नई दिल्ली: टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टिस) बीते कुछ दिनों से सुर्खियों में बना हुआ है. इसकी प्रमुख वजह संस्थान से एक साथ सौ से अधिक कर्मचारियों का नौकरी से निकाले जाने का नोटिस था. फिलहाल, संस्थान ने ज्यादातर कर्मचारियों को वापस बुला लिया है, लेकिन एडवांस्ड सेंटर फॉर वीमेन स्टडीज के कर्मचारियों को जारी किए गए नोटिस अभी तक वापस नहीं लिए गए हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक, सेंटर फॉर वीमेन स्टडीज, जिसे एडवांस्ड सेंटर फॉर वीमेन स्टडीज के रूप में जाना जाता है. इसकी शुरुआत 1980 के दशक में हुई थी और तब से यह संस्थान का एक महत्वपूर्ण और अभिन्न अंग रहा है. ये विभाग देश के चार प्रतिष्ठित विभागों में शामिल है, जिसे एडवांस्ड सेंटर का दर्जा दिया गया है, जो देश भर में छोटे केंद्रों को प्रशिक्षित और परामर्श देने की अनुमति देता है.
टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के शिक्षक संघ ने भी एडवांस्ड सेंटर फॉर वीमेन स्टडीज के कर्मचारियों को लंबे समय से वेतन नहीं मिलने और इनके अनुबंध के समाप्ती से जुड़े नोटिस वापस नहीं लिए जाने पर चिंता व्यक्त करते हुए इसे तत्काल प्रभाव से वापस लेने की मांग की.
द हिंदू की खबर के अनुसार, सोमवार (1 जुलाई) को जारी अपने एक बयान में शिक्षक संघ ने प्रशासन द्वारा शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों के अनुबंध को नवीनीकरण न करने संबंधी जारी नोटिस वापस लेने को अल्पकालिक राहत बताया.
कर्मचारियों को नियमित करने और लंबित वेतन जारी करने करने की मांग
संघ ने टाटा एजुकेशन ट्रस्ट (टीईटी) के तहत संकाय सदस्यों और कर्मचारियों की वित्तीय स्थिरता और भविष्य को लेकर स्पष्टता की कमी के बारे में चिंता जताते हुए एजुकेशन ट्रस्ट के संकाय सदस्यों और कर्मचारियों की सेवाओं को नियमित करने और लंबित वेतन जारी करने करने की मांग की.
इसके अलावा शिक्षक संघ बैकलॉग पदों को भरने और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के नए पदों की भी मांग कर रहा है. संस्थान के कर्मचारियों को निकाले जाने संबंधी पूरे घटनाक्रम पर स्पष्टीकरण मांगने के लिए संघ ने कुलपति के साथ एक बैठक का भी अनुरोध किया है.
गौरतलब है कि टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज ने बीते शुक्रवार (28 जून) को बड़े पैमाने पर संस्थान के मुंबई, हैदराबाद, गुवाहाटी और महाराष्ट्र के तुलजापुर कैंपस से सौ से अधिक टीचिंग और नॉन टीचिंग स्टाफ की छंटनी कर दी थी. नौकरी से निकाले गए ज्यादातर कर्मचारी इस संस्थान में पिछले एक दशक से भी अधिक समय से काम कर रहे थे और यह सभी संविदा पर थे.
इंडियन एक्सप्रेस की खबर के मुताबिक, गुवाहाटी की एक फैकल्टी मेंबर ने बताया कि उन लोगों का वार्षिक अनुबंध मई में समाप्त हो गया था, लेकिन जून महीने की शुरुआत में उन्हें एक ईमेल मिला जिसमें उनसे टाटा ट्रस्ट की फंडिंग अपडेट होने तक संस्थान का काम जारी रखने का अनुरोध किया गया था.
उन्होंने आगे कहा, ‘ईमेल मिलने के बाद लगा कि अनुबंध का नवीनीकरण हो जाएगा. इसलिए हममें से ज्यादातर लोग अपने ऑनलाइन एडमिशन पर काम कर रहे थे और फिर हमें यह लेटर मिल गया. मैंने यहां 11 साल दिए हैं. हमारे कॉन्ट्रैक्ट के हिसाब से हमें एक महीने का नोटिस पीरियड भी नहीं दिया गया. हमें अपने जून की सैलरी क्लेम करने के लिए नो-ड्यूज फॉर्म भरने के लिए सिर्फ दो दिन का समय दिया गया.’
टाटा ट्रस्ट का अब टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज से कोई संबंध नहीं होगा
द हिंदू के अनुसार, कर्मचारियों को बिना किसी नोटिस के निकाले जाने का कारण टाटा एजुकेशन ट्रस्ट से अनुदान न मिलना बताया गया था, जिस वजह से संस्थान कर्मचारियों को वेतन नहीं दे पा रहा था. प्रशासन के इस कदम की चौतफा आलोचना देखने को मिली, जिसके बाद टाटा ट्रस्ट ने वेतन के लिए 5 करोड़ रुपये का बकाया देने पर सहमति जताई है.
हालांकि, टाटा ट्रस्ट ने ये भी कहा है कि अब उनका टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज से आगे कोई संबंध नहीं होगा, इसका प्रबंधन अब ट्रस्ट के अधीन नहीं है, और कोई भी टाटा प्रतिनिधि इसके बोर्ड में शामिल नहीं है.
मालूम हो कि टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज टाटा ट्रस्ट्र की ओर से 1936 में स्थापित देश का सबसे बड़ा चैरिटेबल ट्रस्ट है.