मणिपुर में हिंसा फैलाने के आरोप में यूके के प्रोफेसर पर केस दर्ज, विरोध में कुकी छात्र संगठन

यूनाइटेड किंगडम में रहने वाले भारतीय मूल के एक प्रोफेसर पर मणिपुर में जातीय हिंसा भड़काने की एफआईआर की निंदा करते हुए कुकी छात्र संगठन ने कहा कि यह कार्रवाई राज्य सरकार की कमियां बताने वालों को निशाना बनाने की प्रवृत्ति को दिखाती है.

(प्रतीकात्मक फोटो: द वायर)

नई दिल्ली: यूनाइटेड किंगडम में रहने वाले भारतीय मूल के एक प्रोफेसर पर सोशल मीडिया के जरिये कथित तौर पर मणिपुर में जातीय हिंसा भड़काने का मामला दर्ज किया गया है. ज्ञात हो कि मणिपुर में एक साल से ज़्यादा समय से जातीय संघर्ष जारी है.

रिपोर्ट के अनुसार, बर्मिंघम विश्वविद्यालय में कंप्यूटर साइंस के प्रोफेसर उदय रेड्डी के खिलाफ एक स्थानीय निवासी द्वारा इंफाल थाने में एफआईआर दर्ज कराई गई है.

टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, प्रोफेसर के एक्स हैंडल @Kautilya33 पर भी रोक लगा दी गई है.

उधर, कुकी छात्र संगठन (केएसओ) की दिल्ली शाखा ने रेड्डी के खिलाफ एफआईआर की निंदा की है.

एनडीटीवी के मुताबिक, ‘केएसओ ने सोमवार (1 जुलाई, 2024) को एक बयान जारी कर कहा कि पुलिस की कार्रवाई ‘उस प्रवृत्ति को दिखा रही है, जहां एन. बीरेन सिंह के नेतृत्व वाली मणिपुर सरकार की गड़बड़ियों को उजागर करने वाले व्यक्तियों और संगठनों को गलत तरीके से निशाना बनाया जाता है.’

इंफाल के एक निवासी द्वारा दर्ज कराई गई एफआईआर के अनुसार, रेड्डी अपने सोशल मीडिया पोस्ट के माध्यम से मणिपुर में धार्मिक आधार पर समुदायों के बीच तनाव पैदा कर रहे हैं.

केएसओ ने रेड्डी के खिलाफ एफआईआर वापस लेने और मणिपुर की ऐतिहासिक और वर्तमान वास्तविकताओं को प्रकाश में लाने वाले व्यक्तियों के खिलाफ कार्रवाई बंद करने की मांग की है.

टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार, केएसओ ने अपने बयान में कहा है, ‘यह स्पष्ट है कि भारतीय मूल के प्रोफेसर रेड्डी भारत को प्रेम करने वाले व्यक्ति हैं, जिनका देश और उसके लोगों से गहरा संबंध है, उन्हें सत्य और न्याय के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के लिए निशाना बनाया जा रहा है. सोशल मीडिया पर प्रोफेसर की सक्रियता कभी भी मेईतेई समुदाय को बदनाम करने के लिए नहीं, बल्कि मणिपुर हिंसा से जुड़ी जटिल सच्चाइयों को सामने लाने वाली रही है.’

मणिपुर हिंसा पर जस्टिस मृदुल की टिप्पणी

पिछले दिनों मणिपुर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश सिद्धार्थ मृदुल ने एक विस्तृत साक्षात्कार में राज्य सरकार द्वारा अदालती आदेशों का चुनिंदा तरीके से पालन करने पर असंतोष व्यक्त किया था.

हिंदुस्तान टाइम्स से हुई इस बातचीत में जस्टिस मृदुल ने न्यायपालिका की सुरक्षा और बुनियादी ढांचे (इंफ्रास्ट्रक्चर) की मांगों को पूरा करने में पर्याप्त संसाधन की कमी पर भी चिंता व्यक्त की था. उनका कहना था कि 14 महीने से जातीय हिंसा से प्रभावित मणिपुर के चूड़ाचांदपुर, कांगपोकपी या मोरेह जैसे अशांत क्षेत्रों में बहुसंख्यक समुदाय के न्यायिक अधिकारियों की नियुक्ति संभव नहीं है.

ज्ञात हो कि मणिपुर में बहुसंख्यक मेईतेई समुदाय और कुकी-जो आदिवासी समुदायों के बीच जातीय संघर्ष पिछले साल 3 मई को शुरू हुआ था, जिसमें अब तक 220 से अधिक लोग मारे गए हैं, हजारों घायल हुए हैं और कम से कम 50,000 लोग आंतरिक रूप से विस्थापित हुए हैं.

मणिपुर की आबादी में मेईतेई लोगों की संख्या लगभग 53 प्रतिशत है और वे ज्यादातर इंफाल घाटी में रहते हैं, जबकि आदिवासी जिनमें नगा और कुकी समुदाय शामिल हैं, 40 प्रतिशत हैं और ज्यादातर पहाड़ी जिलों में रहते हैं.