नई दिल्ली: तमिलनाडु में स्कूली बच्चों के बीच जाति आधारित भेदभाव और हिंसा को रोकने के लिए जस्टिस के. चंद्रू की अध्यक्षता में बनी एक सदस्यीय समिति ने मंगलवार (18 जून) को अपनी रिपोर्ट राज्य के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन को सौंप दी है.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इस रिपोर्ट में सभी सरकारी और निजी स्कूलों के नामों से जातिसूचक शब्दों को हटाने और सामाजिक समावेश के लिए विशेष कानून बनाने की प्रमुख सिफारिश की गई है.
मद्रास उच्च न्यायालय के सेवानिवृत्त न्यायाधीश के. चंद्रू द्वारा तैयार की गई इस रिपोर्ट में राज्य में स्कूल और कॉलेज के छात्रों के बीच जाति के आधार पर हिंसा को रोकने के उपाय सुझाए गए हैं. इसमें कहा गया है कि सरकार को बच्चों की जाति उजागर होने वाली पहचान पर तत्काल प्रतिबंध लगाना चाहिए और सामाजिक समावेश की नीति को लागू करने की दिशा में एक कानून पेश किया जाना चाहिए.
मालूम हो कि बीते साल अगस्त महीने में सरकार ने तिरुनेलवेली जिले के एक स्कूल में अनुसूचित जाति के दो बच्चों पर एक छात्रों के समूह द्वारा हमला किए जाने के बाद मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश के चंद्रू को इस दिशा में हिंसा रोकने और सरकार को सुझाव देने के लिए नियुक्त किया था.
जस्टिस चंद्रू ने हिंदुस्तान टाइम्स को बताया कि उन्होंने इस रिपोर्ट के लिए तिरुनेलवेली, मदुरै और कोयंबटूर सहित कई जिलों का दौरा किया और 2,742 लोगों से प्रतिक्रियाएं लीं. इसमें आम लोग, सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी, गैर सरकारी संगठनों से जुड़े लोग शामिल हैं. हालांकि उन्हें किसी भी शिक्षक संघ या छात्र संगठन से इस मामले में कोई जवाब नहीं मिला है.
उनकी 18 पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया है, ‘छात्रों को अन्य जाति-आधारित पहचानकर्ताओं के बीच किसी भी तरह का धागा कलाई में बांधने, अंगूठियां पहनने या माथे पर कोई चिह्न (तिलक आदि) लगाने से रोका जाना चाहिए. अगर इन नियमों का पालन नहीं होता, तो उनके माता-पिता या अभिभावकों को सलाह देने के अलावा उन पर उचित कार्रवाई की जानी चाहिए.’
सामाजिक न्याय छात्र बल (एसजेएसएफ) की स्थापना हो
रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि राज्य सरकार को एक सामाजिक न्याय छात्र बल (एसजेएसएफ) की स्थापना करनी चाहिए, जिसमें ‘सभी समुदायों के छात्र’ शामिल हों और सामाजिक बुराइयों से लड़ने के प्रयासों में एकजुट हों.
इस रिपोर्ट में स्कूलों के लिए भी कई सिफारिशें की गई हैं. इसमें कहा गया है कि सभी स्कूलों के नाम से ‘कल्लार रिक्लेमेशन’, ‘आदि द्रविड़ कल्याण’ जैसे शब्द जो सीधे तौर पर जाति की पहचान करते हैं, उन्हें हटा दिया जाना चाहिए. मौजूदा निजी स्कूलों को भी जाति-आधारित नाम हटा देना चाहिए और सरकार को ऐसा करने में विफल रहने वाले स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए.
इसके अलावा यदि कोई शैक्षणिक एजेंसी एक नया स्कूल स्थापित करना चाहती है, तो स्कूल शुरू करने की अनुमति की शर्तों में यह शर्त भी शामिल होनी चाहिए कि स्कूल के नाम में कोई जातिसूचक शब्द नहीं होगा.
समिति ने स्कूलों को चंदा या डोनेशन देने वालों के जातिसूचक नाम भी हटाए जाने की बात कही है.
दीर्घकालिक सिफारिशों के बीच ये रिपोर्ट सरकार को सामाजिक समावेशन की नीति लागू करने और जातिगत भेदभाव को खत्म करने के लिए सभी छात्रों को नियंत्रित करने वाला एक अलग कानून बनाने का सुझाव देती है.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इस कानून के तहत छात्रों, शिक्षकों और गैर-शिक्षण कर्मचारियों के साथ-साथ संस्थानों के प्रबंधन पर भी कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को लागू किया चाहिए और इन निर्देशों का पालन न करने पर पर्यवेक्षण, नियंत्रण और प्रतिबंधों के लिए एक तंत्र निर्धारित होना चाहिए.’
शिक्षकों के लिए भी इस रिपोर्ट में सिफारिश की गई है. इसमें सुझाव दिया गया कि नियुक्त स्कूल शिक्षा विभाग के अधिकारी, जैसे कि शिक्षा अधिकारी, उस क्षेत्र की प्रमुख जाति से नहीं होने चाहिए. इसके साथ ही शिक्षकों को छात्रों को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से उनकी जाति से संदर्भित नहीं करना चाहिए.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘शिक्षक भर्ती बोर्ड (टीआरबी) द्वारा शिक्षकों की भर्ती के समय शिक्षकों की योग्यता के साथ ही सामाजिक न्याय के मुद्दों के प्रति उनके दृष्टिकोण का भी पता लगाया जाना चाहिए और भर्ती के लिए इसे ध्यान में रखा जाना चाहिए.’
शिक्षकों को सत्र शुरू होने से पहले विभिन्न कानूनों की जानकारी हो
समिति की सिफारिश के अनुसार, ‘सभी स्कूल-कॉलेजों के शिक्षकों और कर्मचारियों को प्रत्येक सत्र शुरू होने से पहले सामाजिक मुद्दों, जातिगत भेदभाव और यौन हिंसा-उत्पीड़न, ड्रग्स, रैगिंग और दलितों के खिलाफ अपराधों से जुड़े विभिन्न कानूनों से संबंधित एक अनिवार्य दिशानिर्देश कार्यक्रम आयोजित होने चाहिए. साथ ही उन्हें उन कानूनों के उल्लंघन के परिणामों के बारे में भी बताया जाना चाहिए.’
रिपोर्ट में वार्षिक गोपनीय रिपोर्ट (एसीआर) के संबंध में नियम बनाने का भी सुझाव दिया गया है. सिफ़ारिश में कहा गया है कि अधिकारियों और हेडमास्टरों के लिए एसीआर में अनुसूचित जाति और जनजाति के प्रति उनके दृष्टिकोण को दर्ज करने के लिए एक कॉलम शामिल होना चाहिए, साथ ही इन रिकॉर्ड को बनाए रखने के लिए उचित प्रक्रियाओं का पालन किया जाना चाहिए.
इसके अलावा राज्य को सरकार द्वारा संचालित शैक्षणिक संस्थानों के शिक्षकों और कर्मचारियों के लिए वैधानिक रूप से एक आचार संहिता निर्धारित करनी चाहिए.
रिपोर्ट में बताया गया है कि शिक्षक बनने के लिए योग्यता वाले बीएड (बैचलर ऑफ एजुकेशन) डिग्री के लिए पाठ्यक्रम, तमिलनाडु शिक्षक शिक्षा विश्वविद्यालय (टीएनटीईयू) द्वारा तैयार किया गया है, साथ ही प्रारंभिक शिक्षा में डिप्लोमा के लिए पाठ्यक्रम, तमिलनाडु बोर्ड ऑफ स्टेट काउंसिल ऑफ एजुकेशनल रिसर्च एंड ट्रेनिंग (टीएनएससीईआरटी) द्वारा तैयार किया गया है. इसमें समावेशिता को सुनिश्चित करने के लिए इसे पूरी तरह से संशोधित किया जाना चाहिए.
शिक्षकों की एक विशेषज्ञ समिति को स्कूली छात्रों के लिए निर्धारित पाठ्यक्रम की समीक्षा करनी चाहिए और द्वेषपूर्ण विचारों को खत्म करने के लिए सुझाव देना चाहिए और ऐसी सामग्री शामिल करनी चाहिए जो सामाजिक न्याय मूल्यों, गैर-भेदभावपूर्ण दृष्टिकोण और समानता की अवधारणाओं को बढ़ावा दे.
स्कूल कल्याण अधिकारी का एक पद सृजित किया जाए
सेवानिवृत्त न्यायाधीश ने राज्य सरकार को स्कूल कल्याण अधिकारी (एसडब्ल्यूओ) का एक पद सृजित करने की भी सिफारिश की है, जो रैगिंग, नशीली दवाओं के खतरे, यौन उत्पीड़न और जातिगत भेदभाव से संबंधित अपराधों के मुद्दों पर स्कूल के कामकाज की निगरानी करे और कानून के अनुसार इन मुद्दों का समाधान कर सके.
रिपोर्ट में जस्टिस चंद्रू ने कहा है कि क्योंकि जातिगत भेदभाव का मुद्दा छात्र परिसरों से आगे तक फैला हुआ है और इसका समाधान सामाजिक स्तर पर करने की जरूरत है. इसलिए ये समिति द्वारा सरकार को जाति उन्मूलन और सांप्रदायिक सद्भाव को बढ़ावा देने के लिए सामाजिक स्तर पर इस मुद्दे को संबोधित करने के लिए उचित कदम उठाने की सलाह दी जाती है.