एक डॉक्टर की नज़र से: आठ वजहें, जिसके चलते नीट 2024 को रद्द किया जाना चाहिए

मुट्ठी भर छात्रों की दोबारा परीक्षा को 24 लाख बच्चों के भीतर पैदा हुए संदेह का समाधान नहीं माना जा सकता. दोबारा परीक्षा कराना शायद व्यावहारिक न हो, लेकिन यही एकमात्र तरीका है कि हम इन अभ्यर्थियों को यह विश्वास दिला सकें कि देश उनकी मेहनत, लगन और ईमानदारी की इज़्ज़त करता है.

एनटीए के खिलाफ हुआ प्रदर्शन. (फोटो साभार: ट्विटर/@AISA_tweets)

नीट 2024 के विवादों के बीच मुझे साल 2018 याद आ रहा है, जब मैं नीट की परीक्षा के लिए बैठा था. गाड़ी से उतरकर परीक्षा केंद्र तक जाने का छोटा रास्ता, सूरज की तीखी रोशनी में माथे पर चमकती पसीने की बूंदें, और पीछे खड़े मम्मी-पापा की उम्मीद. जर्जर परीक्षा कक्ष, टूटे बेंच और घड़ी की टिक-टिक. लेकिन मैं परीक्षा केंद्र का सुचारू कार्यान्वयन एकदम भूल गया था, इतनी मूलभूत प्रक्रिया कि मैंने उसे याद भी नहीं रखा था.

इस साल झज्जर और सवाई माधोपुर जैसे केंद्रों पर अभ्यर्थियों की आपबीती सुनकर मुझे लगता है कि परीक्षा केंद्र द्वारा सही समय पर पर्चा  बांटना और सही सेट का बांटना, यह कोई सपना था. नीट परीक्षा में हुई इतनी गड़बड़ियों को देखकर मैं आज आश्वस्त हूं कि यह परीक्षा रद्द हो जानी चाहिए.

  • सुप्रीम कोर्ट की हड़बड़ी

मुख्य न्यायालय से उम्मीद थी कि वह इस परीक्षा की विश्वसनीयता पर उठते प्रश्नों का तुरंत संज्ञान लेकर परीक्षा को रद्द करने का फैसला सुनाएगा. लेकिन न्यायालय का हालिया फैसला- 1536 छात्रों के ग्रेस अंक खत्म कर उनके लिए दोबारा परीक्षा आयोजित करना- निराशा ेगर्त में धकेलने जैसा है.

यह निर्णय न्याय करने की बजाय न्याय का भ्रम पैदा करता है. ग्रेस अंकों को ‘विलेन’ बनाकर यह दूसरे ज़रूरी मुद्दों से ध्यान भटकाता है.

मुख्य न्यायालय की हड़बड़ी मामले को और जटिल बना रही है. आठ जुलाई को सुनवाई होने के बावजूद उसने छह जुलाई से शुरू होने वाली काउंसलिंग को यथासमय आयोजित करने का आदेश दिया है.

हालांकि कोर्ट ने आश्वासन दिया है कि काउंसलिंग शुरू होने के बाद भी वह कोई भी कदम उठाने में सक्षम है, लेकिन फिर इस जल्दी का कारण क्या है जबकि नए सत्र को तीस सितंबर तक शुरू करने का प्रावधान है?

  • पेपर लीक

इंडियन एक्सप्रेस की एक जांच की मानें तो पिछले पांच सालों में लगभग 41 पेपर लीक हुए हैं. नीट इनमें सबसे बड़ा है जिसमें लगभग चौबीस लाख परीक्षार्थी थे. पटना के एक पुलिस अधिकारी की एफआईआर के अनुसार परीक्षा के दिन प्रश्न पत्र के साथ छेड़छाड़ की ख़बर मिली थी जिसकी जांच करने पर उन्होंने एक गाड़ी से चार फर्ज़ी पहचान पत्र बरामद किए. इसके बाद गाड़ी में सवार लोगों को हिरासत में ले लिया गया.

गुजरात में भी पांच लोगों की गिरफ़्तारी की गई जिसमें एक स्थानीय कोचिंग इंस्टिट्यूट का मालिक है.

  • 720 का जादुई आंकड़ा

इसके अलावा गलत तरीके से दिए गए ग्रेस अंक, जो कुछ छात्रों के लिए 140 तक पहुंच गए हैं, बड़ी समस्या बन चुके हैं. गुजरात की एक लड़की का रिजल्ट कार्ड सोशल मीडिया पर घूम रहा है, जिसने नीट में 705 अंक प्राप्त किए हैं, पर बोर्ड परीक्षा में फेल हो गई है.

इसके अलावा, हरियाणा के झज्जर केंद्र के आठ छात्रों ने 720 अंक प्राप्त किए हैं. उनके रोल नंबर के अनुक्रम से पता चलता है कि वे परीक्षा के दौरान आस-पास बैठे थे. इससे भी अधिक अजीब बात यह है कि उनमें से किसी ने अपने आवेदन में उपनाम का उपयोग नहीं किया है और किसी भी कोचिंग संस्थान द्वारा उनका दावा नहीं किया गया है.

इस पर गहन जांच की आवश्यकता है क्योंकि एआईपीएमटी 2015 पेपर लीक का सरगना रूप सिंह डांगी अन्य दोषियों के साथ हरियाणा से था.

ग्रेस अंकों के चलते इस बार 67 छात्रों ने परीक्षा में शीर्ष स्थान हासिल किया है. हालांकि बाद में प्रेस नोट के जरिये एनटीए ने यह साफ किया कि इन 67 छात्रों में से 44 को भौतिकी विज्ञान (फिज़िक्स) के एक सवाल के लिए पांच ग्रेस अंक दिए गए; बाकी छह को समय की कमी के कारण ग्रेस अंक दिए गए जिनका आकलन छात्र की व्यक्तिगत ‘उत्तर देने की क्षमता’ के अनुसार किया गया. सुप्रीम कोर्ट के निर्णय के बाद यह संख्या घटकर 61 पर पहुंच गई है.

फिज़िक्स के ग्रेस अंकों वाले छात्रों को अगर एक बार के लिए छोड़ भी दें, तब भी 17 छात्रों के शत-प्रतिशत अंक होना गले से नहीं उतरता. एनटीए ने तो यह कहकर पल्ला छुड़ा लिया है कि यदि छात्र अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैं तो इसमें वे क्या करें.

स्थिति यह बन गई है कि परीक्षा में प्रथम स्थान लाने के बावजूद भी कुछ छात्रों को देश के शीर्ष संस्थान एम्स में दाखिला नहीं मिल पाएगा.

  • ग्रेस अंकों के पीछे का जोड़-तोड़

ग्रेस मार्क्स अपने आप में एक समस्या तो है ही, उन्हें देने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली प्रक्रिया पर भी सवाल हैं.

पहला, इस साल बिना किसी पूर्व सूचना के ग्रेस मार्क्स दिए गए. गणितीय रूप से अकल्पनीय अंकों पर सवाल उठाने के बाद ही एनटीए को स्पष्टीकरण देने की ज़रूरत महसूस हुई. परीक्षा के बाद जारी प्रेस नोट में परीक्षण एजेंसी ने, जिसने एक केंद्रीकृत सीसीटीवी प्रणाली के माध्यम से परीक्षा की कार्यवाही की देखरेख की थी, ने केवल सवाई माधोपुर में समस्याओं के संकेत दिए थे.

वहां हिंदी माध्यम के छात्रों को अंग्रेजी सेट दिया गया; छात्रों ने विरोध किया, जिसके बाद उसी शाम वहां फिर से परीक्षा हुई. लेकिन चार राज्यों के छह केंद्रों पर इसी तरह की समस्याओं की रिट याचिकाओं के बाद, एनटीए ने उन सभी छात्रों को ग्रेस देने का फैसला किया जिन्होंने शिकायत की थी.

इस तरह के रुख में बुनियादी खामियां हैं: अगर एनटीए के पास अच्छी निगरानी प्रणाली थी, तो इस तरह के दबाव में झुकने का क्या कारण था, और वह भी उसका खुलासा किए बिना? ऑनलाइन CLAT परीक्षा के लिए दिए गए 2018 के सुप्रीम कोर्ट के आदेश का उपयोग ही नहीं किया जाना चाहिए था क्योंकि नीट एक ऑफलाइन परीक्षा है. लेकिन उसका भी मनमाने ढंग से इस्तेमाल किया गया.

आदेश में एक समिति के गठन को अनिवार्य किया गया था जो न केवल रिट याचिकाओं को संबोधित करेगी बल्कि एक समर्पित ईमेल के माध्यम से छात्रों से नई शिकायतें भी आमंत्रित करेगी. जिन छात्रों को ग्रेस अंक दिए गए, उन्होंने रिट याचिका दायर की है. यह समानता के अधिकार के खिलाफ भी चला जाता है- केवल वे छात्र जिनके पास अदालत जाने के लिए पैसा और संसाधन हैं, उन्हें ग्रेस अंक मिल सकते हैं.

  • बढ़ी मेरिट

ग्रेस अंक के अलावा भी इस बार अंकों में भारी वृद्धि हुई है. 2023 में 650 या उससे अधिक अंक प्राप्त करने वाले छात्रों की संख्या 6,803 थी, लेकिन इस साल यह बढ़कर 21,724 हो गई, यानी 319.33 प्रतिशत का भारी उछाल. प्रत्येक वर्ष आवेदकों की संख्या में वृद्धि और विभिन्न अन्य कारकों के कारण मेरिट थोड़ी बढ़ जाती है, लेकिन इतनी बड़ी छलांग किसी भी तार्किक व्याख्या से परे है.

590-600 की संख्या तक पहुंचते-पहुंचते देश में मौजूद लगभग एक लाख सरकारी सीटें भर गई हैं जो इस परीक्षा के इतिहास में अभूतपूर्व है.

  • एनटीए का ढुलमुल रवैया

शुरुआत से ही एनटीए की गतिविधियां संदिग्धता के घेरे में रही हैं. इस बार पंजीकरण खिड़की कई बार खुली. प्रारंभिक खिड़की के बंद होने के बाद मार्च में एक सप्ताह का विस्तार किया गया था. लेकिन फिर अप्रैल में दो मौकों पर रहस्यमयी तरीके से खिड़की खुली: पहली बार 9-10वीं को और बाद में 11-15वीं तारीख़ के बीच.

यहां तक कि नतीजे भी अपेक्षित तिथि से लगभग दस दिन पहले चार जून को घोषित किए गए जिसे लोग लोकसभा चुनाव के नतीजों के शोरगुल के बीच विसंगतियों को छिपाने के रूप में देख रहे हैं.

  • किसकी गलती का ख़ामियाज़ा कौन भरे

मुट्ठी भर छात्रों की दोबारा परीक्षा को 24 लाख बच्चों के भीतर पैदा हुए संदेह का समाधान नहीं माना जा सकता. सवाल यह भी है कि एनटीए की गलती का  ख़ामियाज़ा ग्रेस अंक वाले छात्र क्यों भरे. झज्जर सेंटर पर छात्रों को दूसरे सेट का प्रश्नप्रत्र दे दिया गया. परीक्षा नियंता को जैसे ही अपनी गलती का एहसास हुआ उन्होंने सेट तो बदल दिया लेकिन तब तब आधा घंटा बीत चुका था. नए सेट के लिए छात्रों को केवल ढाई घंटे दिए गए.

  • एआईपीएमटी 2015

एआईपीएमटी 2015 का उदाहरण लें: जैसे ही प्रश्नपत्र लीक होने की भनक लगी, छात्रों ने अदालतों का दरवाजा खटखटाया और सर्वोच्च न्यायालय ने मामले को तत्काल संज्ञान में लेते हुए सीबीएसई को परिणाम घोषित न करने का आदेश दिया. बाद में, चार सप्ताह के भीतर फिर से परीक्षा आयोजित करने का आदेश देते हुए, न्यायालय ने एक अहम बात कही: ‘यदि एक छात्र को भी अवैध रूप से लाभ पहुंचाया जा रहा है, तो भी परीक्षा दोषपूर्ण है…अगर ऐसी परीक्षा को बचा लिया जाता है, तो योग्यता को नुकसान पहुंचेगा, जिससे वास्तविक छात्रों में निराशा की भावना पैदा होगी और वे परीक्षा की अवधारणा से ही विमुख हो जाएंगे.’

सर्वोच्च न्यायालय ने 2015 में तर्क दिया था, जब महाधिवक्ता ने केवल दोषी छात्रों की परीक्षा रद्द करने और फिर से परीक्षा का आदेश न देने का अनुरोध किया था.

भारत में मेडिकल सीट पाना बहुत मुश्किल है. अगर प्रतिस्पर्धा निष्पक्ष नहीं होगी, तो छोटे शहर से आने वाले मध्यम वर्ग के मेहनती छात्रों के पास और क्या विकल्प बचता है? मुट्ठी भर छात्रों की दोबारा परीक्षा को 24 लाख बच्चों के बीच पैदा हुए संदेह का समाधान नहीं माना जा सकता.

दोबारा परीक्षा कराना शायद व्यवहारिक न हो. लेकिन उसके बावजूद यही एकमात्र तरीका है कि हम इन अभ्यर्थियों को- और आने वाले कितने सारे अभ्यर्थियों को- यह विश्वास दिला सकें कि देश उनकी मेहनत, लगन और ईमानदारी की इज़्ज़त करता है.

(किंशुक गुप्ता पेशे से चिकित्सक हैं. ‘ये दिल है कि चोर दरवाज़ा’ उनकी कहानियों की पहली किताब है.)