जम्मू-कश्मीर: अधिकारियों के ख़िलाफ़ झूठी शिकायतों को लेकर मीडिया पर कार्रवाई के निर्देश का विरोध

जम्मू कश्मीर के स्थानीय प्रशासन ने कहा है कि अगर मीडिया अधिकारियों के खिलाफ 'झूठी शिकायतें' प्रकाशित करेगा तो उसे विज्ञापन देना बंद कर दिया जाएगा. इसके अलावा इसमें शामिल पत्रकार की मान्यता रद्द कर दी जाएगी.

(फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर में मीडिया पर लगातार शिकंजा कसता जा रहा है. हाल ही में प्रशासन ने कहा है कि अगर मीडिया स्थानीय अधिकारियों के खिलाफ ‘झूठी शिकायतें’ प्रकाशित करेगा तो उसे विज्ञापन देना बंद कर दिया जाएगा. इसके अलावा इसमें शामिल पत्रकार की मान्यता रद्द कर दी जाएगी.

रिपोर्ट के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर के सामान्य प्रशासन विभाग (जीएडी) द्वारा जारी एक सर्कुलर (संख्या 14-जेके (जीएडी) 2024) में कहा गया है कि प्रशासन भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 182 के तहत स्थानीय सरकारी अधिकारियों के खिलाफ ‘झूठी/गुमनाम/छद्मनाम शिकायत’ करने वालों पर मुकदमा चलाएगा.

बीते शुक्रवार (20 जून) को जारी इस सर्कुलर के अनुसार, जम्मू कश्मीर पुलिस की अपराध शाखा को ‘झूठी शिकायत’ करने वालों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई शुरू करने का निर्देश दिया गया है.

इस धारा के तहत, यदि कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक को गलत सूचना देता है जिसके कारण उन्हें किसी अन्य अधिकारी के खिलाफ शिकायत करने के लिए अपनी कानूनी शक्ति का उपयोग करना पड़ता है, तो सूचना देने वाले को छह महीने तक की कैद या 1,000 रुपये का जुर्माना या दोनों से दंडित किया जा सकता है.

जीएडी परिपत्र में ये भी कहा गया है कि प्रशासन उन मामलों में भी जांच करेगा, जहां अधिकारियों के खिलाफ शिकायतें मीडिया में प्रकाशित की जाएंगी, हालांकि सर्कुलर में जांच टीम की संरचना के बारे में कोई जानकारी नहीं दी गई है.

सर्कुलर में कहा गया है, ‘यदि मिलीभगत पाई गई, तो प्रशासन कार्रवाई करेगा.’

इसमें प्रेस काउंसिल ऑफ इंडिया को मामले की रिपोर्ट कर मान्यता रद्द करना और सरकारी विज्ञापनों पर रोक लगाना जैसे अन्य तरीके शामिल हैं.

परिपत्र में कहा गया है कि यदि किसी वरिष्ठ अधिकारी के खिलाफ अदालत में झूठी शिकायत दर्ज की जाती है, तो आपराधिक प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 195 (1) (ए) के तहत एक सरकारी अधिकारी पर मुकदमा चलाया जाएगा.

सीआरपीसी की धारा 195(1)(ए) में कहा गया है, ‘कोई भी अदालत आईपीसी की धारा 172 से 188 के तहत दंडनीय किसी भी अपराध का संज्ञान नहीं लेगी’ जो, न्यायालयों और सार्वजनिक अधिकारियों जैसे कानूनी अधिकारियों द्वारा जारी आदेशों के अनुपालन में चूक और कमीशन से संबंधित है.

सर्कुलर में कहा गया है कि ‘झूठी शिकायतें’ करने वाले लोक सेवकों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई को एक विकल्प के रूप में माना जाएगा, जबकि झूठी शिकायतों से प्रभावित अधिकारियों को ‘संस्थागत समर्थन’ दिया जाएगा, जिन्हें जम्मू-कश्मीर पुलिस की अपराध शाखा से संपर्क करने में सहायता की जाएगी.

विरोध में पत्रकार

इस सर्कुलर का जम्मू-कश्मीर के स्थानीय पत्रकारों और संपादकों ने विरोध किया है. वहां के पत्रकार और मीडिया संस्थान पहले से ही अनुच्छेद 370 को हटाए जाने के बाद प्रशासन के दबाव का सामना कर रहे हैं.

श्रीनगर के एक संपादक ने कहा, ‘अगर मुझे किसी शीर्ष सरकारी अधिकारी के खिलाफ शिकायत मिलती है, तो मुझे इसे प्रकाशित करने से पहले दो बार सोचना होगा. जम्मू-कश्मीर में जांच पूरी होने में बरसों लग जाते हैं और यह सर्कुलर जनता तक सूचना के प्रवाह और मीडिया की स्वतंत्रता को और बाधित करेगा.’

जम्मू स्थित आरटीआई कार्यकर्ता रमन शर्मा ने भी इस सर्कुलर के लिए प्रशासन की आलोचना करते हुए कहा कि ये ‘भ्रष्ट और दागी अधिकारियों के पक्ष’ में है. उन्होंने इसे जम्मू और कश्मीर में प्रेस की आवाज़ दबाने का तरीका बताया.

शर्मा ने आगे कहा, ‘झूठी, गुमनाम या फर्जी शिकायतों के नाम पर जम्मू और कश्मीर प्रशासन अपने भ्रष्ट अधिकारियों को बचा रहा है और भारत का संविधान अनुच्छेद 19 के तहत गारंटी के अनुसार नागरिकों और प्रेस के मौलिक अधिकारों में कटौती कर रहा है.

हालांकि, उपराज्यपाल मनोज सिन्हा के नेतृत्व वाले प्रशासन ने इस सर्कुलर के पीछे का कारण बताते हुए कहा है कि अधिकारियों के खिलाफ शिकायतों की संख्या बढ़ गई है और कई बार सत्यापन के बाद भी इन शिकायतों को सत्यता से परे पाया गया.

सामान्य प्रशासन विभाग के आयुक्त सचिव संजीव गुप्ता की ओर से जारी इस आदेश में कहा गया है कि ‘झूठी शिकायतों के चलते वास्तविक कर्तव्यों का निर्वहन करने वाले लोक सेवकों को अनुचित उत्पीड़न और मानसिक पीड़ा का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है. इससे प्रशासनिक जड़ता पैदा होती है, जो अन्य बातों के साथ-साथ सरकारी कामकाज पर प्रतिकूल प्रभाव डालती है.’

पीटीआई की रिपोर्ट कहती है कि कुछ पूर्व सरकारी कर्मचारियों सहित 19 ‘पुराने अपराधी’, नौ सरकारी विभागों और संगठनों में कर्मचारियों को परेशान करने और ब्लैकमेल करने के लिए ‘फर्जी शिकायतें’ कर रहे हैं. पिछले छह महीनों में अधिकारियों के खिलाफ 7,000 से अधिक शिकायतों को फर्जी पाया गया है.

सर्कुलर में कहा गया है कि लोक सेवकों के खिलाफ शिकायतों के निवारण के लिए एक मजबूत और प्रभावी तंत्र स्थापित करने और इसकी पारदर्शिता को बढ़ावा देने के लिए शिकायतों और पूछताछ के संबंध में हर महीने प्रेस विज्ञप्ति जारी की जाएगी.