नई दिल्ली: मणिपुर के कुकी-जो आदिवासी समुदाय के हजारों प्रदर्शनकारियों ने सोमवार को राज्य के चार जिलों में रैलियां निकालीं और राज्य में जारी जातीय हिंसा को समाप्त करने तथा अपने लोगों के लिए ‘केंद्र शासित प्रदेश’ बनाने की मांग की.
हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, कुकी समुदाय के शीर्ष निकायों- इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (आईटीएलएफ) और कमेटी ऑन ट्राइबल यूनिटी (सीओटीयू) ने सोमवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को कुकी-जो समुदाय के लिए राजनीतिक समाधान निकालने के लिए दो अलग-अलग ज्ञापन सौंपे.
दो कुकी शीर्ष निकायों के तत्वावधान में मणिपुर के चूड़ाचांदपुर, कांगपोकपी, तेंगनोपाल और फेरजावल जिलों में सामूहिक रैलियां आयोजित की गईं. इन जिलों में कुकी-जो आबादी बहुसंख्यक है.
आईटीएलएफ द्वारा आयोजित रैली में समुदाय के हजारों प्रदर्शनकारियों ने चूड़ाचांदपुर जिले की सड़कों पर मार्च किया और मणिपुर में साल भर से भी अधिक समय से चल रही जातीय हिंसा को समाप्त करने के लिए राजनीतिक समाधान की मांग की,
आईटीएलएफ द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि रैली में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विधायक पाओलियनलाल हाओकिप भी शामिल हुए. इसमें कहा गया है कि रैली में मांग की गई है कि केंद्र सरकार मणिपुर में हिंसा का राजनीतिक समाधान खोजने की प्रक्रिया में तेजी लाए, क्योंकि हिंसा के एक साल से अधिक समय बाद भी सुरक्षा स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ है.
केंद्रीय गृह मंत्री को सौंपे गए ज्ञापन में दोनों कुकी शीर्ष निकायों ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 239ए के तहत विधानमंडल के साथ केंद्र शासित प्रदेश (यूटी) के रूप में कुकी-जो के लिए लंबे समय से लंबित राजनीतिक समाधान को तत्काल आगे बढ़ाने की मांग की.
ज्ञापन में यह भी कहा गया है, ‘लगभग 200 कुकी-जो आदिवासी मारे गए हैं और उपासना स्थलों सहित 7,000 से अधिक घर नष्ट हो गए हैं. अकेले जिरीबाम जिले में कुकी-जो आदिवासियों के 50 अन्य घर और दुकानें जला दी गईं.’
इसके अलावा, कुकी-जो गांव के सभी स्वयंसेवी बलों (village volunteer forces) को एक उचित सैन्य इकाई- कुकी-जो रेजिमेंट में संगठित करने की मांग की गई.
इसमें यह भी उल्लेख किया गया है कि एक साल से अधिक समय से पहाड़ी जिलों में गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का अभाव, विशेष रूप से कुकी-जो के कब्जे वाले क्षेत्रों में और इंफाल घाटी से मोरेह शहर सहित कांगपोकपी, चूड़ाचांदपुर, तेंगनोपाल और चंदेल की ओर चिकित्सा आपूर्ति को अवरुद्ध करने से इन क्षेत्रों में कुकी-जो के जीवन की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है.
मालूम हो कि इस हिंसा के बाद सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सहित कुकी विधायकों और आदिवासी संगठन अब अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं.
जवाबी विरोध प्रदर्शन
वहीं, मेईतेई बहुल इंफाल घाटी में सोमवार को ख्वाइरबंद इमा मार्केट की महिला विक्रेताओं के साथ ‘शांति के लिए ख्वाइरबंद इमा कीथेल समन्वय समिति’ के बैनर तले एक रैली भी देखी गई, जिसमें हिंसा को समाप्त करने के लिए तत्काल संसदीय हस्तक्षेप की मांग की गई.
विरोध ख्वाइरबंद बाजार के केंद्र में शुरू हुआ, जहां सुबह-सुबह बड़ी संख्या में महिला विक्रेता एकत्र हुईं. उनकी शुरुआती योजना मणिपुर राजभवन और मुख्यमंत्री के बंगले की ओर मार्च करके अपनी मांगों के लिए दबाव बनाने की थी.
हालांकि, सुरक्षा बलों ने उनके प्रयास को विफल कर दिया, जिन्होंने कंगला किले के पश्चिमी द्वार के पास विरोध प्रदर्शन को रोक दिया और प्रदर्शनकारियों को वापस ख्वाइरामबंद बाजार की ओर मोड़ दिया.
इससे बाद महिला विक्रेता बाजार में फिर से एकत्र हुईं और अपने-अपने बाजार शेड के सामने धरना दिया. महिला विक्रेताओं ने मणिपुर की एकता और अखंडता के संरक्षण का आह्वान करते हुए कुकी-ज़ो समुदाय द्वारा अलग प्रशासन की मांग का भी कड़ा विरोध किया.
उन्होंने मेईतेई गांव के वालंटियर्स को पकड़ने के उद्देश्य से सुरक्षा बलों द्वारा बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान चलाने की कथित योजनाओं पर भी अपनी चिंता व्यक्त की. शांति समिति की सह-संयोजक हुइरेम बिनोदिनी ने विरोध के दौरान मीडिया को संबोधित किया और राज्य की मौजूदा उथल-पुथल पर मणिपुर के निर्वाचित विधायकों की चुप्पी पर दुख जताया.
उन्होंने कहा, ‘हमारे प्रतिनिधि उन लोगों के लिए आवाज़ उठाने में विफल रहे हैं जिनके लिए उन्हें काम करना चाहिए. उनकी चुप्पी मणिपुर के नागरिकों के लिए एक गंभीर अन्याय है जो डर और अनिश्चितता में जी रहे हैं.’
बिनोदिनी ने 14 महीने से चल रहे संकट को सुलझाने के लिए संसदीय कार्रवाई की अहम जरूरत पर जोर दिया. उन्होंने यहां तक चेतावनी दी कि अगर सरकार मणिपुर संकट का जल्द से जल्द समाधान नहीं निकालती है तो मणिपुर के लोग और खुद राज्य भारत से अलग हो जाएगा.
मालूम हो कि पिछले साल 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 200 से अधिक लोगों की जान चली गई है. यह हिंसा तब भड़की थी, जब बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति (एसटी) दर्जे की मांग के विरोध में पहाड़ी जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किया गया था.
मणिपुर की आबादी में मेईतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी, जिनमें नगा और कुकी समुदाय शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.