, आप उतनी सीढ़ी नीचे जाएंगे. इसमें प्रधानमंत्री से लेकर संवैधानिक पदों पर बैठे तमाम लोग बाज़ी लगा रहे हैं.
गुजरात में चुनाव का अभी एक चरण और बाकी है. वह बीतेगा तो कहीं और चुनाव होगा. प्रधानमंत्री वहां पर अगली प्रस्तुति देंगे. कांग्रेस भी पूरा सहयोग देगी. बयानों की बमबाज़ी बेशर्मी से बरसेगी. आप मतदाता हैं, मौन धारण करके मनन करते रहें, मन करे तो मौज लेते रहें.