मणिपुर हिंसा अभूतपूर्व, सरकार चुनिंदा तरीके से अदालती आदेशों का पालन कर रही है: जस्टिस मृदुल

मणिपुर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल ने एक साक्षात्कार में कहा कि 14 महीने से जातीय हिंसा से प्रभावित मणिपुर के चूड़ाचांदपुर, कांगपोकपी या मोरेह जैसे अशांत क्षेत्रों में बहुसंख्यक समुदाय के न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति संभव नहीं है.

मणिपुर हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सिद्धार्थ मृदुल. (फोटो साभार: मणिपुर हाईकोर्ट)

मुंबई: मणिपुर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सिद्धार्थ मृदुल ने हिंदुस्तान टाइम्स को दिए एक विस्तृत साक्षात्कार में राज्य में साल भर से हो रही हिंसा के पैमाने को ‘अभूतपूर्व’ बताया और राज्य सरकार द्वारा अदालती आदेशों का चुनिंदा तरीके से पालन करने पर असंतोष व्यक्त किया.

जस्टिस मृदुल ने न्यायपालिका की सुरक्षा और बुनियादी ढांचे (इंफ्रास्ट्रक्चर) की मांगों को पूरा करने में पर्याप्त संसाधन की कमी पर भी चिंता व्यक्त की.

जस्टिस मृदुल ने कहा कि 3 मई, 2023 को मेईतेई और कुकी-ज़ो समुदायों के बीच 14 महीने तक चली जातीय हिंसा ने इस क्षेत्र में न्यायिक नियुक्तियों पर गंभीर असर डाला है.

जस्टिस मृदुल ने कहा कि चूड़ाचांदपुर, कांगपोकपी या मोरेह जैसे अशांत क्षेत्रों में बहुसंख्यक समुदाय से न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति संभव नहीं है. उन्होंने कहा, ‘इससे हमारे विकल्प सीमित हो जाते हैं, जिसका अर्थ है कि केवल अनुसूचित जनजातियों से न्यायिक अधिकारियों को ही उन जिलों में नियुक्त किया जा सकता है. न्यायिक अधिकारियों की कमी के बीच ऐसा होने से स्थिति जटिल हो जाती है.’

जस्टिस मृदुल ने कहा कि उच्च न्यायालय ने नियुक्तियों के लिए साक्षात्कार आयोजित किए हैं और इन नई नियुक्तियों को अंतिम रूप देने के लिए सरकार की सहायता की जरूरत है. उन्होंने कहा कि सीमित नियुक्तियों के कारण अधिकांश न्यायिक अधिकारी कई भूमिकाएं निभाते हैं. उन्होंने कहा, ‘एक जिला न्यायाधीश एक फैमिली कोर्ट के न्यायाधीश के रूप में भी काम कर सकता है.’

जस्टिस मृदुल ने साक्षात्कार में दावा किया कि जातीय आधार पर न्यायाधीशों की इन विशिष्ट नियुक्तियों के साथ-साथ बुनियादी ढांचा (इंफ्रास्ट्रक्चर) भी एक चुनौती बना हुआ है.

गौरतलब है कि इस महीने की शुरुआत में मणिपुर में भीषण बाढ़ आई थी, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई थी और हज़ारों लोग फंसे हुए थे. जस्टिस मृदुल ने कहा कि बाढ़ ने दोहरी मार की और न्यायिक कामकाज पर और असर डाला.

न्यायपालिका ने न्यायाधीशों और अन्य न्यायिक कर्मचारियों की सुरक्षा चिंताओं का किस तरह ख्याल रखा है, इस सवाल का जवाब देते हुए जस्टिस मृदुल ने कहा कि पिछले साल अक्टूबर में (मणिपुर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के रूप में) उनकी नियुक्ति के बाद सुरक्षा उनकी पहली चिंता थी.

उन्होंने कहा, ‘सरकार की प्रतिक्रिया के बारे में मैं कहूंगा कि हमारे निर्देशों (सुरक्षा बढ़ाने के लिए) का चुनिंदा रूप से पालन किया गया है. मौजूदा स्थिति के मद्देनजर कुछ निर्णय अभी भी उनके पास लंबित हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘…हम उनसे (राज्य सरकार) नियमित रूप से बात करते हैं और उन्हें न्यायपालिका के लिए एक विशलिस्ट दी है. सरकार की ओर से प्रतिक्रिया मिली है, लेकिन यह कहना अतिशयोक्ति होगी कि प्रतिक्रिया संतोषजनक है. यह उस तरह नहीं हुआ जैसा हम चाहते हैं कि वे प्रतिक्रिया दें.’

बता दें कि मणिपुर के मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने 21 जून को दावा किया कि, ‘दो या तीन महीनों में उनके राज्य में शांति लौट आएगी’ क्योंकि केंद्र में नई राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) सरकार ने 14 महीने से चल रही हिंसा को हल करने को प्राथमिकता दी है.

राज्य की राजधानी इंफाल से प्रेस से बात करते हुए सिंह ने कहा, ‘हिंसा हर जगह है और मणिपुर में यह कम हो गई है. हालांकि राज्य 14 महीनों से संकट से गुजर रहा है, लेकिन इस अवधि के आधे समय में वास्तविक हिंसा हुई. यह दर्शाता है कि सात महीने तक शांति रही और स्कूल और व्यावसायिक प्रतिष्ठान फिर से खुल गए.’

सिंह ने कहा कि कुछ दिन पहले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की अध्यक्षता में हुई उच्च सुरक्षा बैठक के बाद एक कार्य योजना पर काम किया जा रहा है.

हालांकि, जस्टिस मृदुल के आकलन के अनुसार, सिंह द्वारा अब तक किए गए प्रयास उनके लिए ‘पूरी तरह संतुष्ट करने’ वाले नहीं रहे हैं.

ज्ञात हो कि मणिपुर में बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय और कुकी-जो आदिवासी समुदायों के बीच जातीय संघर्ष पिछले साल 3 मई को शुरू हुआ था. संघर्ष में अब तक 220 से अधिक लोग मारे गए हैं, हजारों घायल हुए हैं और कम से कम 50,000 लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं.

मणिपुर की आबादी में मेईतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी जिनमें नगा और कुकी समुदाय शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.