बड़ी संख्या में विपक्षी सांसदों को निलंबित करने वाले भाजपा के ओम बिड़ला फिर लोकसभा अध्यक्ष बने

लोकसभा अध्यक्ष बनते ही ओम बिड़ला ने 1975 के आपातकाल पर एक बयान पढ़ा और इसे भारत के इतिहास का एक काला अध्याय बताया. इस पर विपक्ष की आपत्ति के बाद सदन में हंगामा हुआ और कार्यवाही गुरुवार तक के लिए स्थगित कर दी गई.

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लोकसभा अध्यक्ष चुने जाने के बाद ओम बिरला को बधाई देते पीएम नरेंद्र मोदी, लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी. (स्क्रीनग्रैब साभार: संसद टीवी)

नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के सांसद ओम बिड़ला बुधवार (26 जून) को लगातार दूसरी बार 18वीं लोकसभा के अध्यक्ष चुने गए. बिड़ला 17वीं लोकसभा के भी अध्यक्ष थे और निचले सदन में विपक्ष के 100 सांसदों के निलंबन की अभूतपूर्व घटना की अध्यक्षता उन्होंने ही की थी. तब विपक्ष के 46 अन्य सांसदों को राज्यसभा से निलंबित किया गया था.

बुधवार को सदन में बिड़ला को ध्वनि मत से चुना गया.

लोकसभा में दशकों बाद पहली बार अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ, जब कांग्रेस सांसद के. सुरेश ने मंगलवार (25 जून) को ‘इंडिया’ गठबंधन के उम्मीदवार के रूप में बिड़ला के खिलाफ अपना नामांकन दाखिल किया. बिड़ला राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के उम्मीदवार थे. सरकार और विपक्ष के बीच उपाध्यक्ष पद के लिए बातचीत विफल हो जाने के बाद यह चुनाव हुआ.

बिड़ला को अध्यक्ष चुनने का प्रस्ताव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पेश किया था और प्रोटेम स्पीकर भर्तृहरि महताब ने इसे वोटिंग के लिए रखा था. विपक्ष ने सुरेश को अध्यक्ष चुनने का प्रस्ताव पेश किया था, लेकिन इस पर वोटिंग नहीं हुई. विपक्ष ने बाद में मत विभाजन की मांग नहीं की.

अपने संबोधन में विपक्ष के नेता कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने बिड़ला को बधाई देते हुए कहा कि ‘सदन में विपक्ष की आवाज को प्रतिनिधित्व दिया जाए.’

उन्होंने कहा, ‘यह सदन भारत के लोगों की आवाज़ का प्रतिनिधित्व करता है और आप इस आवाज़ के अंतिम मध्यस्थ हैं. बेशक, सरकार के पास राजनीतिक शक्ति है लेकिन विपक्ष भी भारत के युवाओं की आवाज़ का प्रतिनिधित्व करता है और इस बार, पिछली बार से ज़्यादा मजबूती से. विपक्ष आपके काम करने में आपकी सहायता करना चाहेगा और हम चाहेंगे कि सदन अच्छी तरह काम करे. यह बहुत महत्वपूर्ण है कि सहयोग विश्वास के आधार पर हो और विपक्ष की आवाज़ को सदन में प्रतिनिधित्व करने की अनुमति दी जाए.’

गांधी ने कहा, ‘मुझे पूरा भरोसा है कि आप हमें अपनी आवाज़ उठाने देंगे, हमें बोलने देंगे और हमें भारत के लोगों की आवाज़ उठाने देंगे. सवाल यह नहीं है कि सदन कितनी कुशलता से चल रहा है, सवाल यह है कि सदन में भारत की कितनी आवाज़ सुनी जा रही है. इसलिए यह विचार कि आप विपक्ष की आवाज़ को दबाकर सदन को कुशलता से चला सकते हैं, एक गैर-लोकतांत्रिक विचार है. इस चुनाव ने दिखाया है कि भारत के लोग विपक्ष से देश के संविधान की रक्षा करने की उम्मीद करते हैं. हमें पूरा भरोसा है कि हमें बोलने की अनुमति देकर आप संविधान की रक्षा करने का अपना कर्तव्य निभाएंगे.’

2024 के लोकसभा चुनाव में भाजपा अपने दम पर 240 सीटें जीती थी और उसके पास सहयोगी दलों को साथ मिलाकर लोकसभा में कुल 292 सीटें हैं, जबकि विपक्ष के पास कुल 232 सीटें हैं.

संसद के शीतकालीन सत्र में जब विपक्ष के 146 सांसदों को अप्रत्याशित रूप से निलंबित किया गया था, तब विपक्ष की अनुपस्थिति में मोदी सरकार ने तीन नए आपराधिक कानूनों और दूरसंचार विधेयक सहित कई महत्वपूर्ण विधेयक पारित किए थे. विपक्षी सांसदों के निलंबन के साथ ही 17वीं लोकसभा में पहली बार उपसभापति का पद खाली रहा था. दशकों में पहली बार संसद की सुरक्षा में भी सेंध लगी थी.

17वीं लोकसभा में विपक्षी सांसदों ने संसद टीवी पर भी आरोप लगाया था कि जब ‘इंडिया’ गठबंधन के सदस्य बोलते हैं तो उन्हें नहीं दिखाया जाता है, बल्कि उस समय अध्यक्ष की कुर्सी दिखाई जाती है, लेकिन जब भाजपा के सांसद और मंत्री बोलते हैं तो कैमरे का फोकस उन पर ही रहता है.

हालांकि, अपने संबोधन में मोदी ने बिड़ला को बधाई देते हुए 17वीं लोकसभा की इन चिंताओं और घटनाक्रमों पर प्रकाश नहीं डाला और इसके बजाय लगातार दो बार इस पद पर आसीन रहने के लिए अध्यक्ष की सराहना की.

उन्होंने कहा, ‘मैं सदन की ओर से आपको बधाई देना चाहता हूं. अमृतकाल में दूसरी बार इस पद पर बैठना आपके लिए बहुत बड़ी जिम्मेदारी है. आपके अनुभव से हमें उम्मीद है कि आप अगले 5 साल तक हमारा मार्गदर्शन करेंगे. आपके चेहरे पर यह मीठी-मीठी मुस्कान पूरे सदन को प्रसन्न रखती है. बलराम जाखड़ दो बार स्पीकर बने. उनके बाद आपको दूसरी बार स्पीकर बनने का गौरव प्राप्त हुआ है.’

हालांकि मोदी ने पिछली लोकसभा में पारित विधेयकों पर प्रकाश डाला, लेकिन उन्होंने यह नहीं बताया कि उन्हें किस प्रकार लागू किया गया.

उन्होंने कहा, ‘पिछले पांच वर्षों में आपकी अध्यक्षता में संसद ने कई ऐतिहासिक निर्णय लिए हैं. जब भी 17वीं लोकसभा का जिक्र होगा, सदन में आपका नाम मार्गदर्शक के रूप में चमकेगा. विभिन्न विधेयकों के माध्यम से 17वीं लोकसभा ने महिलाओं को सदनों में आरक्षण दिया, जम्मू-कश्मीर को शेष भारत के साथ एकीकृत किया, नए आपराधिक कानून बनाए, ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के अधिकारों की रक्षा की और सामाजिक और राष्ट्रीय कल्याण के लिए कई अन्य मील के पत्थर हासिल किए. आने वाली पीढ़ियां इसे आपकी विरासत के रूप में याद रखेंगी.’

मोदी ने आगे कहा, ‘जो काम आज़ादी के 70 साल में नहीं हुए, वो आपकी अध्यक्षता में इस सदन ने संभव कर दिखाया है. लोकतंत्र की लंबी यात्रा में कई पड़ाव आते हैं. कुछ अवसर ऐसे होते हैं जब हमें मील के पत्थर स्थापित करने का अवसर मिलता है. मुझे पूरा विश्वास है कि 17वीं लोकसभा की उपलब्धियों पर देश को गर्व होगा.’

ओम बिड़ला ने ‘आपातकाल’ को बताया भारतीय इतिहास का काला अध्याय, लोकसभा में हंगामा

इस बीच, बुधवार को लोकसभा में उस समय हंगामा मच गया जब स्पीकर ओम बिड़ला ने आपातकाल पर एक बयान पढ़ा और इसे भारत के इतिहास का एक काला अध्याय बताया. उन्होंने कहा कि इंदिरा गांधी ने देश में तानाशाही थोपी थी, भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचला गया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटा गया.

हंगामे के बाद सदन की कार्यवाही अगले दिन यानी 27 जून तक के लिए स्थगित कर दी गई.

फाइनेंशियल एक्सप्रेस के मुताबिक, सदन को संबोधित करते हुए बिड़ला बोले, ‘यह सदन 1975 में आपातकाल लगाने के फैसले की कड़ी निंदा करता है. इसके साथ ही हम उन सभी लोगों के दृढ़ संकल्प की सराहना करते हैं जिन्होंने आपातकाल का विरोध किया, संघर्ष किया और भारत के लोकतंत्र की रक्षा का दायित्व निभाया. 25 जून 1975 को भारत के इतिहास में हमेशा एक काले अध्याय के रूप में जाना जाएगा.’

उन्होंने आगे कहा, ‘इसी दिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाया था और बाबा साहेब आंबेडकर द्वारा बनाए गए संविधान पर हमला किया था. भारत को पूरी दुनिया में लोकतंत्र की जननी के रूप में जाना जाता है. भारत में हमेशा से लोकतांत्रिक मूल्यों और वाद-विवाद का समर्थन किया गया है. लोकतांत्रिक मूल्यों की हमेशा रक्षा की गई है, उन्हें हमेशा प्रोत्साहित किया गया है. ऐसे भारत पर इंदिरा गांधी ने तानाशाही थोपी थी. भारत के लोकतांत्रिक मूल्यों को कुचला गया और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का गला घोंटा गया…’

इसके बाद उन्होंने सदस्यों से आपातकाल के ‘काले दिनों’ की 50वीं वर्षगांठ मनाने के लिए दो मिनट का मौन रखने को कहा. इस पर विपक्षी सदस्यों ने हंगामा शुरू कर दिया और फिर सदन की कार्यवाही स्थगित कर दी गई.

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